हमारे देश में धान खरीफ की एक प्रमुख फसल है, देश भर में अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग धान की प्रजाति की खेती की जाती है | ऐसे ही कतरनी धान का उत्पादन बिहार तथा उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में किया जाता है | इसकी सुगंध और स्वाद के कारण यह चावल विश्वभर में प्रसिद्ध है | इस धान में विशेष सुगंध एवं स्वाद एक विशेष क्षेत्र में उगाने पर ही आती है | स्वाद और सुगंध के कारण बाजार में इस धान की मांग भी ज्यादा है | इस धान की मांग अधिक रहने के कारण किसान को मुनाफा भी अच्छा होता है | आइये आपको इस धान की खेती से जुडी जानकारी उपलब्ध करवाते है| कतरनी धान की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु, बीजदर और बीजोपचार धान की इस किस्म की बुआई के लिए 15 से 25 जुलाई का समय उपयुक्त होता है | इसके पौधे में फूल आने पर परागण के लिए 16–20 तथा पकने के समय 18 से 32 डिग्री सेल्सियस तापमान के साथ 8–10 घंटे धूप की आवश्यकता होती है | कतरनी धान की बुआई के लिए 15 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर बीज पर्याप्त होता है | बीज उपचार बीज का बुआई से पहले कार्बेन्डाजिम 2–3 ग्राम प्रति किलोग्राम और ट्राईकोडर्मा 7.5 ग्राम प्रति किलोग्राम के साथ पी.एस.बी. 6 ग्राम और एजेटोबेक्टर 6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से बीजोपचार करना चाहिए | इसके बाद बीज को छाया में पक्के फर्श पर जूट के गीले बोरों से लगभग 72 घंटे तक ढक देना चाहिए | उसके बाद अंकुरित बीजों की नर्सरी में बुआई करनी चाहिए | नर्सरी की व्यवस्थता नर्सरी में जैविक खाद तथा ऊँची क्यारी विधि द्वारा इसे तैयार करना लाभदायक रहता है | एक हैक्टेयर भूमि में रोपनी हेतु 15 किलोग्राम बीज और 1000 वर्ग मीटर क्षेत्र की आवश्यकता होती है | नर्सरी में बीज बुआई का घनत्व 15 – 20 ग्राम बीज प्रति वर्गमीटर की दर से डालना चाहिए | खेत की तैयारी और रोपाई रोपाई के लिए खेत में अच्छी तरह कीचड़ बनाकर 20–22 दिनों की आयु के बिचड़ा (पौद) का रोपाई के लिए प्रयोग करना चाहिए | खेत में बिचड़ा की रोपाई पंक्ति से पंक्ति की दुरी 20 से.मी. और पौधों से पौधों की दुरी 15 से.मी. पर 1 या 2 बिचड़ा पंक्ति में रोपना चाहिए | सिंचाई की व्यवस्थता धान के अच्छे विकास और पैदावार के लिए खेत में लगातार पानी के भरे रहने की जरूरत नहीं होती है | बारी–बारी से सिंचाई करना व खेत को हल्का सूखने देने से कल्ले ज्यादा निकलते है |
ग्राम तकनीक
तवैदार हैरो
इस यंत्र के उपयोग से बीज के अच्छे अंकुरण के लिए भूमि में सुधार, कीटों एवं इनके रहने के स्थानों को आसानी से नष्ट किया जा सकता है। यह घास-फूस तथा खरपतवपार वाली भूमि के लिए अत्यंत उपयोगी यंत्र है। गेहूं की बुवाई के लिए खेत तैयार करने में इस यंत्र का उपयोग अत्यंत ही लाभदायक है। इसकी कार्यक्षमता एक दिन में 4 से 5 हैक्टेयर है।
किसान और सरकार चाहते हैं कि देशभर में फसलों की पैदावार और उनकी गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी हो, क्योंकि इससे किसान और सरकार, दोनों को लाभ होगा !मगर यह तभी संभव हो पाएगा, जब फसल उत्पादन का काम कम लागत में संपन्न हो!इसका एक मात्र विकल्प यह है कि आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग किया जाए, ताकि समय, श्रम और लागत की बचत हो पाए ! इससे किसानों को अच्छा मुनाफा भी मिल सकेगा! ऐसे में आज हम ऐसे आधुनिक 2 कृषि यंत्रों के बारे में बताएंगे, जो कि गेहूं की कटाई को आसान बना देते हैं!
ट्रैक्टर चलित रीपर बाइंडर:
यह मशीन किसानों के लिए बहुत उपयोगी है! इसमें भी कटर बार से पौधे कटे जाते हैं फिर पुलों में बंध जाते हैं! इसके बाद संचरण प्रणाली द्वारा एक और गिरा दिया जाता है !खास बात यह है कि इस मशीन की मदद से कटाई और बंधाई का कार्य बहुत सफाई से होता है!
स्वचालित वर्टिकल कनवेयर रीपर:
छोटे और मध्यम किसानों के लिए गेहूं की कटाई करने के लिए यह बहुत उपयोगी मशीन है! इस मशीन में आगे की ओर एक कट्टर बार लगी होती है, तो वहीं पीछे संचरण प्रणाली लगी होती हैं!इसके साथ ही रीपर में लगभग 5 हॉर्स पावर का एक डीजल इंजन लगा होता है, जो कि पहियों और कटर बार के लिए शक्ति संचरण का कार्य करता है
कैसे करते हैं गेहूं की कटाई:
किसान को फसल कटाई के लिए कटर बार को आगे रखकर हैंडिल से पकडक़र पीछे चलना होता है. कटर बार गेहूं के पौधों को काटती हैं. इसके साथ ही संचरण प्रणाली द्वारा पौधे एक लाइन में बिछा दिए जाते हैं, जिनको श्रमिकों द्वारा इकट्ठा कर लिया जाता है.
कृषि में जहाँ किसान पहले वर्ष में एक या दो फसल ले पाते थे वही अब कृषि यंत्रों की मदद से कम समय में कृषि कार्यों को पूर्ण करके तीन फसलें लेने लगे हैं | कृषि यंत्र से जहाँ कम समय में कार्य पूर्ण हो जाते हैं वही इससे फसल उत्पदान की लागत भी कम होती है खासकर छोटे कृषि यंत्रों से | भारत में छोटे एवं मध्यवर्गीय किसानों के लिए छोटे कृषि यंत्रों को विकसित किया जा रहा है | सरकार द्वारा इनके उपयोग को बढ़ावा भी दिया जा रहा है जिसके लिए सरकार द्वारा इन कृषि यंत्रों पर सब्सिडी भी दी जाती है | छोटे किसानों के बीच इन छोटे कृषि उपकरणों को लोकप्रिय बनाने की आवश्यकता है, जिससे कृषि श्रमिकों और किराए की मशीनों पर उनकी निर्भरता कम की जा सके | किसान समाधान गेहूं कटाई के समय को देखते हुए कटाई के लिए उपयुक्त मोटर संचालित क्रॉप कटर की जानकारी लेकर आया है |
मोटर संचालित क्राप कटर:
क्राप कटर मशीन पके हुए गेहूं को जमीन से लगभग 15 से 20 से.मी. की ऊँचाई से काट सकती है | क्रॉप कटर से काटने की चोडाई 255 सेमी तक होती है वहीँ इसमें 48 से 50 सीसी की शक्ति से चल सकती है | इसका बजन 8 किलो से लेकर 10 किलोग्राम तक होता है | यह पेट्रोल से चलने वाला यंत्र है जिसमें एक बार में 1.2 लीटर पेट्रोल तक भरा जा सकता है | मशीन में एक गोलाकार आरा ब्लेड, विंडरोइंग सिस्टम, सेफ्टी कवर, कवर के साथ ड्राइव शाफ़्ट, हैंडल, ऑपरेटर के लिए हैगिंग बैंड पेट्रोल टैंक, स्टार्टर नांब , चोक लीवर और एयर क्लीनर होते हैं | ब्लेड, इंजन द्वारा संचालित एक लंबी ड्राइव शाफ़्ट के माध्यम से घूमता है | 25 से.मी. की ऊँचाई और 12 से.मी. के ब्लेड त्रिज्या के बराबर आधे बेलन के आकार की एक एलुमिनियम शीट को काटने वाले ब्लेड के उपरी भाग में फिट किया जाता है | फसलों को इकट्ठा करने में आसानी के लिए एक समान पंक्ति बनाने के लिए एक गार्ड लगाया जाता है |
क्राप कटर मशीन में ब्लेड का उपयोग फसल के अनुसार करें :
मोटर संचालित क्राप कटर मशीन में ब्लेड का उपयोग फसल के पौधे के अनुसार किया जा सकता है | ज्यादा दांत वाले ब्लेड का उपयोग मोटे तथा कड़क पौधे की कटाई के लिए किया जाता है तथा कम दांत वाले ब्लेड का उपयोग मुलायम तथा पतले पौधे के लिए किया जाता है |
दांतों की संख्या तथा उसका उपयोग :
120 दांत वाले ब्लेड का उपयोग – 120 दांतों वाले ब्लेड का उपयोग गेहूं, मक्का आदि फसलों की कटाई के लिए किया जाता है | 60 और 80 दंतों वाले ब्लेड का उपयोग – 60 तथा 80 दानों वाले ब्लेड का उपयोग चारा काटने के लिए किया जाता है | 40 दांतों वाले ब्लेड का उपयोग – 40 दांतों वाले ब्लेड का उपयोग 2 इंच मोती वाले पौधे को काटने के लिए किया जाता है |
आजकल पारम्परिक खेती को लेकर एक धारणा बन गयी है कि इससे मुनाफा मिलता कठिन होता है और यही कारण है कि कई किसान किसानी छोड़ कर किसी और व्यवसाय कि तरफ रुख कर रहे है I परन्तु वही कुछ किसान ऐसे भी है जो नयी नयी खेती की तकनीक को अपना कर दिन दुगनी रात चौगुनी कमाई कर रहे है, ऐसी ही एक तकनीक का नाम है इंटीग्रेटेड फार्मिंग या एकीकृत कृषि प्रणाली I आइये जानते है क्या है इंटीग्रेटेड फार्मिग सिस्टम? इंटीग्रेटेड फार्मिग सिस्टम यानी एकीकृत कृषि प्रणाली का महत्त्व छोटे और सीमांत किसानों के लिए ज्यादा है हालाँकि बड़े किसान भी इस प्रणाली की अपनाकर खेती से मुनाफा कमा सकते हैंI एकीकृत कृषि प्रणाली का मुख्य उदेश्य खेती की जमीन के हर हिस्से का पूर्ण रूप से इस्तेमाल करना हैI इसके तहत आप एक ही साथ अलग-अलग फसल, फूल, सब्जी, मवेशी पालन, फल उत्पादन, मधुमक्खी पालन, मछली पालन इत्यादि कर सकते हैं I इससे आप अपने संसाधनों का पूरा इस्तेमाल कर पाएंगे और लागत में कमी आएगी फलस्वरूप उत्पादकता बढ़ेगी I एकीकृत कृषि प्रणाली न केवल पर्यावरण के लिए अनुकूल है बल्कि यह खेत की उर्वरक शक्ति को भी बढ़ाती हैI इंटीग्रेटेड फार्मिंग का एक बहुत ही बेहतरीन उदाहरण आपके लिए प्रस्तुत है I उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से महज 90 किलोमीटर दूर सीतापुर जिला राष्ट्रीय राज्यमार्ग के किनारे जिला कृषि उपनिदेशक अरविंद मोहन मिश्र ने अपने कार्यालय में खाली पड़ी जमीन पर आधुनिक विधि से एक एकड़ में मौडल तैयार किया है I इस एक एकड़ के मौडल में मछलीपालन, बत्तखपालन, मुरगीपालन के साथसाथ फलदार पौधों की नर्सरी तैयार करवाई गयी है I श्री अरविंद मोहन मिश्र बताते हैं कि उन्होंने एक बीघा जमीन में तालाब की खुदाई करवाई है, तालाब में ग्रास कौर्प मछली डाल रखी हैं, इतनी मछली से सालभर में करीब एक से डेढ़ लाख रुपए की कमाई हो जाती है I इस के बाद तालाब के ऊपर मचान बना कर उस में पोल्ट्री फार्म बनाया है, जिस में कड़कनाथ सहित अन्य देशी मुर्गा - मुर्गी पाल रखे हैं I जो दाना मुर्गियों को दिया जाता हैं, उस का जो शेष भाग बचता है, वह मचान से नीचे गिरता रहता है और उसे नीचे तालाब की मछलिया खा लेती है जिससे मछलियों के दाने की बचत हो जाती है I 2 बीघा जमीन पर ढैंचा की बुआई कर रखी है जिससे हरी खाद बनेगी और उस के बाद इस की जुताई करा के इस में शुगर फ्री धान की रोपाई कर देंगे I मिश्र जी ने यह भी बताया कि २ बीघे में गन्ने की पैदावार की गयी है जिससे तकरीबन 200 से 250 क्विंटल गन्ने की पैदावार लेते हैं, साथ ही, गन्ने में बीचबीच में अगेती भिंडी फसल बो रखी है, जिस से 30 से 40 हजार रुपए का मुनाफा होता है I सहफसली से एक और फायदा है कि जो छिड़काव या खाद हम एक फसल में देते हैं, उस का लाभ सहफसली को भी मिल जाता है I जिला उपकृषि निदेशक अरविंद मोहन मिश्र ने कहा कि पायलट प्रोजैक्ट के तौर पर यह मॉडल सीतापुर जिले में 10 किसानों के लिए और बनवाया जाएगा I इस मॉडल की मंजूरी के लिए शासन से भी बातचीत चल रही है I आजकल कृषि में लागत वृद्धि होने का एक कारण यह भी है कि किसान अधिक उत्पादन के चक्कर में खेती में रासायनिक खादों का प्रयोग कर रहे हैं, वो भी बिना किसी मापदंड के I इस को कम करने के लिए किसान खुद देशी विधि जैसे वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल कर या गाय का गोबर और गौमूत्र से जीवामृत बना कर छिड़काव करें, इससे कृषि लागत में कमी लायी आज सकती है I किसान यदि ठान ले तो भारतीय खेती व् नवीनतम कृषि तकनीक के जरिये वो अपनी आमदनी भी बढ़ा सकता है और कृषि उत्पाद की गुणवत्ता भी कायम रख सकता है I
खेत की मिट्टी का सीधा प्रभाव फसल की पैदावार से होता है, गुणवत्तापूर्ण उपज और अधिक पैदावार के लिए मिट्टी में कौन कौन से तत्व होने चाहिए इसकी जानकारी होना जरूरी है। मिट्टी में लम्बे अरसे से रासायनिक पदार्थों और कीटनाशकों के प्रयोग होने के कारण खेत की मिट्टी की उर्वरक क्षमता कम हो जाती है। किसी भी फसल से उन्नत उपज लेने के लिए ये जानना जरूरी हैं कि उसे जिस मिट्टी के लगाया जा रहा है. उसमें उसके विकास के लिए पोषक तत्व मौजूद हैं या नही। मृदा परीक्षण यानि मिट्टी की जांच करा कर किसान अपने खेत की मिट्टी की सही सही जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। मिट्टी की जांच में भूमि के अम्लीय और क्षारीय गुणों की जांच की जाती है, ताकि पीएच मान के आधार पर उचित फसल को उगाया जा सके. और भूमि सुधार किया जा सके। मिट्टी की जाँच से किसान भाई अपने खेत की मिट्टी की गुणवत्ता जानकार उसमे उसी के उपयुक्त फसल लगा कर कम खर्च में अधिक उपज प्राप्त कर सकते है। मिट्टी की जांच क्यों आवश्यक है मिट्टी की जांच कराने के बाद मिट्टी में मौजूद कमियों को सुधारकर उसे फिर से उपजाऊ बनाने के लिए। मिट्टी परिक्षण करवाकर उर्वरकों और रसायनों पर होने वाले अनावश्यक खर्च से बच सकता है। जैविक खेती करने वाले किसान भाई मिट्टी की जांच कराकर मिट्टी के जैविक गुणों का पता लगा सकते हैं. और उसी के आधार पर जैविक पोषक तत्वों का इस्तेमाल पूरी तरह से जैविक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। मिट्टी में कई पोषक तत्व होते हैं जैसे कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश , कैल्सिशयम, मैग्नीशियम और सूक्ष्म तत्वों जैसे जस्ता , मैग्नीज, तांबा, लौह, बोरोन, मोलिबडेनम और क्लोरीन इत्यादि अगर इन सबकी मौजूदगी मिट्टी में संतुलित रूप में रहती है तो इससे अच्छी पैदावार प्राप्त होती है। मिट्टी में इन तत्वों की कमी के कारण मिट्टी की उर्वरक शक्ति कम होने लगती है। मिट्टी जांच के फायदे सघन खेती के कारण खेत की मिट्टी में उत्पन्न विकारों की जानकारी समय समय पर मिलती रहती है। मिट्टी में विभिन्न पोषक तत्वों की उपलब्धता की दशा का ज्ञान हो जाता है। बोयी जाने वाली फसल के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता का अनुमान लगाया जा सकता है। संतुलित उर्वरक प्रबन्ध द्वारा अधिक लाभ कमा सकते है। मिट्टी जांच कब करानी चाहिए मिट्टी की जांच के समय ध्यान देना चाहिए की भूमि में नमी की मात्रा कम से कम हो। फसल की बुवाई या रोपाई से एक महीना पहले खेत की मिट्टी की जांच कराएं। अगर आप सघन पद्धति से खेती करते हैं तो हर वर्ष मिट्टी की जांच करवानी चाहिए। यदि खेत में वर्ष में एक फसल की खेती की जाती है तो हर 2 या 3 साल में मिट्टी की जांच करा लें। मिट्टी की जांच कैसे करे एक एकड़ क्षेत्र में लगभग 8-10 स्थानों से ‘V’ आकार के 6 इंच गहरे गहरे गढ्ढे बनायें। एक खेत के सभी स्थानों से प्राप्त मिट्टी को एक साथ मिलाकर ½ किलोग्राम का एक नमूना बनायें। नमूने की मिट्टी से कंकड़, घास इत्यादि अलग करें। सूखे हुए नमूने को कपड़े की थैली में भरकर कृषक का नाम, पता, खसरा संख्या, मोबाइल नम्बर, आधार संख्या, उगाई जाने वाली फसलों आदि का ब्यौरा दें। नमूना प्रयोगशाला को प्रेषित करें अथवा’ ‘परख’ मृदा परीक्षण किट द्वारा स्वयं परीक्षण करें।
बीज पौधे का वह भाग होता है जिसमें पौधों के प्रजनन की क्षमता होती है और जो मृदा के सम्पर्क में आने पर अपने जैसा ही एक नये पौधे को जन्म देता है। बीज फसल के दाने का पूर्ण या आधा भाग भी हो सकता है। यह बात बताने की जरुरत नहीं है की एक सफल, गुणवत्तापूर्वक, लहराती उपज के लिए उच्च कोटि का रोग रहित, स्वस्थ और उन्नत बीज की आवश्यकता होती है | बीज को निरोग और स्वस्थ बनाने के लिए बीज उपचार किया जाता है जिसमे बीज को अनुशंसित रसायन या जैव रसायन से उपचारित करना होता है | बीज उपचार से बीज में उपस्थित आन्तरिक या वाह्य रोगजनक जैसे फफूंद, जीवाणु, विषाणु एवं सूत्रकृमि और कीट नष्ट हो जाते है और बीजों का स्वस्थ अंकूरण तथा अंकुरित बीजों का स्वस्थ विकास होता है | साथ ही पोषक तत्व स्थिरीकरण हेतु जीवाणु कलचर से भी बीज उपचार किया जाता है| बीज उपचार की सभी पहलुओं की जानकारी नीचे उपलब्ध है| बीज उपचार का महत्त्व इसलिए भी है की यह प्रारंभ में ही बीज जनित रोगों और कीटों का प्रभाव न्यून या रोकने में मददगार है| यदि पौधों की वृद्धि के बाद इनको रोकने का प्रयास किया जाये तो इससे अधिक खर्च भी होगा और क्षति भी अधिक होगी| बीजों में अंदर और बाहर रोगों के रोगाणु सुशुप्ता अवस्था में, मिट्टी में और हवा में मौजूद रहते हैं| ये अनुकूल वातावरण के मिलने पर उत्पन्न होकर पौधों पर रोग के लक्षण के रूप में प्रकट होते हैं| फसल में रोग के कारक फफूंद रहने पर फफूंदनाशी से, जीवाणु रहने पर जीवाणुनाशी से, सूत्रकृमि रहने पर सौर उपचार या कीटनाशी से उपचार किया जाता है| मिट्टी में रहने वाले कीटों से सुरक्षा के लिए भी कीटनाशी से बीजोपचार किया जाता है| इसके अतिरिक्त पोषक तत्व स्थिरीकरण के लिए जीवाणु कलचर जैसे राइजोवियम, एजोटोबैक्टर, एजोस्पाइरीलम, फास्फोटिका और पोटाशिक जीवाण से भी बीजोपचार किया जाता है| बीज उपचार बहुत ही सस्ता और सरल उपचार है| इसे कर लेने पर लागत का ग्यारह गुणा लाभ और कभी-कभी महामारी की स्थिति में 40 से 80 गुणा तक लागत में बचत सम्भावित है|
बीज उपचार करने के लिए रसायन या जैव रसायन की अनुशंसित मात्रा कैसे तय करे रोग नियंत्रण हेतु जैव रसायन द्वारा-
ट्राइकोडर्मा- 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज
स्यूडोमोनास- 4 से 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज रसायन द्वारा-
कार्बेन्डाजीम या मैंकोजेव या बेनोमील- 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज
कैप्टान या थीरम- 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज
फनगोरेन- 6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज
ट्रायसाइक्लोजोल- 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज
कीट नियन्त्रण हेतु-
क्लोरपायरीफॉस- 5 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज
इमीडाक्लोप्रीड या थायमेथोक्साम- 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज
मोनोक्रोटोफास- 5 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज (सब्जियों को छोड़कर)
पोषक तत्व स्थिरीकरण हेतु-
नेत्रजन स्थिरीकरण हेतु- राइजोबियम, एजोटोबेक्टर और एजोस्पाइरील- 250 ग्राम प्रति 10 से 12 किलोग्राम बीज
पोटाश स्थिरीकरण हेतु- पोटाशिक जीवाणु- 250 ग्राम प्रति 10 से 12 किलोग्राम बीज
बीज उपचार निम्न ४ विधियों से किया जा सकता है -
सुखा बीजोपचार
भीगे बीजोपचार
गर्म पानी बीजोपचार
स्लरी बीजोपचार बीज उपचार विधि सुखा बीज उपचार- बीज को एक बर्तन में रखें, उसमें रसायन या जैव रसायन की अनुशंसित मात्रा में मिलायें, बर्तन को बन्द करें और अच्छी तरह हिलाएँ| भीगे बीज उपचार- पालीथीन चादर या पक्की फर्श पर बीज फैला दें, अब हल्का पानी का छिड़काव करें, रसायन या जैव रसायन अनुशंसित मात्रा में बीज के ढेर पर डालकर उसे दस्ताना पहने हाथों से अच्छी तरह मिलाकर छाया में सुखा लें| गर्म पानी उपचार- किसी धातु के बर्तन में पानी को 52 डिग्री सेंटीग्रेड तक गर्म करें, बीज को 30 मिनट तक उस बर्तन में डालकर छोड़ दें, उपरोक्त तापक्रम पूरी प्रक्रिया में बना रहना चाहिए, बीज को छाया में सुखा लें उसके बाद बुआई करें| स्लरी या घोल बीज उपचार- स्लरी (घोल) बनाने हेतु रसायन या जैव रसायन की अनुशंसित मात्रा को 10 लीटर पानी की मात्र में किसी टब या बड़े बर्तन में अच्छी तरह मिला लें| अब इस घोल में बीज, कंद या पौधे की जड़ों को 10 से 15 मिनट तक डालकर रखें, फिर छाया में बीज या कंद को सुखा ले तथा बुआई या रोपाई करें|
बीज उपचार से जुडी कुछ सावधानिया -
बीजों में जीवाणु कलचर से बीज उपचार करने के लिए सर्वप्रथम 100 ग्राम गुड़ को 1 लीटर पानी में उबाल लेते हैं, जब यह एक तार के चासनी जैसा बन जाए, तब इसे ठंडा होने के लिए छोड़ दिया जाता है, जब घोल पूरी तरह ठंडा हो जाए, तब इसमें 250 ग्राम कलचर को ठीक से मिला दिया जाता है| अब इस मिश्रित घोल को बीज के ढेर पर डालकर अच्छी तरह मिलाकर बुआई कर सकते हैं|
राइजोबियम कल्चर फसलों की विशेषता के आधार पर किये जाते हैं, इसलिए विभिन्न वर्गों के राइजोबियम को दिये गये फसलों के अनुसार ही उपयुक्त मात्रा में इन्हें प्रयोग किया जाना चाहिए|
कल्चर से उपचारित बीज की बुआई शीघ्र करना चाहिए|
बीजों पर यदि जीवाणु कल्चर प्रयोग के साथ-साथ फफूंदनाशी या कीटनाशी रसायनों का प्रयोग करना हो तब सबसे पहले फफूदनाशी का प्रयोग करे फिर कीटनाशी और जीवाणु कलचर का प्रयोग करे और सबके बीच 8 से 10 घंटे का अंतर रखे और उसके उपरान्त एवं अन्त में 20 घंटे के बाद जीवाणु कलचर से बीज उपचार करना चाहिए|
यदि जीवाणु कलचर प्रयोग के साथ-साथ फफूंदनाशी और कीटनाशी रसायन का प्रयोग अनिवार्य हो तब कलचर की मात्रा दोगुनी करनी पड़ेगी| यदि कलचर पहले प्रयोग में लाया गया है, तो फफूंदनाशी और कीटनाशी रसायनों का इस्तेमाल न करें तो ज्याद अच्छा होगा|
बीज को कभी भी उपचार के बाद धूप में नही सुखायें, यानि उपचारित बीज को सुखाने के लिए खुला परन्तु छायादार जगह का प्रयोग करें|
बीज को उपचारित करते समय हाथ में दस्ताना पहनकर ही बीज उपचार करें, यदि थिरम से बीज उपचार करना हो तो आँखों पर चश्मा का प्रयोग करें, क्योंकि थीरम को पानी में मिलाने पर गैस निकलती है, जो आँखों में जलन पैदा करती हैं|
किसी कारण से यदि रसायन या जैव रसायन का फफूंदनाशी या कीटनाशक उपलब्ध न हो तो घरेलू विधि में ताजा गौ-मूत्र 10 से 15 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज के द्वारा भी बीज उपचार कर सकते हैं|
नाग पंचमी हिन्दू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है जिस पर नाग देवता की पूरे विधि-विधान से पूजा अर्चना होती है। हर साल नाग पंचमी का यह त्योहार सावन की शुक्ल पक्ष की पंचमी को पड़ता है। इस दिन नागों को दूध और लावा चढ़ाने की परंपरा भी है| परंपरा से प्रचिलित कथा के अनुसार- एक बार एक लड़की का भाई भोलेनाथ का परम भक्त था| वह रोज़ सुबह प्रातः भगवान शिव को जल चढाने के लिए मंदिर जाता था, वहां उसे रोज़ नाग देवता के दर्शन होते थे| वह लड़का हर दिन नाग देवता को दूध पिलाता था जिससे धीरे-धीरे दोनों में प्रेम बढ़ गया| अब नाग देवता जब भी उस लड़के को मंदिर में देखते तो अपनी मणि छोड़कर उसके पैरों में लिपट जाते| इसी तरह एक दिन सावन के महीने में लड़का अपनी बहन के साथ शिव जी के मंदिर जल चढाने गया, उस लड़के को मंदिर में देखते ही साँप फिर से उसके पैरों में लिपट गया| यह सब देख लड़के की बहन डर गयी उसे लगा की साँप उसके भाई को काट रहा है तो उसने पास में पड़ी लाठी से साँप को मार डाला| साँप के मरने के बाद लड़के ने अपनी बहन को पूरी बात बताई तो उस लड़की को अपनी गलती पर बड़ा पछतावा हुआ| फिर वहां उपस्थित लोगों ने कहा कि - नाग "देवता" का रूप होते हैं, अब तुम्हें दंड मिलेगा चूंकि: ये अपराध तुमसे अनजाने में हुआ है इसलिए कालांतर में लड़की की जगह गुड़िया को पीटा जायेगा| इसलिए तभी से आज तक नाग पंचमी के दिन गुड़िया को पीटा जाता है| और तभी से आज तक- नाग पंचमी को गुड़िया भी कहते हैं|
भारत एक विशालतम देश है, जितना विशाल इसका क्षेत्रफल है उतनी ही विशाल और भव्य इसकी कला शैली और पद्धति है जिसे लोककला के नाम से जाना जाता है। लोककला के अलावा भी परम्परागत कला का एक अनोखा स्वरुप है जो अलग-अलग जनजातियों और देहात के लोगों में प्रचलित है। इसे जनजातीय कला के रूप में वर्गीकृत किया गया है। भारत की ग्रामीण लोक चित्रकारी बहुत ही सुन्दर हैं जिसमें आपको धार्मिक और आध्यात्मिक चित्रों का बखूबी वर्णन मिलेगा। ऐसी ही कुछ चित्रकलाओ के बारे में हम यहां आपको रूबरू करवा रहे है।
मधुबनी चित्रकारी
मधुबनी चित्रकारी बिहार के मधुबनी क्षेत्र की लोकप्रिय कला है जिसे मिथिला की कला भी कहा जाता है। इसकी विशेषता चटकीले और विषम रंगों के इंद्रधनुष से भरे गए रेखा-चित्र अथवा आकृतियां हैं। कहा जाता है ये चित्रकला राजा जनक ने राम सीता के विवाह के दौरान महिला कलाकारों से बनवाई थी। तब से यह चित्रकारी पारम्परिक रूप से इस प्रदेश की महिलाएं ही करती आ रही हैं लेकिन आज इसकी बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए पुरूष भी इस कला से जुड़ गए हैं। ये चित्र अपने आदिवासी रूप और मटियाले रंगों के प्रयोग के कारण पसंद की जाती हैं। प्राचीनकाल में यह कार्य दीवार या भित्ती पर या कच्ची मिट्टी पर किया जाता था परन्तु इसकी लोकप्रियता देख कर आज इसे कागज़, कपड़े, कैनवास आदि पर किया जा रहा है। इस चित्रकारी में शिल्पकारों द्वारा तैयार किए गए खनिज रंगो का प्रयोग होता है।काला रंग काजल और गोबर को मिलाकर तैयार किया जाता हैं, पीला रंग हल्दी, पराग, नीबूं और बरगद की पत्तियों के दूध से; लाल रंग कुसुम के फूल के रस या लाल चंदन की लकड़ी से; हर रंग कठबेल (वुडसैल) वृक्ष की पत्तियों से, सफेद रंग चावल के चूर्ण से; संतरी रंग पलाश के फूलों से तैयार किया जाता है। रंगों का प्रयोग सपाट रूप से किया जाता है जिन्हें न तो रंगत (शेड) दो जाती है और न ही कोई स्थान खाली छोड़ा जाता है।
तंजौर कला
यह कला लोक-कहानी - किस्से सुनाने की विस्मृत कला से जुड़ी है। भारत की हर कला का प्रयोग अधिकांशतह किसी बात की अभिव्यक्ति करने के लिए किया जाता है तंजौर कला भी कथन का एक प्रतिपक्षी रूप है। राजस्थान, गुजरात और बंगाल में तंजौर कला के माध्यम से वीरों और देवताओं की पौराणिक कथाएं सुनायी जाती हैं और हमारे प्राचीन वैभव और भव्य सांस्कृतिक विरासत का बहुमूर्तिदर्शी चित्रण किया जाता है।
वारली लोक चित्रकारी
वार्ली लोक चित्रकला भारत के महाराष्ट्र प्रान्त की है। वार्ली एक बहुत बड़ी जनजाति है जो पश्चिमी भारत के मुम्बई शहर के उत्तरी बाह्मंचल में बसी है। भारत के इतने बड़े महानगर के इतने निकट बसे होने के बावजूद वार्ली के आदिवासियों पर आधुनिक शहरीकरण कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। वार्ली, महाराष्ट्र की वार्ली जनजाति की रोजमर्रा की जिंदगी और सामाजिक जीवन का सजीव चित्रण है। यह चित्रकारी वे मिट्टी से बने अपने कच्चे घरों की दीवारों को सजाने के लिए करते थे। लिपि का ज्ञान नहीं होने के कारण लोक साहित्य को आम लोगों तक पहुंचाने को यही एकमात्र साधन था। मधुबनी की चटकीली चित्रकारी के मुकाबले यह चित्रकला बहुत साधारण होती है।
पताचित्र चित्रकारी
पत्ताचित्र शैली ओडिशा राज्य की प्राचीनतम और सर्वाधिक लोकप्रिय कला है। पत्ताचित्र का नाम संस्कृत के पत्ता जिसका अर्थ है कैनवास और चित्रा जिसका अर्थ है तस्वीर शब्दों से मिलकर बना है।पत्ताचित्र चित्रकारी में चटकीले रंगों का प्रयोग करते हुए सुन्दर तस्वीरों के माध्यम से पौराणिक चित्रण होता है। ऐसी कुछ लोकप्रिय निम्न चित्रकलाये है:- वाधिया-जगन्नाथ मंदिर का चित्रण; जगन्नाथ का भगवान कृष्ण के रूप में छवि जिसमें बाल रूप में उनकी शक्तियों को प्रदर्शित किया गया है; दसावतारा पति - भगवान विष्णु के दस अवतार; पंचमुखी - पांच सिरों वाले देवता के रूप में श्री गणेश जी का चित्रण
कलमेजुथु
रंगोली और कोलम शब्द हमारे लिए अनजाने नहीं है, रंगोली हिन्दू परिवारों की दिनचर्या का एक हिस्सा है, जो घर में देवी-देवताओं के स्वागत के लिए घर की देहली और आंगन में बनाई जाती हैं। कला का यह रूप आर्य, द्रविड़ और आदिवासी परम्पराओं का बहुत सुन्दर मिश्रण है। कालम (कालमेजुथु) इस कला का एक विचित्र रूप है जो केरल में दिखाई देता है जहा मंदिरों और पावन उपवनों में फर्श पर काली देवी और भगवान के चित्र बनाए जाते हैं। इस कला के चित्रण में प्राकृतिक रंग, द्रव्यों और चूर्णों का प्रयोग किया जाता है। चित्र केवल हाथों से ही बनाए जाते हैं, तस्वीर बनाने का कार्य मध्य से शुरू किया जाता है और फिर एक-एक खण्ड तैयार करते हुए इसे बाहर की ओर ले जाते हैं। चूर्ण को अंगूठे और तर्ज़नी अंगुली की मदद से चुटकी में भरकर एक पतली धार बनाकर फर्श पर फैला देते हैं। चित्रों में सामान्यत: क्रोध अथवा अन्य मनोभावों की अभिव्यक्ति की जाती है। 'कालमेजुथु' पूर्ण होने पर देवता की उपासना की जाती है। उपासना में कई तरह के संगीत के वाद्यों को बजाते हुए भक्ति के गीत गाए जाते हैं। 'कालम' को पूर्व-निर्धारित समय पर बनाना शुरू किया जाता है, और अनुष्ठान समाप्त होते ही इसे तत्काल मिटा दिया जाता है।
नीम की दातून- नीम की दातून करना अब कुछ गांवों में ही प्रचलित है | हमारे पूर्वज नीम की डंडी तोड़कर (दातून) उससे दाँत साफ करते थे। कभी-कभी सरसों के तेल में नमक मिलाकर भी दांत साफ किए जाते थे। इन दोनों ही तरीको के हमारे दांतो को अनेक फायदे थे, इससे जहां दाँत और आँत की अच्छी तरह सफाई हो जाती है वही यह दाँतों और मसूड़ों को मजबूत बनाये रखने में असरदार है | इसके अलावा हमारे शरीर का खून भी साफ़ होता है तथा आँखों और कानो का रखरखाव में भी सहायक होती है नीम की दातून।
आँखों में सुरमा लगाना - सुरमा लगाने का प्रचलन भारत में प्राचीन समय से ही रहा है। सुरमा मूल रूप से पत्थर के रूप में पाए जाता है। इससे रत्न भी बनते हैं | सूरमा लगाने से न केवल हमारी आँखे खूबसूरत दिखती है बल्कि यह तंदुरुस्त भी रहती है और सूरमा हमारी आँखों को ठंडक भी पहुँचता है | गुड़-चने और सत्तू का सेवन- प्राचीन लोग जब तीर्थ या यात्रा पर जाते थे तो साथ में गुड़, चना या सत्तू लेकर जाते थे, कारण भूना हुआ सत्तू कई दिनों तक काम में लिया जा सकता है और यह पचाने में हल्का होता है साथ ही हमारे शरीर को ठंडक भी देता है। । गर्मियों में अधिकतर लोग कड़ी धूप और लू से बचने के लिए इसका सेवन करते थे। ऐसे ही गुड़ और चना भी हमारे शरीर के लिए बहुत लाभकारी है, कब्ज और एनीमिया जैसी बीमारी को नियमित रूप से गुड़ और चने का सेवन करके खत्म किया जा सकता है| गुड़ और चना हमारे शरीर को ऊर्जावान रखते हैं, जिससे थकान और कमजोरी महसूस नहीं होती। तुलसीपत्र का सेवन - तुलसी का पौधा एक एंटीबायोटिक मेडिसिन हैं| प्राचीनकाल में लोग प्रतिदिन तुलसी की पत्ती का सेवन करते थे इसलिए तब घरों के आँगन में तुलसी का पौधा भी हुआ करता था। तुलसी के पत्ते को यदि तांबे के बर्तन में पानी के साथ मिलाकर कुछ घंटे रखने के बाद उसका जल पिया जाये और तुलसीदल को भी खा लिया जाये तो जीवन में कभी कैंसर होने की सम्भावना न के बराबर रह जाती है तथा अन्य कई रोगो से भी मुक्ति मिल जाती हैं| इसका नियमित सेवन शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोत्तरी करता है| इसके अलावा तुलसी का पौधा अगर घर में हो तो मच्छर, मक्खी, सांप आदि से भी बचाव होता है।
दोनों हाथ जोड़कर स्वागत करना - प्राचीन काल में हाथ जोड़ कर एक दूसरे का अभिनन्दन या घर आये अतिथियों का स्वागत किया जाता था, जो आजकल अमूमन देखने को मिलता नहीं है| वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो 'नमस्ते' मुद्रा में हमारी उँगलियों के शिरो बिंदुओं का मिलान होता है जहाँ- आंख, कान और मस्तिष्क के प्रेशर प्वॉइंट्स (दबाव केंद्र) होते हैं जो दोनों हाथ जोड़ने पर इन बिंदुओं पर दबाव बनाते है जिससे हमारे शरीर में रक्त संचालन सुचारु रूप से होता है और कई रोगो से मुक्त भी रहता है साथ ही साथ नमस्ते की मुद्रा में हम किसी अन्य व्यक्ति से शारीरिक संपर्क में भी नहीं आते है और कीटाणुओं के संक्रमण का खतरा भी नहीं रहता। परंपरागत घरेलू नुस्खे और कहावतें - प्राचीन लोगों को इन नुस्खों और कहावतों का बहुत ज्ञान होता था जो वर्तमान पीढ़ी में देखने को नहीं मिलता है क्योंकि अब उनको दादा- दादी या नाना- नानी के साथ रहने के उतने अवसर नहीं मिल पाते जो पहले या तो संयुक्त परिवार के कारण प्राप्त थे या इस नियम के तहत की हर छुट्टिया दादी नानी के घर ही बितानी है| आज समय बदल गया है और यही कारण है की दादी और नानी अपने अनुभव और ज्ञान को आगे की पीढ़ियों में पहुँचा सकने में असमर्थ है| कहावतों में जीवन का बहुत गहरा राज़ छिपा होता था जो इंसान को मजबूत और संयमित बनाते थे, इसी प्रकार घरेलू नुस्खों में कई बीमारियों और परेशानियों का घर बैठे इलाज़ संभव था |
सबकी ज़िन्दगी में दुःख और सुख समय समय पर आते जाते रहते है, और हम सब सुख दुःख से प्रभावित भी होते है जो कि एक साधारण बात है, मगर यदि किसी में अवसाद की स्थिति होती है ये दुःख कई गुना ज़्यादा गहरा, लंबा और दुखदायी होता है। कई लोग अवसाद की कारण जीने की इच्छा खो बैठते है और रोजाना के दैनिक कार्यो में भी उनका मन नहीं लगता, किसी से मिलना जुलना हसना बोलना उन्हें पसंद नहीं आता। विशेषज्ञ कहते हैं कि अवसाद की सबसे खराब स्थिति में पीड़ित आत्महत्या तक कर सकता है। हर साल संसार में करीब 8 लाख लोग आत्महत्या करते है, और इनमे से 17% यानी 135000 भारतीय है। हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति आत्महत्या का शिकार हो जाता है और हर 3 सेकेंड में एक व्यक्ति प्रयास करता है आत्महत्या के लिए। अवसाद के पीड़ित पूरे विश्व में पाए जाते है और माना जाता है की भारत में करीब पांच करोड़ लोग इससे पीड़ित हैं। किसे होता है अवसाद? बच्चे से लेकर बुजुर्गों तक में अवसाद देखा गया है। तनाव युक्त जीवन, अत्यधिक महत्वकांक्षी होना इन्हें और बढ़ाता है। लोग जब चुनौतीपूर्ण समय से गुज़र रहे होते हैं तो उनके अवसाद में जाने की आशंका अधिक हो जाती है। जिन लोगों के परिवार में अवसाद का इतिहास रहा हो वहाँ भी लोगों के अवसाद पीड़ित होने की आशंका ज़्यादा होती है। क्या होता है ये अवसाद? अवसाद से जुडी जयंती भी जानकारी पायी गयी है उसमे कही भी ये साफ़ साफ़ रूप से देखने में नहीं आया है की आखिर ये अवसाद किस वजह से होता है, मगर विशेषज्ञों का मानना है की इसके लिए कई पहलु जिम्मेदार हो सकते है, जैसे - मन का निराशापूर्ण रहना, हर वक़्त कुछ बुरा होने की भावना से ग्रसित रहना, किसी नज़दीकी से बिछुड़ जाने का दुःख जो असहनीय रूप से मन को दुखी कर रहा हो। कुछ भी काम करने से पूर्व सोच लेना कि में सफल नहीं होऊंगा, खुद को कमज़ोर या किसी लायक न समझना, कभी कभी कुछ बीमारियों के कारण भी लोगो को अवसाद हो जाता है जिनमें एक थायरॉयड की कम सक्रियता होना हैI कुछ दवाओं के साइड इफ़ेक्ट्स में भी अवसाद हो सकता है। इनमें ब्लड प्रेशर कम करने के लिए इस्तेमाल होने वाली कुछ दवाएँ शामिल हैं। अवसाद के लक्षण इस अवस्था में व्यक्ति में अपना भला बुरा सोचने की क्षमता समाप्त हो जाती है, वह स्वयं की शक्ति को पहचानने में असमर्थ हो जाता है और सदा लाचारी की स्थिति में रहता है। उसे निराशा सदा घेरे रहती है और अपने आस-पास किसी को पसंद नहीं करता है। चिंता, उदासीनता, असंतोष, खालीपन, अपराध बोध, निराशा, मिजाज बदलते रहना, घबराहट अथवा सुख प्रदान करने वाले कार्यों से भी सुख प्राप्त ना होना। अकेलापन उसे अच्छा लगता है। किसी की भी बात भले ही मजाक में कही गई हो उसे तीर की तरह चुभ जाती है हर बात को अपने से जोड़ लेता है और सब पर संदेह करता है। कुछ अवसादग्रस्त व्यक्ति ऐसे भी होते है जो जब तक दिनभर काम में व्यस्त होते हैं तब तक वे अवसाद की स्थिति से दूर रहते हैं परन्तु जैसे ही वे अकेले हो जाते हैं फिर से अवसाद में डूब जाते हैं। मुख्य रूप से अवसाद के निम्न तीन लक्षण दिखाई पड़ते है - 1.ऐसे अवसाद की स्थिति में किसी भी काम या चीज़ में मन नहीं लगता है, कोई रुचि नहीं होती, किसी बात से कोई खुशी नहीं होती और तो और दुःख का भी अहसास नहीं होता है। 2.हर समय नकारात्मक सोच रहना। 3.नींद न आना या बहुत नींद आना, आधी रात को नींद खुल जाना और अगर ऐसा दो सप्ताह से अधिक चले तो अवसाद की निशानी है। अवसाद से बचाव के कुछ तरीके अवसाद की स्तिथि यदि शुरुआती है तो इसे अपने स्तर पर संभाला जा सकता है परन्तु समस्या गंभीर हो जाने पर डॉक्टर से सलाह करके उपचार करना जरुरी है। आहार, योग, प्राणायाम और ध्यान उपचार हेतु बहुत हद तक लाभप्रद है। अवसाद से बचाव के कुछ नियम जानते है। सबसे पहले अवसाद ग्रसित लोगो को या सामान्य लोगो को भी अपनी नींद के समय और जागने के समय को नियमित करना चाहिए, कम से कम ८ घंटे की पर्याप्त नींद ले। अपने दिन भर के भोजन को खाने का समय निश्चित करे और हर भोजन से बीच ४-५ घंटे का अंतराल रखे, भोजन पौष्टिक और सम्पूर्ण ले। अपनी दिनचर्या में व्यायाम, योग, ध्यान, सूर्य नमस्कार या कोई भी हलकी फुलकी आपने मन को भाने वाले व्यायाम को शामिल करे नियमित रूप से करे, ये न केवल आपके शरीर को बल्कि मन को भी मज़बूत बनाएगा। आज के समय में ऐसा कोई नहीं है जिसे तनाव न हो, तनाव सभी को होता है मगर कोशिश ये करनी चाहिए की इसे कम कैसे किया जाये, इसके लिए अपने आप को व्यस्त रखे, दोस्तों से मिले जुले, परिवार के बड़े बुजुर्ग, बच्चो के साथ समय बिताये, अच्छी किताब पढ़े, संगीत सुने, या अपनी रुचिपूर्ण कार्यो में मन लगाए, इधर उधर के विचार अपने दिमाग में न रखे। अपनी महत्वकांक्षा को उतना ही रखना जितना हासिल करना संभव हो, अपनी ज़िन्दगी की तुलना दुसरो से कतई न करे, दुसरो की देखादेखी में अपने जीवन की शांति भंग न करे। एक महत्वपूर्ण बात हमेशा याद रखें, इससे फर्क नहीं पड़ता आप कौन हैं, जीवन तब तक सही नहीं चलता जब तक आप सही चीजें नहीं करते। यदि आप सही परिणाम चाहते हैं तो सही कार्यों का चयन करें फिर जीवन हर दिन एक खूबसूरत चमत्कार से कम नहीं है। हमें अपने जीवन की बागडोर या जिम्मेदारी अपने हाथ लेनी होगी जिससे हमारे अन्दर की असीमित क्षमताएं निखर कर आये और तनाव रहित जीवन बने। श्री श्री रविशंकर जी कहते हैं - "यदि आप दुःखी है, तो इसका कारण कोई और नहीं किन्तु आप स्वयं है। आपको न कोई ख़ुशी दे सकता है न दुःख। आपकी अत्यधिक महत्वकांक्षाओ और अपेक्षाओं ने आपको दुःखी कर रखा है, अपनी इच्छाओं को गेंद की तरह उछाल फेंके। जिम्मेदारी और चिंता ईश्वर को समर्पित कर दें।"
यूँ तो भारत में मिलने वाली सभी सब्जिया व फल सेहत और गुणों से भरपूर है, हर एक फल और सब्जी का यदि सही जानकारी के साथ सेवन किया जाये तो हम अनेक प्रकार के रोगो से बचाव कर सकते हैI आइये जानते है हरी धनिया पट्टी और शकरकंद के वो गुण जो शायद आपने कभी सुने नहीं होंगे I यूँ तो हरी धनिया भारतीय रसोई का अभिन्न अंग है, चाहे दाल हो या सब्जी या चटनी इसके बिना हर स्वाद और रूप रंगत फीकी पड़ जाती है I धनिया पत्ती का इस्तेमाल केवल सब्जियों के ऊपर डाल कर सुन्दर दिखने का ही नहीं बल्कि ये हमारे लिए कितनी गुणकारी है इसकी जानकारी लेते हैI प्रोटीन, वसा, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट्स, खनिज लवण, आयरन आदि से भरपूर हरा धनिया पेट से जुडी अनेक समस्याओं को ठीक करने में मददगार होता है। इसकी हरी हरी ताज़ी पत्तियों को छाछ और दही के मिलाकर खाया जाए तो यह अपचन, एसिडिटी और खट्टी डकारों को दूर करता है और पाचन का कार्य करने में बेहद लाभप्रद है। धनिया में विटामिन ए प्रचुर मात्रा में होता है जिससे आंखों की सेहत बानी रहती है। कमज़ोरी या थकन या अचानक सिर घूमने लगे तो धनिया के रस का सेवन करना चाहिए। तनाव और थकान दूर करने के लिए धनिया एक कारगर नुस्खा है। धनिये में पाया जाने वाला सुगंधित तेल अवसाद को दूर करने में सहायक होता है। किडनी की सेहत को दुरुस्त बनाए रखने और किडनी की सफाई करने के लिए धनिया एक कारगार औषधि है। एक मुट्ठी धनिया की ताज़ी पत्तियो को धो कर उबाल ले और इसे छानकर रोज़ाना कम से कम एक बार पिएंगे तो असरकारक होता है। सभी स्वस्थ लोगों को भी धनिया का जूस नियमित तौर से पीते रहना चाहिए।
शकरकंद में जितने फायदे होते है उस हिसाब से यह एक अपेक्षित फल है, लोग इसका सेवन सर्दियों में स्वाद के रूप में एक दो बार करते है। जबकि ये इतने गुणों से युक्त होता है की इसका सेवन प्रतिदिन किया जाना चाहिए। शकरकंद एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर होते हैं और इसके छिलकों में बीटा कैरोटीन पाया जाता है। महिलाओं द्वारा रोज शकरकंद का सेवन करने पर महिलाओं में स्तन कैंसर होने की संभावनांए कम हो जाती है। शकरकंद का जूस स्तन कैंसर होने पर कैंसर कोशिकाओं की वृद्दि रोकता है और नयी कैंसर कोशिकाओं के बनने के चक्र को रोकता है। शकरकंद में आयरन, फोलेट, कॉपर, मैग्नीशियम, विटामिन आदि होते हैं, जिससे हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत बनती है। सौंदर्य प्रेमी लोगो को ये जानकार ख़ुशी होगी की शकरकंद खाने से त्वचा चमकदार बनती है और जल्दी झुर्रियां भी नहीं पड़ती। शकरकंद के सेवन से आंखों की रौशनी बढती है, इसमें मौजूद बीटा कैरोटीन शरीर में फ्री रैडिकल्स से लड़ता है और जल्द बुढ़ापा नहीं आने देता। इसमें विटामिन सी पाया जाता है जो कि त्वचा में कोलाजिन का निर्माण कर के त्वचा की काया बनाए रखता है।
अपनी दिनचर्या में हलके फुल्के बदलाव से बनाइये अपने फेफड़ो को मजबूत
कोरोना वायरस की दूसरी लहर अब लगभग कम हो गयी है परन्तु यह मान लेना की यह बीमारी खत्म हो गयी है तो गलत होगा I सभी जानते हैं कि कोरोना वायरस की चपेट में आने के बाद शरीर के कई अंगों को नुकसान होता है और सबसे ज्यादा प्रभाव फेफड़ों पड़ता हैI फेफड़े हमारे शरीर का बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है यह सभी शारीरिक कार्यों के लिए ऑक्सीजन प्रदान करता है I इसको तंदुरुस्त और मजबूत बनाये रखने के लिए निम्न जानकारियों की सहायता से घर बैठे फायदा उठा सकते है और कोरोना या अन्य फेफड़ो की बीमारियों से बचाव कर सकते है I हल्का व्यायाम व्यायाम से हमारे शरीर को होने वाले फायदों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है, फेफड़ों की क्षमता तेज चलने, दौड़ने, तैरने, गुब्बारा फुलाने या साइकिल चलाने आदि से बढ़ती है. इन व्यायामों को अपने जीवन में नियमित रूप से अपनाने से फेफड़ों की सेहत में सुधार कर सकते हैं I गहरी सांस लेने का व्यायाम दिनभर में किसी भी समय 10-15 मिनट के लिए शांत, एकांत में बैठ कर धीरे धीरे सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया का अभ्यास करना चाहिए, इससे हमारे फेफड़े तो मजबूत होते ही है बल्कि शरीर में रक्त प्रवाह बेहतर होता है, ऊर्जा का स्तर बढ़ता है, पाचन तंत्र में सुधर होता है, मन और शरीर को आराम मिलने के साथ साथ शरीर से विषैले पदार्थ भी बहार निकल जाते है I प्रकृति के साथ कुछ पल बिताये अपने फेफड़ो की मजबूती और बेहतरी के लिए बहुत जरुरी है की हम कुछ समय प्रकृति के साथ बिताये, इसके लिए हम खुली हवा का आनंद ले सकते है, सुबह की धुप का सेवन कर सकते है, हरियाली या बागीचे में कुछ पल बिता कर भरपूर मात्रा में शुद्ध ऑक्सीजन ले सकते है I पौष्टिक भोजन खाने में प्रतिदिन पौष्टिक भोजन खाना चाहिए, सही मात्रा में विटामिन, खनिज और प्रोटीन लेना चाहिए I जो की हमे हरी पत्तेदार सब्जिया, दाल, दूध, फलो के सेवन से मिलता है I पौष्टिक भोजन से श्वसन की मांसपेशियों और फेफड़ों की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत बनती हैI खूब पानी पिएं हम सब अच्छी तरह से जानते है की मानव शरीर 70 % पानी से बना है, यदि हम अपने शरीर को स्वस्थ रखना चाहते है तो इसे भरपूर पानी का सेवन करना चाहिए, सामान्यतः एक स्वस्थ शरीर को ३-४ लीटर पानी की आवश्यकता होती है, इसलिए दिन भर में खूब पानी पिए और अपने गले को तर रखे I हो सके तो भोजन करने के आधे घंटे बाद गुनगुने पानी का सेवन करे I प्रदूषण से बचें फेफड़ों की क्षमता पर प्रदूषण नकारात्मक प्रभाव डालता है, इसलिए प्रदूषण से बचना चाहिए और प्रदुषण से बचाव के लिए घर से बाहर जाते समय मास्क जरूर लगाना है I नियंत्रित वजन फेफड़ों की क्षमता अधिक वजन होने से भी कम होती है, क्योंकि पेट का मोटापा फेफड़ों को सही तरीके से काम नहीं करने देता है I इसके लिए प्रतिदिन व्यायाम, संतुलित आहार और सुसंचालित दिनचर्या काफी मददगार हैI धूम्रपान और शराब छोड़ दें अगर फेफड़ों की क्षमता मजबूत रखनी है, तो सबसे पहले धूम्रपान और शराब से छुटकारा पाना होगा, इसके अलावा तंबाकू समेत अन्य उत्पादों से बचना होगा I
देश में सफाई कर्मी ही नहीं हर वर्ग पीड़ित है चाहे वह मजदूर हो या किसान – पवन दूबे
राष्ट्रीय किसान मंच ने वाराणसी में अखिल भारतीय सफ़ाई मज़दूर संघ के समर्थन में मज़दूरों की स्थाई नियुक्ति का समर्थन किया साथ ही कहा कि किसान आंदोलन में पूर्वांचल के किसानों की हिस्सेदारी सुनिस्चित करने की दिशा में राष्ट्रीय किसान मंच पूर्वांचल के जिलों में जन सम्पर्क अभियान के अंतर्गत किसानों में आंदोलन के प्रति जागरूकता अभियान भी चला रहा है।
सदस्य प्रदेश कार्यसमिति मोहित मिश्रा के नेतृत्व में एसडीएम कार्यालय का घेराव
आज दिनांक 11/08/2021 को राष्ट्रीय किसान मंच के पूर्व प्रदेश महासचिव एवं सदस्य प्रदेश कार्यकारिणी मोहित मिश्रा के नेतृत्व में सैकड़ों किसानों ने आवारा पशु किसान सम्मान निधि मिश्रिख तहसील में स्टांप घोटाला एवं कालाबाजारी आदि समस्याओं को लेकर एसडीएम मिश्रिख का घेराव किया ग्राम में पूर्व प्रदेश महासचिव मोहित मिश्रा ने तहसील के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को चेताया यदि किसानों का शोषण किया गया तो यह लापरवाही किसी भी हद तक बर्दाश्त नहीं की जाएगी और उपजिलाधिकारी मिश्रीख एवं अन्य पुलिस के अधिकारी किसानों को कोविड-19 का प्रोटोकॉल मत दिखाएं कोविड-19 का प्रोटोकॉल केवल किसानों के लिए है भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के लिए नहीं है जो जानबूझकर इतनी भीड़ इकट्ठा करते हैं किसान भाइयों की सभी समस्याओं का समाधान यदि 1 हफ्ते के अंदर नहीं किया गया तो राष्ट्रीय किसान मंच दोबारा हजारों किसानों के साथ सीतापुर तक पैदल मार्च करके जिलाधिकारियों को अपनी समस्याओं से अवगत कराएगा , एसडीएम मिश्रिख ने धरना स्थल पर किसानों की समस्याओं को सुना और 1 सप्ताह के अंदर उनका निराकरण करने की बात कही तथा तहसील मिश्रिख में चार नवीन गौशालाओं का निर्माण हेतु कार्य तत्पर है जल्दी गौशाला चालू हो जाएंगे तथा केसुआ मऊ ग्राम सभा के लेखपाल को तत्काल निलंबित कर उसके जगह पर दूसरे लेखपाल की तैनाती की गई धरना स्थल पर का कार्यवाहक तहसील अध्यक्ष अमरीश कनौजिया, अनुज अवस्थी पूर्व जिला उपाध्यक्ष, मनोज अवस्थी, वीरेंद्र मौर्य, राजेश कनौजिया रजनीश मौर्या आशीष मिश्रा ,अवनीश मिश्रा, राहुल अवस्थी, होरीलाल वर्मा, कमलेश सिंह ,रजनीश शुक्ला, मनीष दीक्षित ,दुलारे कनौजिया, देशराज सिंह ,भारतेंदु मिश्रा, आशीष सिंह ,आशीष त्रिवेदी, अजय तिवारी अज्जू , सुंदर सिंह ब्लॉक अध्यक्ष मछरेहटा , एवं कई किसान भाई मौजूद रहे
देश भर के किसानों को प्रयागराज में इकट्ठा करेगा राष्ट्रीय किसान मंच – सुरिंदर बक्शी
राष्ट्रीय किसान मंच आगामी सितम्बर के महीने में देश भर के किसानों को प्रयागराज में इकट्ठा करेगा और केंद्र व राज्य की सरकारों को यह सन्देश देने का प्रयास करेगा कि जो बार.बार ये भ्रम फैला रहे हैं कि देश के कुछ प्रदेशो या कुछ जिलों के ही किसान इस कृषि बिल के खिलाफ हैं वो गलत हैं। आज देश का हर वर्ग परेशान है चाहे वो किसान होए मजदूर हो या बेरोजगार युवा हो। कोविड के नाम पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुए हैंए कोविड ने रोजगार के मुद्दे पर पूरी तरह फेल सरकार की नाकामियों को छुपाने में बड़ा सहयोग किया। किसान को बीज लेना हो कीटनाशक लेना हो या खाद लेनी हो तत्काल भुगतान करना होता हैं लेकिन सराकरें किसानों के पैसों का भुगतान रोके रहती ह हम पूरे पूर्वांचल को और बिहार को व आधे मध्य प्रदेश को इसमें आवाहन करके बुलाएँगे और इसका एक बड़ा सन्देश केंद्र सरकार को देंगे कि देश भर का किसान आप के बिल के खिलाफ है और इसके दिनांक की घोषणा जल्द ही लखनऊ में राष्ट्रीय अध्यक्ष पं० शेखर दीक्षित जी द्वारा निर्धारित की जाएगी। किसान बिल में जो समस्याएं है और इसके नाम पर जो सरकार और सरकार के लोग भ्रम फैला रहे हैं वो न किसानों को न ही किसान नेताओं को मंजूर होगा। इसके लिए एक देशव्यापी आंदोलन होगा। यदि सरकार ने इस बिल को वापस नहीं लिया तो ये बिल उनके कार्यकाल में ताबूत की आखिरी कील साबित होगा। इसकी अध्यक्षता सुरिंदर बक्शी ने की और उनके साथ, पवन दूबे (सदस्य प्रदेश कार्यसमिति), सर्वेश पाल (सदस्य प्रदेश कार्यसमिति), राजेश मौर्या (सदस्य जिला कार्यसमिति), राजेश यादव, भानु प्रताप सिंह, लालता प्रसाद तिवारी व अन्य लोग उपस्थित रहे।
कृषि विभाग की इस योजना के अनुसार अब राज्य के किसानों के द्वारा कृषि में इस्तेमाल होने वाले यंत्रों की खरीद करने पर उन्हें सब्सिडी या अनुदान दिया जायेगा। यूपी कृषि उपकरण योजना 2021 के अंतर्गत यंत्रों के अनुसार अलग-अलग रूप में सब्सिडी प्रदान की गयी है। अब उत्तर प्रदेश के किसान पारम्परिक तरीके से कृषि कार्य न करके यंत्रो की सहायता से कृषि कार्य को आसान कर सकते है और अपने समय और लागत में बचत कर सकते है। इस योजना से जुडी मुख्य बातो की जानकारी आपको यहाँ दी जा रही है।
योजना की संक्षिप्त रूप रेखा
स्कीम
यूपीकृषिउपकरणसब्सिडीयोजना
लाभार्थी
उत्तर प्रदेश राज्य के किसान
विभाग
उत्तर प्रदेश कृषि विभाग
लाभ
कृषि उपकरण में अनुदान
कृषि यंत्र प्री बुकिंग करने की तिथि
5-2-2021
पोर्टल
पारदर्शी किसान सेवा योजना
आवेदन
ऑनलाइन
वर्ष
2021
आधिकारिक वेबसाइट
https://upagriculture.com/
उत्तर प्रदेश कृषि उपकरण पर सब्सिडी या अनुदान की राशि
क्र०सं०
कृषियंत्र
अनुदान राशि
1.
8 H.P. या उससे अधिक का पावर टिलर
निर्धारित मूल्य का 40% अथवा अधिकतम रूपए 45000 जो भी कम हो।
2
40 H.P. तक का ट्रैक्टर
निर्धारित मूल्य का 25% अथवा अधिकतम रूपए 45000 जो भी कम हो।
निर्धारित मूल्य का 50% अथवा अधिकतम रूपए 15000 जो भी कम हो।
9.
पम्प सेट
निर्धारित मूल्य का 50% अथवा अधिकतम रूपए10000 जो भी कम हो।
10.
ट्रैक्टर माउंटेड स्प्रेयर
निर्धारित मूल्य का 25% अथवा अधिकतम रूपए 4000 जो भी कम हो।
11.
लेजर लैण्ड लेवलर
निर्धारित मूल्य का 50% अथवा अधिकतम रूपए 50000 जो भी कम हो।
12.
रोटावेटर
निर्धारित मूल्य का 50% अथवा अधिकतम रूपए 30000 जो भी कम हो।
13.
फुट स्प्रेयर ,नैपसैक स्प्रेयर ,पावर स्प्रेयर
निर्धारित मूल्य का 50% अथवा अधिकतम रूपए 3000 जो भी कम हो।
14.
स्प्रिंकलर सेट
निर्धारित मूल्य का 50% अथवा अधिकतम रूपए 75000 जो भी कम हो। 90% का अनुदान बुन्देलखण्ड क्षेत्र
यूपी कृषि उपकरण सब्सिडी योजना टोकन हेतु ऑनलाइन अप्लाई कैसे करें ? उत्तर प्रदेश राज्य के जो इच्छुक लाभार्थी किसान यूपी कृषि उपकरण सब्सिडी योजना के लिए ऑनलाइन आवेदन कारण चाहते है उन किसानों को पारदर्शी किसान सेवा योजना की आधिकारिक वेबसाइट https://upagriculture.com/ में प्रवेश करना होगा।वेबसाइट में प्रवेश करने के अंतर्गत मुख्य पृष्ठ पर यंत्र पर अनुदान हेतु टोकन निकाले के विकल्प में क्लिक करें और बताये गए निर्देशानुसार जानकारी भरे. यूपी कृषि यंत्र सब्सिडी से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी या समस्या होने पर आवेदक किसान नीचे दिए गए सहायता नंबर या ईमेल आईडी के माध्यम से अपनी समस्या को दर्ज कर सकते है। टोल फ्री नंबर : 7235090578, 7235090583 ईमेल dbt.validation@gmail.com
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना 2021 किसान रजिस्ट्रेशन व लाभार्थी सूची
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत देश के किसानों को किसी भी प्राकृतिक आपदा के कारण फसल में बर्बादी होने पर बीमा प्रदान किया जाएगा। इस योजना का कार्यान्वयन भारतीय कृषि बीमा कंपनी द्वारा किया जाता है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में केवल प्राकृतिक आपदा जैसे कि सूखा पड़ना, ओले पड़ना आदि ही शामिल है। यदि किसी और वजह से फसल का नुकसान होता है तो बीमे की राशि नहीं प्रदान की जाएगी। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा 8800 करोड़ रुपए का बजट निर्धारित किया गया है। इस योजना के अंतर्गत किसानों को खरीफ फसल का 2% और रवि फसल का 1.5% भुगतान बीमा कंपनी को करना होगा। जिस पर उन्हें बीमा प्रदान किया जाएगा। यदि आप भी इस योजना के अंतर्गत आवेदन करना चाहते हैं तो आपको आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर आवेदन करना होगा। बीमे का पंजीकरण करवाने के लिए आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके जा सकते है, https://pmfby.gov.in/ साथ यहाँ अपने आवेदन की स्थिति, बीमा प्रीमियम की राशि की भी गणना की जा सकती है I इसके अलावा जो भी जानकारी आपको इस योजना के सम्बन्ध में चाहिए वो सब इसी वेबसाइट पर उपलब्ध हो जाएगी I 31 जुलाई 2021 से पहले करें पंजीकरण प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत किसानों को किसी प्राकृतिक आपदा के कारण फसल में होने वाली बर्बादी पर बीमा प्रदान किया जाता है। सरकार द्वारा इस योजना के कार्यान्वयन का भी पूरा ध्यान रखा जाता है। जिला स्तर पर परियोजना अधिकारी व सर्वेयर इस योजना के कार्यान्वयन के लिए नियुक्त किए गए हैं। यह परियोजना अधिकारी व सर्वेयर सिर्फ प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का कार्य करते हैं। इसके अलावा बीमा कंपनी द्वारा भी जिला एवं ब्लॉक स्तर पर अपने कर्मचारियों की नियुक्ति इस योजना के कार्यान्वयन के लिए को गई है। सरकार द्वारा सभी किसानों की शिकायतों का निपटान करने के लिए एक शिकायत निवारण समिति का भी गठन किया गया है। यह शिकायत निवारण समिति जिला स्तर पर कार्यरत है। वह सभी किसान जो इस योजना का लाभ प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें 31 जुलाई 2021 से पहले पहले पोर्टल पर पंजीकरण करवाना होगा। योजना से निकासी करने के लिए लिखित में दें बैंक को सूचना प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना देश के सभी किसानों के लिए स्वैच्छिक है। यदि कोई भी ऋण लेने वाला किसान इस योजना का लाभ नहीं प्राप्त करना चाहता तो उसे इस बात की जानकारी 24 जुलाई 2021 तक अपने बैंक को लिखित में देनी होगी। इसके पश्चात उस किसान को इस योजना से बाहर कर दिया जाएगा। यदि किसान द्वारा तय सीमा तक कोई भी जानकारी बैंकों को नहीं प्रदान की गई तो बैंक द्वारा किसान का पंजीकरण इस योजना के अंतर्गत कर दिया जाएगा। और बीमे के प्रीमियम की राशि काट ली जाएगी। वह सभी किसान जो इस योजना का लाभ प्राप्त करना चाहते हैं वह अपना आवेदन ग्राहक सेवा केंद्र या बीमा कंपनी के प्रतिनिधि के माध्यम से कर सकता है। यदि किसी भी किसान द्वारा पहले से नियोजित फसल में कोई बदलाव किया जाता है तो उसे इस बात की जानकारी आवेदन की अंतिम तिथि से 2 दिन पहले बैंक में देनी होगी। यानी कि किसान को इस बात की जानकारी 29 जुलाई 2021 तक बैंक में प्रदान करनी होगी। यदि आप इस योजना से संबंधित अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आप किसान कल्याण विभाग द्वारा जारी किए गए टोल फ्री नंबर पर संपर्क कर सकते हैं। टोल फ्री नंबर 1800 180 2117 है। इसके अलावा बैंक शाखा या बीमा कंपनी से संपर्क करके भी इस योजना से संबंधित जानकारी प्राप्त की जा सकती है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का उद्देश्य प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना 2021 किसानो को खेती में रूचि बनाये रखना तथा स्थायी आमदनी उपलब्ध कराना इस योजना में किसानो की फसलों में होने वाले नुकसान व चिंताओं से मुक्त कराना है और लगातार खेती करने के लिए किसानो को बढ़ाबा देना है और भारत को विकसित तथा प्रगतिशील बनाना है |
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना प्रीमियम राशि
फसल
प्रीमियम राशि
धान
713.99 रुपए प्रति एकड़
मक्का
356.99 रुपए प्रति एकड़
बाजरा
335.99 रुपए प्रति एकड़
कपास
1732.50 रुपए प्रति एकड़
गेहूं
409.50 रुपए प्रति एकड़
जौ
267.75 रुपए प्रति एकड़
चना
204.75 रुपए प्रति एकड़
सरसो
275.63 रुपए प्रति एकड़
सूरजमुखी
267.75 रुपए प्रति एकड़
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली रकम
हमारी धरती पर पड़ने वाली सूरज की रौशनी और उसमे मौजूद गर्मी ही सौर ऊर्जा कहलाती है। धरती पर सौर ऊर्जा ही एकमात्र ऐसी ऊर्जा स्रोत है जो अन्य ऊर्जा स्रोतों की तुलना में प्रचूर मात्रा में उपलब्ध है। विज्ञान एवं तकनीक की सहायता से मनुष्य ने ऐसी तकनीक खोज निकाली है जिससे धरती पर पड़ने वाली सूरज की किरणों को विज्ञान एवं तकनीक की मदद से विद्युत् में परिवर्तित किया जा सकता है। हर साल सूर्य से पृथ्वी पर पहुंचने वाली ऊर्जा की मात्रा धरती पर पाए जाने वाले समस्त कोयले, तेल, गैस आदि की मात्रा से 130 गुना अधिक होती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह सूरज की किरणे अगले 500-600 करोड़ सालों तक धरती पर मौजूद रहेंगी तथा इसका उपयोग हम अपनी जरूरतों के लिए करते रह सकते है। दुर्भाग्य से हमारे देश में इस सौर ऊर्जा का फायदा हमारे किसान पूरी तरह से नहीं उठा पा रहे है। जबकि खेती में बिजली का उपयोग अब एक अत्यंत जरुरी पहलु बन गया है, चाहे वो सिचाई हो या खेती के यंत्रो का उपयोग, किसान को बिजली की जरुरत तो पड़नी ही है, ऐसे में यदि सौर ऊर्जा से बिजली पैदा करके अपनी जरुरत पूरी की जाये तो इससे बहुत ही कम लागत लगेगी। इसी उद्देश्य से सरकार ने सौर ऊर्जा को लेकर योजना बनाई है, अपने किसान भाइयो के लिए इसी की संपूर्ण जानकारी यह उपलब्ध करा रहे है।
क्या है यह योजना?
केन्द्र सरकार की सोलर पंप योजना प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाअभियान (कुसुम) योजना, एक ऐसा समाधान है जो कि किसानों की बिजली संबंधित सभी जरूरतों को एक साथ पूरा कर सकती है। इसमें किसानों को सिर्फ 10 फीसदी अंशदान देकर अपने लिए अपनी जरूरत के अनुसार सौर ऊर्जा प्रणाली लगाने का प्रबंध किया जा सकता है। क्या है सोलर पंप योजना का उदेश्य? भारत सरकार 3 उदेश्य के साथ सोलर पंप योजना पर काम कर रही है-
1. प्रदूषण पर नियंत्रण: वर्ष 2018 में ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट की रिसर्च के अनुसार भारत दुनिया में सबसे अधिक CO2 (कार्बन डाई ऑक्साइड) उत्पादित करने वाला तीसरा देश है
#2. डीजल की खपत में कमी: हमारे देश में जहां पर बिजली नहीं है वहां पर ज्यादातर सिचाई के लिए डीजल इंजन का प्रयोग किया जाता है और जहां बिजली है वहां कोयले से बनी बिजली का अधिक उपयोग किया जा रहा है। जिसके कारण प्रदूषण बढ़ रहा है.
3. किसानों की आय बढ़ाने का लक्ष्य: सोलर पॉवर साल में पूरे 300 दिन प्राप्त की जा सकती है, पर सिचाई तो एक तय समय पर होती है. इसके लिए किसानो कों बिजली बेचकर पैसा कमाने का भी सुविधा मिलती है. इसकी पूरी जानकारी नीचे दी गई है।
कितने केटेगरी (भागो ) में है ये योजना? कुसुम योजना कों 3 केटेगरी में लाया गया है जिससे किसान न केवल खेती के साथ बिजली बना सकते है और साथ ही साथ आसपास और दूर दराज के क्षेत्रों में बिजली से वंचित खेतों तक बिजली भी पहुंचा सकेंगे।
पहला हिस्सा
• 33 केवी सब स्टेशन के 5 किमी के दायरे की जमीनों पर विकसित होंगे सोलर प्लांट. • सोसायटी के जरिए विकसित होंगे 500 के 2000 केवी तक के प्लांट. • इस प्लांट को लगाने के लिए किसान डेवलपर की भी ले सकेंगे मदद. • नीचे खेती–ऊपर बिजली उत्पादन के लिए विकसित होगा प्लांट. • डिस्कॉम किसानों को इस केटेगरी में बकायदा जमीन का रेंट देगी जिसका निर्धारण डीएलसी की दर पर किया जाएगा. • इसके साथ ही इन प्लांट से उत्त्पन बिजली किसान डिस्कॉम को बेचेगा. • जिसके बदले में किसान कों विनियामक आयोग की तरफ से किया जाएगा भुगतान. • किसान–डिस्कॉम के बिच कुल 25 साल के लिए एग्रीमेंट होगा जिसमे एक फ़ीस दर पर बिजली मिलेगी.
दूसरा हिस्सा
• कैटेगिरी में बिजली से वंचित इलाको पर फोकस होगा. • उन खेतों तक सोलर पंप से बिजली पहुचाई जाएगी, जहां अभी बिजली का इंतजार है. • 7.5 हॉर्स पॉवर के सोलर पंप खेतों में लगाए जाएंगा. जिसमे 30–30 फीसदी अनुदान केंद्र–राज्य सरकार देगी. • 30% पैसा किसान को लोन से मिलेगा जबकि 10% राशि का किसान को खुद इंतजाम कराना होगा. • योजना में फोकस इस बात पर रहता है जहां डीजल पंप का उपयोग किया जा रहा है वहां सोलर पंप का उपयोग शुरू किया जाए। इससे देश में डीजल की खपत कम होगी और प्रदूषण भी कम होगा।
तीसरा हिस्सा
• एग्रीकल्चर फीडर को ग्रीन फीडर में तब्दील करने पर ध्यान केन्द्रित रहेगा. 7.5 एचपी के सोलर पंप खेतों में लगाए जाएंगे जिसके लिए मौजूदा कनेक्शनों के आधार पर फीडर्स का सर्वे होगा. जिन फीडरों पर सर्वाधिक 7.5 एचपी के कनेक्शन होंगे उन्हें ही ग्रीन फीडर के लिए चयनित किया जाएगा.
सोलर पंप लगाने में कितना खर्चा लगता है ? यदि आप सोलर वाटर पंप लगाना चाहते हैं , और आपके पास पहले से वाटर pump लगा हुआ है तो इसमें लगभग ५५००० हज़ार प्रति १ हप का खर्चा आता है ,और इस कीमत में आपको जो कॉम्पोनेन्ट मिलते है वह हैं सोलर पेनल्स , सोलर पैनल स्टैंड , दस वायर और वफ्द। नीचे दी गयी प्राइस लिस्ट के अनुसार आप अपना सोलर पंप का खर्चा समझ सकते हैं सोलर पंप मॉडल कीमत 1 HP सोलर पंप 55,000 3 HP सोलर पंप 1,10,000 5 HP सोलर पंप 165,000 7.5 HP सोलर पंप 4,12,500 10 HP सोलर पंप 5,50,000 सब्सिडी पाने के लिए पूरी करनी होंगी ये शर्ते 1.इस योजना के तहत आवेदन केवल करने वाले के पास खेती के लिए अपनी जमीन होनी चाहिए। साथ ही उसके पास सिंचाई का स्थाई स्रोत होना जरूरी है।
2.सोलर पम्प स्थापित करने के लिए अपने राज्य के ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड से सहमती लेनी होगी।
3.राशि मिलने के लगभग 120 दिन के अंदर सोलर पम्प लगाने का काम पूरा किया जाएगा। विशेष परिस्थितियों में समयावधि बढाई जा सकती है।
सब्सिडी पाने के लिए के लिये आवेदन कहाँ करे ?
सोलर पम्प पर सब्सिडी लेने के लिए आप बिजली वितरण कंपनी के निकटम कार्यालय से संपर्क करें. पूरी इंडिया की डिस्कॉम की लिस्ट यहां से ही ले. इस योजना की डायरेक्ट ऑनलाइन कोई भी वेबसाइट नहीं है जहां पर आप आवेदन कर सकते है. बिना सब्सिडी के सोलर वाटर पंप कैसे लगाये? हम सभी को पता है कि सरकार की योजना लागू होने में काफी समय लगता है. सब्सिडी के साथ सोलर पंप लगाने के लिए आम लोगों का सरकारी दफ्तर के संपर्क में रहना जरुरी है अन्यथा कब सरकार योजना निकलेगी और कब खत्म हो जायेगा ये किसी को पता भी नहीं चलेगा. यदि आप सब्सिडी का इंतजार नहीं करना चाहते है तो आप अपने नजदीकी सोलर पंप रिटेल शॉप पर पता कर सकते है. सोलर वाटर पंप में कितने कॉम्पोनेन्ट होते है? सोलर वाटर पंप भी घरो में लगने वाले सोलर सिस्टम जैसा ही होता है लेकिन ये डायरेक्ट सूर्य की रोशनी से चलता है. इस सिस्टम में बैटरी नहीं होती है.
1. सोलर पैनल
सोलर पैनल को सोलर प्लेट के नाम से भी जाना जाता है जिसका काम है सूर्य की रोशनी को बिजली में बदलना.
सोलर पैनल भी कई प्रकार के मार्केट में उपलब्ध है-
पोली सोलर पैनल: पॉली सोलर पैनल (Polycrystalline Solar Panel) जिसका प्रयोग लार्ज सोलर प्रोजेक्ट में किया जाता है और ये घरों में भी देखनो को मिल जायेगा.
मोनो सोलर पैनल: मोनो सोलर पैनल (Monocrystalline Solar Panel) नवीनतम टेक्नोलॉजी का सोलर पैनल है जो सुबह 6:30 से लेकर शाम 6:30 तक बिजली बनाता है. ये सोलर पैनल घरों में ज्यादातर देखनो को मिलेगा क्योकि यहां बैटरी चार्ज और बिजली बचत के लिए सोलर लगाया जाता है.
बाई फिसिअल सोलर पैनल: बाई फिसिअल सोलर पैनल (Bifacial Solar Panel): मोनो सोलर सेल से बना सोलर पैनल की एक और एडवांस्ड टेक्नोलॉजी जो इंस्टालेशन की जगह को अधिकतम उपयोग के उद्देश्य से बनाया गया है. ये सोलर पैनल दोनो तरफ से सोलर पावर बनाती है और इसी के साथ सूर्य की रोशनी भी नीचे के ओर आती है.
2. वाटर पंप
सोलर पंप सिस्टम में दूसरा कॉम्पोनेन्ट वाटर पंप होता है. वाटर पंप दो प्रकार के होते है - सरफेस वाटर पंप और अंडर ग्राउंड वाटर पंप. सोलर पंप योजना में अंडर ग्राउंड वाटर पंप ही लगाया जाता है.
3. चार्ज कंट्रोलर
सोलर पंप सिस्टम में तीसरा कॉम्पोनेन्ट चार्ज कंट्रोलर होता है जिसका काम है सोलर पैनल से बनने बाली बिजली को ऐसी करंट में कन्वर्ट करे.
4. पैनल स्टैंड
5. सोलर पैनल स्टैंड
सोलर सिस्टम का बहुत जरुरी कंपोनेंट है जिस पर सोलर पैनल को फिक्स किया जाता है. ये सोलर पैनल स्टैंड भी कई तरीके के होते है-फिक्स सोलर पैनल स्टैंड और मूवेबल सोलर पैनल स्टैंड.
सोलर पंप योजना किसानो के सफल खुशहाल बनाने के लिए एक कदम है जिसका फायदा हर किसान कों मिलेगा.