कृषि विभाग की इस योजना के अनुसार अब राज्य के किसानों के द्वारा कृषि में इस्तेमाल होने वाले यंत्रों की खरीद करने पर उन्हें सब्सिडी या अनुदान दिया जायेगा। यूपी कृषि उपकरण योजना 2021 के अंतर्गत यंत्रों के अनुसार अलग-अलग रूप में सब्सिडी प्रदान की गयी है। अब उत्तर प्रदेश के किसान पारम्परिक तरीके से कृषि कार्य न करके यंत्रो की सहायता से कृषि कार्य को आसान कर सकते है और अपने समय और लागत में बचत कर सकते है। इस योजना से जुडी मुख्य बातो की जानकारी आपको यहाँ दी जा रही है।
योजना की संक्षिप्त रूप रेखा
स्कीम
यूपीकृषिउपकरणसब्सिडीयोजना
लाभार्थी
उत्तर प्रदेश राज्य के किसान
विभाग
उत्तर प्रदेश कृषि विभाग
लाभ
कृषि उपकरण में अनुदान
कृषि यंत्र प्री बुकिंग करने की तिथि
5-2-2021
पोर्टल
पारदर्शी किसान सेवा योजना
आवेदन
ऑनलाइन
वर्ष
2021
आधिकारिक वेबसाइट
https://upagriculture.com/
उत्तर प्रदेश कृषि उपकरण पर सब्सिडी या अनुदान की राशि
क्र०सं०
कृषियंत्र
अनुदान राशि
1.
8 H.P. या उससे अधिक का पावर टिलर
निर्धारित मूल्य का 40% अथवा अधिकतम रूपए 45000 जो भी कम हो।
2
40 H.P. तक का ट्रैक्टर
निर्धारित मूल्य का 25% अथवा अधिकतम रूपए 45000 जो भी कम हो।
निर्धारित मूल्य का 50% अथवा अधिकतम रूपए 15000 जो भी कम हो।
9.
पम्प सेट
निर्धारित मूल्य का 50% अथवा अधिकतम रूपए10000 जो भी कम हो।
10.
ट्रैक्टर माउंटेड स्प्रेयर
निर्धारित मूल्य का 25% अथवा अधिकतम रूपए 4000 जो भी कम हो।
11.
लेजर लैण्ड लेवलर
निर्धारित मूल्य का 50% अथवा अधिकतम रूपए 50000 जो भी कम हो।
12.
रोटावेटर
निर्धारित मूल्य का 50% अथवा अधिकतम रूपए 30000 जो भी कम हो।
13.
फुट स्प्रेयर ,नैपसैक स्प्रेयर ,पावर स्प्रेयर
निर्धारित मूल्य का 50% अथवा अधिकतम रूपए 3000 जो भी कम हो।
14.
स्प्रिंकलर सेट
निर्धारित मूल्य का 50% अथवा अधिकतम रूपए 75000 जो भी कम हो। 90% का अनुदान बुन्देलखण्ड क्षेत्र
यूपी कृषि उपकरण सब्सिडी योजना टोकन हेतु ऑनलाइन अप्लाई कैसे करें ? उत्तर प्रदेश राज्य के जो इच्छुक लाभार्थी किसान यूपी कृषि उपकरण सब्सिडी योजना के लिए ऑनलाइन आवेदन कारण चाहते है उन किसानों को पारदर्शी किसान सेवा योजना की आधिकारिक वेबसाइट https://upagriculture.com/ में प्रवेश करना होगा।वेबसाइट में प्रवेश करने के अंतर्गत मुख्य पृष्ठ पर यंत्र पर अनुदान हेतु टोकन निकाले के विकल्प में क्लिक करें और बताये गए निर्देशानुसार जानकारी भरे. यूपी कृषि यंत्र सब्सिडी से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी या समस्या होने पर आवेदक किसान नीचे दिए गए सहायता नंबर या ईमेल आईडी के माध्यम से अपनी समस्या को दर्ज कर सकते है। टोल फ्री नंबर : 7235090578, 7235090583 ईमेल dbt.validation@gmail.com
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना 2021 किसान रजिस्ट्रेशन व लाभार्थी सूची
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत देश के किसानों को किसी भी प्राकृतिक आपदा के कारण फसल में बर्बादी होने पर बीमा प्रदान किया जाएगा। इस योजना का कार्यान्वयन भारतीय कृषि बीमा कंपनी द्वारा किया जाता है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में केवल प्राकृतिक आपदा जैसे कि सूखा पड़ना, ओले पड़ना आदि ही शामिल है। यदि किसी और वजह से फसल का नुकसान होता है तो बीमे की राशि नहीं प्रदान की जाएगी। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा 8800 करोड़ रुपए का बजट निर्धारित किया गया है। इस योजना के अंतर्गत किसानों को खरीफ फसल का 2% और रवि फसल का 1.5% भुगतान बीमा कंपनी को करना होगा। जिस पर उन्हें बीमा प्रदान किया जाएगा। यदि आप भी इस योजना के अंतर्गत आवेदन करना चाहते हैं तो आपको आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर आवेदन करना होगा। बीमे का पंजीकरण करवाने के लिए आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके जा सकते है, https://pmfby.gov.in/ साथ यहाँ अपने आवेदन की स्थिति, बीमा प्रीमियम की राशि की भी गणना की जा सकती है I इसके अलावा जो भी जानकारी आपको इस योजना के सम्बन्ध में चाहिए वो सब इसी वेबसाइट पर उपलब्ध हो जाएगी I 31 जुलाई 2021 से पहले करें पंजीकरण प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत किसानों को किसी प्राकृतिक आपदा के कारण फसल में होने वाली बर्बादी पर बीमा प्रदान किया जाता है। सरकार द्वारा इस योजना के कार्यान्वयन का भी पूरा ध्यान रखा जाता है। जिला स्तर पर परियोजना अधिकारी व सर्वेयर इस योजना के कार्यान्वयन के लिए नियुक्त किए गए हैं। यह परियोजना अधिकारी व सर्वेयर सिर्फ प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का कार्य करते हैं। इसके अलावा बीमा कंपनी द्वारा भी जिला एवं ब्लॉक स्तर पर अपने कर्मचारियों की नियुक्ति इस योजना के कार्यान्वयन के लिए को गई है। सरकार द्वारा सभी किसानों की शिकायतों का निपटान करने के लिए एक शिकायत निवारण समिति का भी गठन किया गया है। यह शिकायत निवारण समिति जिला स्तर पर कार्यरत है। वह सभी किसान जो इस योजना का लाभ प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें 31 जुलाई 2021 से पहले पहले पोर्टल पर पंजीकरण करवाना होगा। योजना से निकासी करने के लिए लिखित में दें बैंक को सूचना प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना देश के सभी किसानों के लिए स्वैच्छिक है। यदि कोई भी ऋण लेने वाला किसान इस योजना का लाभ नहीं प्राप्त करना चाहता तो उसे इस बात की जानकारी 24 जुलाई 2021 तक अपने बैंक को लिखित में देनी होगी। इसके पश्चात उस किसान को इस योजना से बाहर कर दिया जाएगा। यदि किसान द्वारा तय सीमा तक कोई भी जानकारी बैंकों को नहीं प्रदान की गई तो बैंक द्वारा किसान का पंजीकरण इस योजना के अंतर्गत कर दिया जाएगा। और बीमे के प्रीमियम की राशि काट ली जाएगी। वह सभी किसान जो इस योजना का लाभ प्राप्त करना चाहते हैं वह अपना आवेदन ग्राहक सेवा केंद्र या बीमा कंपनी के प्रतिनिधि के माध्यम से कर सकता है। यदि किसी भी किसान द्वारा पहले से नियोजित फसल में कोई बदलाव किया जाता है तो उसे इस बात की जानकारी आवेदन की अंतिम तिथि से 2 दिन पहले बैंक में देनी होगी। यानी कि किसान को इस बात की जानकारी 29 जुलाई 2021 तक बैंक में प्रदान करनी होगी। यदि आप इस योजना से संबंधित अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आप किसान कल्याण विभाग द्वारा जारी किए गए टोल फ्री नंबर पर संपर्क कर सकते हैं। टोल फ्री नंबर 1800 180 2117 है। इसके अलावा बैंक शाखा या बीमा कंपनी से संपर्क करके भी इस योजना से संबंधित जानकारी प्राप्त की जा सकती है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का उद्देश्य प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना 2021 किसानो को खेती में रूचि बनाये रखना तथा स्थायी आमदनी उपलब्ध कराना इस योजना में किसानो की फसलों में होने वाले नुकसान व चिंताओं से मुक्त कराना है और लगातार खेती करने के लिए किसानो को बढ़ाबा देना है और भारत को विकसित तथा प्रगतिशील बनाना है |
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना प्रीमियम राशि
फसल
प्रीमियम राशि
धान
713.99 रुपए प्रति एकड़
मक्का
356.99 रुपए प्रति एकड़
बाजरा
335.99 रुपए प्रति एकड़
कपास
1732.50 रुपए प्रति एकड़
गेहूं
409.50 रुपए प्रति एकड़
जौ
267.75 रुपए प्रति एकड़
चना
204.75 रुपए प्रति एकड़
सरसो
275.63 रुपए प्रति एकड़
सूरजमुखी
267.75 रुपए प्रति एकड़
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली रकम
हमारी धरती पर पड़ने वाली सूरज की रौशनी और उसमे मौजूद गर्मी ही सौर ऊर्जा कहलाती है। धरती पर सौर ऊर्जा ही एकमात्र ऐसी ऊर्जा स्रोत है जो अन्य ऊर्जा स्रोतों की तुलना में प्रचूर मात्रा में उपलब्ध है। विज्ञान एवं तकनीक की सहायता से मनुष्य ने ऐसी तकनीक खोज निकाली है जिससे धरती पर पड़ने वाली सूरज की किरणों को विज्ञान एवं तकनीक की मदद से विद्युत् में परिवर्तित किया जा सकता है। हर साल सूर्य से पृथ्वी पर पहुंचने वाली ऊर्जा की मात्रा धरती पर पाए जाने वाले समस्त कोयले, तेल, गैस आदि की मात्रा से 130 गुना अधिक होती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह सूरज की किरणे अगले 500-600 करोड़ सालों तक धरती पर मौजूद रहेंगी तथा इसका उपयोग हम अपनी जरूरतों के लिए करते रह सकते है। दुर्भाग्य से हमारे देश में इस सौर ऊर्जा का फायदा हमारे किसान पूरी तरह से नहीं उठा पा रहे है। जबकि खेती में बिजली का उपयोग अब एक अत्यंत जरुरी पहलु बन गया है, चाहे वो सिचाई हो या खेती के यंत्रो का उपयोग, किसान को बिजली की जरुरत तो पड़नी ही है, ऐसे में यदि सौर ऊर्जा से बिजली पैदा करके अपनी जरुरत पूरी की जाये तो इससे बहुत ही कम लागत लगेगी। इसी उद्देश्य से सरकार ने सौर ऊर्जा को लेकर योजना बनाई है, अपने किसान भाइयो के लिए इसी की संपूर्ण जानकारी यह उपलब्ध करा रहे है।
क्या है यह योजना?
केन्द्र सरकार की सोलर पंप योजना प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाअभियान (कुसुम) योजना, एक ऐसा समाधान है जो कि किसानों की बिजली संबंधित सभी जरूरतों को एक साथ पूरा कर सकती है। इसमें किसानों को सिर्फ 10 फीसदी अंशदान देकर अपने लिए अपनी जरूरत के अनुसार सौर ऊर्जा प्रणाली लगाने का प्रबंध किया जा सकता है। क्या है सोलर पंप योजना का उदेश्य? भारत सरकार 3 उदेश्य के साथ सोलर पंप योजना पर काम कर रही है-
1. प्रदूषण पर नियंत्रण: वर्ष 2018 में ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट की रिसर्च के अनुसार भारत दुनिया में सबसे अधिक CO2 (कार्बन डाई ऑक्साइड) उत्पादित करने वाला तीसरा देश है
#2. डीजल की खपत में कमी: हमारे देश में जहां पर बिजली नहीं है वहां पर ज्यादातर सिचाई के लिए डीजल इंजन का प्रयोग किया जाता है और जहां बिजली है वहां कोयले से बनी बिजली का अधिक उपयोग किया जा रहा है। जिसके कारण प्रदूषण बढ़ रहा है.
3. किसानों की आय बढ़ाने का लक्ष्य: सोलर पॉवर साल में पूरे 300 दिन प्राप्त की जा सकती है, पर सिचाई तो एक तय समय पर होती है. इसके लिए किसानो कों बिजली बेचकर पैसा कमाने का भी सुविधा मिलती है. इसकी पूरी जानकारी नीचे दी गई है।
कितने केटेगरी (भागो ) में है ये योजना? कुसुम योजना कों 3 केटेगरी में लाया गया है जिससे किसान न केवल खेती के साथ बिजली बना सकते है और साथ ही साथ आसपास और दूर दराज के क्षेत्रों में बिजली से वंचित खेतों तक बिजली भी पहुंचा सकेंगे।
पहला हिस्सा
• 33 केवी सब स्टेशन के 5 किमी के दायरे की जमीनों पर विकसित होंगे सोलर प्लांट. • सोसायटी के जरिए विकसित होंगे 500 के 2000 केवी तक के प्लांट. • इस प्लांट को लगाने के लिए किसान डेवलपर की भी ले सकेंगे मदद. • नीचे खेती–ऊपर बिजली उत्पादन के लिए विकसित होगा प्लांट. • डिस्कॉम किसानों को इस केटेगरी में बकायदा जमीन का रेंट देगी जिसका निर्धारण डीएलसी की दर पर किया जाएगा. • इसके साथ ही इन प्लांट से उत्त्पन बिजली किसान डिस्कॉम को बेचेगा. • जिसके बदले में किसान कों विनियामक आयोग की तरफ से किया जाएगा भुगतान. • किसान–डिस्कॉम के बिच कुल 25 साल के लिए एग्रीमेंट होगा जिसमे एक फ़ीस दर पर बिजली मिलेगी.
दूसरा हिस्सा
• कैटेगिरी में बिजली से वंचित इलाको पर फोकस होगा. • उन खेतों तक सोलर पंप से बिजली पहुचाई जाएगी, जहां अभी बिजली का इंतजार है. • 7.5 हॉर्स पॉवर के सोलर पंप खेतों में लगाए जाएंगा. जिसमे 30–30 फीसदी अनुदान केंद्र–राज्य सरकार देगी. • 30% पैसा किसान को लोन से मिलेगा जबकि 10% राशि का किसान को खुद इंतजाम कराना होगा. • योजना में फोकस इस बात पर रहता है जहां डीजल पंप का उपयोग किया जा रहा है वहां सोलर पंप का उपयोग शुरू किया जाए। इससे देश में डीजल की खपत कम होगी और प्रदूषण भी कम होगा।
तीसरा हिस्सा
• एग्रीकल्चर फीडर को ग्रीन फीडर में तब्दील करने पर ध्यान केन्द्रित रहेगा. 7.5 एचपी के सोलर पंप खेतों में लगाए जाएंगे जिसके लिए मौजूदा कनेक्शनों के आधार पर फीडर्स का सर्वे होगा. जिन फीडरों पर सर्वाधिक 7.5 एचपी के कनेक्शन होंगे उन्हें ही ग्रीन फीडर के लिए चयनित किया जाएगा.
सोलर पंप लगाने में कितना खर्चा लगता है ? यदि आप सोलर वाटर पंप लगाना चाहते हैं , और आपके पास पहले से वाटर pump लगा हुआ है तो इसमें लगभग ५५००० हज़ार प्रति १ हप का खर्चा आता है ,और इस कीमत में आपको जो कॉम्पोनेन्ट मिलते है वह हैं सोलर पेनल्स , सोलर पैनल स्टैंड , दस वायर और वफ्द। नीचे दी गयी प्राइस लिस्ट के अनुसार आप अपना सोलर पंप का खर्चा समझ सकते हैं सोलर पंप मॉडल कीमत 1 HP सोलर पंप 55,000 3 HP सोलर पंप 1,10,000 5 HP सोलर पंप 165,000 7.5 HP सोलर पंप 4,12,500 10 HP सोलर पंप 5,50,000 सब्सिडी पाने के लिए पूरी करनी होंगी ये शर्ते 1.इस योजना के तहत आवेदन केवल करने वाले के पास खेती के लिए अपनी जमीन होनी चाहिए। साथ ही उसके पास सिंचाई का स्थाई स्रोत होना जरूरी है।
2.सोलर पम्प स्थापित करने के लिए अपने राज्य के ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड से सहमती लेनी होगी।
3.राशि मिलने के लगभग 120 दिन के अंदर सोलर पम्प लगाने का काम पूरा किया जाएगा। विशेष परिस्थितियों में समयावधि बढाई जा सकती है।
सब्सिडी पाने के लिए के लिये आवेदन कहाँ करे ?
सोलर पम्प पर सब्सिडी लेने के लिए आप बिजली वितरण कंपनी के निकटम कार्यालय से संपर्क करें. पूरी इंडिया की डिस्कॉम की लिस्ट यहां से ही ले. इस योजना की डायरेक्ट ऑनलाइन कोई भी वेबसाइट नहीं है जहां पर आप आवेदन कर सकते है. बिना सब्सिडी के सोलर वाटर पंप कैसे लगाये? हम सभी को पता है कि सरकार की योजना लागू होने में काफी समय लगता है. सब्सिडी के साथ सोलर पंप लगाने के लिए आम लोगों का सरकारी दफ्तर के संपर्क में रहना जरुरी है अन्यथा कब सरकार योजना निकलेगी और कब खत्म हो जायेगा ये किसी को पता भी नहीं चलेगा. यदि आप सब्सिडी का इंतजार नहीं करना चाहते है तो आप अपने नजदीकी सोलर पंप रिटेल शॉप पर पता कर सकते है. सोलर वाटर पंप में कितने कॉम्पोनेन्ट होते है? सोलर वाटर पंप भी घरो में लगने वाले सोलर सिस्टम जैसा ही होता है लेकिन ये डायरेक्ट सूर्य की रोशनी से चलता है. इस सिस्टम में बैटरी नहीं होती है.
1. सोलर पैनल
सोलर पैनल को सोलर प्लेट के नाम से भी जाना जाता है जिसका काम है सूर्य की रोशनी को बिजली में बदलना.
सोलर पैनल भी कई प्रकार के मार्केट में उपलब्ध है-
पोली सोलर पैनल: पॉली सोलर पैनल (Polycrystalline Solar Panel) जिसका प्रयोग लार्ज सोलर प्रोजेक्ट में किया जाता है और ये घरों में भी देखनो को मिल जायेगा.
मोनो सोलर पैनल: मोनो सोलर पैनल (Monocrystalline Solar Panel) नवीनतम टेक्नोलॉजी का सोलर पैनल है जो सुबह 6:30 से लेकर शाम 6:30 तक बिजली बनाता है. ये सोलर पैनल घरों में ज्यादातर देखनो को मिलेगा क्योकि यहां बैटरी चार्ज और बिजली बचत के लिए सोलर लगाया जाता है.
बाई फिसिअल सोलर पैनल: बाई फिसिअल सोलर पैनल (Bifacial Solar Panel): मोनो सोलर सेल से बना सोलर पैनल की एक और एडवांस्ड टेक्नोलॉजी जो इंस्टालेशन की जगह को अधिकतम उपयोग के उद्देश्य से बनाया गया है. ये सोलर पैनल दोनो तरफ से सोलर पावर बनाती है और इसी के साथ सूर्य की रोशनी भी नीचे के ओर आती है.
2. वाटर पंप
सोलर पंप सिस्टम में दूसरा कॉम्पोनेन्ट वाटर पंप होता है. वाटर पंप दो प्रकार के होते है - सरफेस वाटर पंप और अंडर ग्राउंड वाटर पंप. सोलर पंप योजना में अंडर ग्राउंड वाटर पंप ही लगाया जाता है.
3. चार्ज कंट्रोलर
सोलर पंप सिस्टम में तीसरा कॉम्पोनेन्ट चार्ज कंट्रोलर होता है जिसका काम है सोलर पैनल से बनने बाली बिजली को ऐसी करंट में कन्वर्ट करे.
4. पैनल स्टैंड
5. सोलर पैनल स्टैंड
सोलर सिस्टम का बहुत जरुरी कंपोनेंट है जिस पर सोलर पैनल को फिक्स किया जाता है. ये सोलर पैनल स्टैंड भी कई तरीके के होते है-फिक्स सोलर पैनल स्टैंड और मूवेबल सोलर पैनल स्टैंड.
सोलर पंप योजना किसानो के सफल खुशहाल बनाने के लिए एक कदम है जिसका फायदा हर किसान कों मिलेगा.
राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना की विस्तृत जानकारी राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना गरीब परिवारों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए बनाई गई है। इस योजना के अंतर्गत राज्य के किसी परिवार के एक मात्र कमाने वाले मुखिया की मृत्यु हो जाये तो उसे राज्य सरकार द्वारा 30000 रूपये की आर्थिक सहायता प्रदान जाएगी। इस योजना का लाभ राज्य के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रो के गरीब परिवार ले सकते है। इस आर्टिकल के माध्यम से इस राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना से जुडी सभी जानकारी आपके साथ साझा करने की कोशिश कर रहे है। राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना का उद्देश्य जिन गरीब परिवारों में कमाने वाला एक ही व्यक्ति होता है और परिवार में दूसरा कमाने वाला कोई और व्यक्ति नहीं होता है और अगर दुर्भाग्यपूर्ण उसकी मृत्यु हो जाती है तो राज्य सरकार राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना के द्वारा यूपी के जिन परिवारों के मुखिया की मृत्यु हो गयी है उनके परिवार को अच्छे से जीवन यापन करने के लिए 30000 रूपये की वित्तीय सहायता प्रदान करती है ताकि इस पारिवारिक लाभ योजना के ज़रिये धनराशि प्राप्त करके लाभार्थी अच्छे से जीवन यापन कर सके और अपनी आर्थिक ज़रूरतों को पूरा कर सके। यूपी पारिवारिक लाभ योजना के लाभ •इस योजना के अंतर्गत गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों को 30000 रूपये का मुआवज़ा सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जायेगा । •मृत्यु सहायता योजना का लाभ केवल उन्ही गरीब परिवारों को दिया जाएगा जिनके मुखिया की किसी कारणवश मृत्यु हो गयी है और उनके परिवार में कोई कमाने वाला नहीं है । •इस योजना के अंतर्गत एकमुश्त धनराशि आवेदनकर्ता के बैंक खाते में जमा की जाएगी ।इसलिए आवेदक का अपना बैंक खाता होना चाहिए। •राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना के तहत सरकार द्वारा दी जाने वाली धनराशि आवेदनकर्ता को आवेदन से 45 दिन के अंदर ही प्रदान की जाएगी । उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना की पात्रता •आवेदक उत्तर प्रदेश का स्थायी निवासी होना चाहिए । •मृत्यु सहायता योजना का लाभ केवल उनही परिवारों को दिया जाएगा जिनके मुखिया की मृत्यु हुई है और मुखिया की आयु 18 से 60 वर्ष के बीच होगी । •उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना के अंतर्गत शहरी क्षेत्रो के आवेदककर्ता के परिवार की वार्षिक आय 56,000 रूपये से अधिक नहीं होनी चाहिए और ग्रामीण क्षेत्रो के परिवार की वार्षिक आय 46000 रूपये से अधिक नहीं होनी चाहिए । •आवेदनकर्ता परिवार गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे है । राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना के दस्तावेज़ • आवेदक का आधार कार्ड • पहचान पत्र • निवास प्रमाण पत्र • मुखिया की मृत्यु का मृत्यु प्रमाण पत्र • आय प्रमाण पत्र • बैंक खाता (अकाउंट) पासबुक • मोबाइल नंबर • मुखिया का आयु प्रमाण पत्र • पासपोर्ट साइज फोटो राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना के दिशा निर्देश • फार्म के सभी भाग अंग्रेज़ी में भरे जाएंगे। • आवेदक को राष्ट्रीय स्तर के बैंक खाते का विवरण देना होगा। • सहकारी बैंक का खाता राष्ट्रीय पारिवारिक योजना के अंतर्गत मान्य नहीं है। • केवल तहसील स्तर से जारी आय प्रमाण पत्र ही मान्य होगा। • आवेदक द्वारा भरी गई जानकारी को सत्य माना जाएगा और यदि किसी भी प्रकार की त्रुटि पाई गई तो आवेदक उसके लिए जिम्मेदार होगा। • आवेदक द्वारा सभी महत्वपूर्ण दस्तावेजों की छाया प्रति आवेदन पत्र भरते समय ऑनलाइन अपलोड करनी अनिवार्य है। • मृत्यु प्रमाण पत्र केवल मान्यता प्राप्त अस्पताल, नगर पंचायत या तहसील स्तर से जारी किया हुआ ही मान्य होगा। • लाभार्थी का फोटो हस्ताक्षर 20 केबी से ज्यादा नहीं होना चाहिए तथा जेपीईजी फॉरमैट में होना चाहिए। • लाभार्थी का पहचान पत्र, बैंक पासबुक, मृतक का मृत्यु प्रमाण पत्र आदि पीडीएफ फॉर्मेट में 20 केवी से ज्यादा नहीं होना चाहिए। राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना में आवेदन कैसे करे ? राज्य के जो इच्छुक लाभार्थी इस उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना के अंतर्गत आवेदन करना चाहते है तो वह नीचे दिए गए तरीको की सहायता से आवेदन कर सकते है। • सर्वप्रथम आवेदक को समाज कल्याण विभाग की Official Website पर जाना होगा ।ऑफिसियल वेबसाइट पर जाने के बाद आपके सामने होम पेज खुल जायेगा ।
• इस होम पेज पर आपको “नया पंजीकरण” का विकल्प (ऑप्शन) दिखाई देगा ।आपको इस विकल्प पर क्लिक करना होगा। विकल्प पर क्लिक करने के बाद आपके सामने कंप्यूटर स्क्रीन पर आगे का पेज खुल जायेगा ।
• इस पेज पर आपको रजिस्ट्रेशन फॉर्म दिखाई देगा आपको इस रजिस्ट्रेशन फॉर्म में पूछी गयी सभी जानकारी जैसे जनपद , निवासी ,आवेदक विवरण, बैंक अकाउंट विवरण , मृतक का विवरण आदि भरना होगा । • सभी जानकारी को भरने के बाद आपको सबमिट के बटन पर क्लिक करना होगा ।इस तरह आपका पंजीकरण बड़ी ही आसानी से हो जाएगी। इसके अलावा यदि आपको आवेदन करने या योजना की सहायता प्राप्त करने में किसी प्रकार की समस्या हो रही है तो आप 18004190001 इस टोल फ्री नंबर पर संपर्क करके समाधान प्राप्त कर सकते है। इसके अतिरिक्त और भी विस्तृत जानकारी के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाकर आप ऑनलाइन जानकारी हासिल कर सकते है। https://pmmodiyojana.in/rastriya-parivarik-labh-yojana/
1) शिमला मिर्च सितम्बर माह शुरू होने से पहले ही शिमला मिर्च की नर्सरी तैयार कर ली जाती है और समय से इसको लगाना शुरू कर दें चाहिए। इसके बीज भी उत्तम कोटि के होने चाहिए और रोग रोधी हो। बीज लगाते समय ध्यान रखें कि बीज लगाने के बाद जब दोबारा उसका रोपण करे तो उस समय उसकी जड़ को शोधन ज़रूर करें। शिमला मिर्च का बीज जब भी लगाए तो कोशिश करे की २-३ दिन पहले भूमि का भी शोधन कर ले और सही तरीके से जुताई कर ले । इससे आप का उत्पादन काफी बेहतर होगा और आप को अच्छा भाव भी मिलेगा।
2) पत्तागोभी पत्तागोभी भी एक ऐसी सब्जी है जिसकी सितम्बर माह में नर्सरी तैयार की जा सकती है । पत्ता गोभी में वैसे तो ज्यादा रोग लगने की संभावना नहीं होती परन्तु पत्ता गोभी में गलने की व कीट की समस्या हो सकती है और इन समस्याओं को दूर करने के लिए आप ऑर्गेनिक तरीकों का प्रयोग कर सकते है।
3) धनिया पत्ता धनिया को भी सितंबर महीने में लगाया जाता है बारिश के कारण धनिया में अंकुरण की समस्या हो सकती है। धनिया उगाने के लिए खेत ऊंचाई पर होना चाहिए ताकि पानी ना लग सके तथा धनिया को क्यारियों में लगाया जाता है, ताकि निकासी व्यवस्था भी की जा सकें। धनिया में सीमित मात्रा में केमिकल का प्रयोग करें। अगर अधिक केमिकल का प्रयोग किया जाएगा तो फसल खराब या फिर फसल को नुकसान हो सकता है।
4) फूलगोभी सर्दियों में खायी जाने वाली सब्जियों में से सर्व पसंदीदा सब्जी फूल गोभी है, जिसे सितम्बर माह में उगाया जाता है। फूलगोभी को उगाने से पहले उन्नत और उत्तम किस्म के बीज का चयन कर लेना चाहिए, इसके दो फायदे है एक तो फसल की उपज अच्छी रहेगी, दूसरा फसल में ज्यादा रोग नहीं लगेंगे फूलगोभी की फसल में न केवल पौधे को बल्कि भूमि को भी शोधित करना आवश्यक है, इसके लिए जैविक (आर्गेनिक) कीटनाशक बनाए और उसका छिड़काव करें। जिससे आप अच्छा लाभ ले सकें।
5) बैंगन बैंगन की खेती करना बेहद आसान हैं। इसके लिए सही बीजों का चयन करना काफी आवश्यक होता है। कई लोगों ने नर्सरी भी लगा ली है तथा इसकी जड़ का सही तरीके से शोधन करना काफी आवश्यक है। ऑर्गेनिक कीटनाशक के प्रयोग से काफी हद तक फसल को रोग से बचाया जा सकता है।
6) बैंगन पालक साग आदि सब्जियों की खेती भी सितंबर महीने में की जाती हैं। पालक की बुवाई करते समय ध्यान रखें उसमें जल निकासी की व्यवस्था हो। पालक से भी काफी आमदनी हो सकती है बशर्ते बारिश से पालक को बचाया जा सके।
7) पपीता सितंबर में उगाई जाने वाली सब्जियां में एक पपीता भी हैं।पपीता में वायरस की समस्या हो सकती है लेकिन इसको नीम का तेल प्रयोग से नियंत्रित किया जा सकता है। पपीता लगाते समय एक-एक पपीते के बीच की दूरी का ध्यान जरूर रखें और यदि पपीता बेड पर लगाते हो काफी अच्छी फसल देखने को मिल सकती है। 8) हरी मिर्च हरी मिर्च की फसल के लिए दो बाते आवश्यक है, पहली ये की हरी मिर्च का बीज रोग रोधी हो और बीज की बुआई करें तो पानी निकासी का इंतजाम पहले ही ज़रूर कर लें। हरी मिर्च की नर्सरी डालने के बाद जब रिप्लांट करें तो पहले भूमि शोधन अवश्य करें और खाद का बहुत ही सीमित मात्रा में प्रयोग करें नहीं तो आपको नुकसान भी सहना पड़ सकता हैं। 9) मूली मूली को बोने के लिए अगर ऊंचाई वाला खेत है तो काफी बढ़िया है और यदि खेत ऊंचाई पर नहीं है तो इसे बेड पर भी लगा सकते हो। खेत की अच्छे ढंग से जुताई होनी चाहिए। जितनी अच्छी भुरभुरी मिट्टी होगी उतनी ही अच्छी आपको पैदावार मिलेगी।
10) ब्रोकली ब्रोकली सब्जी ह्रदय के लिए बहुत ही फायदेमंद सब्जी है, इसकी गुणवत्ता के कारण इसका भाव १०० रूपए से लेकर २०० रूपए किलो तक रहता है। ब्रोकोली उगाने के लिए उसके बीज से नर्सरी डाल लीजिए और उसके बाद उस की रोपाई शुरू करें।
11) मटर मैदानी भागों में तो मटर को अक्टूबर महीने में बोया जाता है लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में मटर की बुआई सितंबर महीने में शुरू हो जाती है। बीज लाने के बाद इसको शोधन करना काफी आवश्यक है इसमें जर्मीनेशन का ध्यान रखेंगे तो फसल भी अच्छी होगी और आपको काफी ज्यादा लाभ भी देखने को मिलेगा। 12) गाजर/चुकंदर/शलगम पहाड़ी इलाकों में गाजर चुकंदर व शलगम की खेती सितंबर महीने में कर सकते है, इसके लिए खेत को अच्छे ढंग से तैयार कीजिये ताकि फसल को किसी भी तरह का नुकसान ना हो। चुकंदर शलगम गाजर इन तीनों में ही लागत काफी कम लगती है और फायदा अधिक होता है।
अलसी एक तिलहनी और रेशे वाली फसल है जिसका उत्पादन मुख्य रूप से २ कारणों से किया जाता है, पहला तेल के लिए और दूसरा रेशे के लिए I अलसी के तेल का उपयोग खाने के, औषधीय और औधोगिक उपयोग के लिए किया जाता है I इसकी खली पोषक तत्वों से पूर्ण होती है जिसे पशुओ को खिलाने और खेतो में उर्वरक के रूप में भी किया जाता है I भारत में अलसी की खेती मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र में की जाती है I खेत की तैयारी - खरीफ की फसल काटने के बाद मिटटी को अलट पलट करने के लिए एक जुताई करे, तत्पश्चात कल्टीवेटर या देशी हल से 2 बार जुताई करके खेत को अच्छी तरह तैयार करे I अलसी की खेती के लिए मटियार व् चिकनी दोमट भूमि में की जा सकती है I बुवाई का समय एवं विधि - अक्टूबर माह के किसी भी समय अलसी को बोया जा सकता है I इसका बीज २५-३० कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर कि दर से बोया जाता है I इसकी बुवाई में बीजो के बीच कम से कम २५ से.मि का अंतराल होना चाहिए I उर्वरक - असिंचित क्षेत्र के लिए अच्छी पैदावार के लिए नाइट्रोजन 50 कि. ग्रा., फॉस्फोरस 40 कि. ग्रा.तथा पोटाश 40 कि. ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर इस्तेमाल कीजिये और सिंचित क्षेत्र के लिए नाइट्रोजन 100 कि. ग्रा., फॉस्फोरस 60 कि. ग्रा.तथा पोटाश 40 कि. ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर इस्तेमाल करना चाहिए I सिंचाई - यह फसल असिंचित रूप से बोई जाती है, परन्तु जहा सिंचाई का साधन उपलब्ध है वह दो सिंचाई ही काफी है क्योंकि यह फसल कम पानी से भी अच्छी पैदावार देती है I पहली सिंचाई फूल आने पर या बुवाई से 30-40 दिन बाद तथा दूसरी दाना बनते समय करनी चाहिए I फसल का बचाव - असली की फसल में कई प्रकार के रोग और कीट लग जाते है, जैसे अल्टेरनेरिया झुलसा, रतुआ, उकठा रोग, बुकनी गालमीज, ग्रेसी कटवर्म प्रमुख है I गर्मी की जुताई से गालमीज की सूड़िया मर जाती है, बीज को 2.5 ग्रा. थाइरम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से शोधित करके प्रयोग में ले, अलसी के साथ चना, सरसो, कुसुम को साथ बोया जाए तो गालमीज का प्रकोप कम हो जाता है I कालिया बनने लगे तब समय समय पर फसल का परिक्षण करते रहना चाहिए I खडी फसल में मेंकोजेब 2.5 कि.ग्रा. / हेक्टेयर कि दर से 40-45 दिन पर छिड़काव करके इन रोगो से बचा जा सकता है I अलसी कीकटाई - फसल जब 130-140 दिन कि परिपक्वा हो जाती है, पौधे और फलिया पीली होने लगती है और पत्तिया सूखने लगती है तब समझना चाहिए कि फसल की कटाई का समय आ गया है I यदि सही तकनीक से फसल कि कटाई की जाये तो लगभग 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीज प्राप्त हो जाता है I
खेत की मिट्टी का सीधा प्रभाव फसल की पैदावार से होता है, गुणवत्तापूर्ण उपज और अधिक पैदावार के लिए मिट्टी में कौन कौन से तत्व होने चाहिए इसकी जानकारी होना जरूरी है। मिट्टी में लम्बे अरसे से रासायनिक पदार्थों और कीटनाशकों के प्रयोग होने के कारण खेत की मिट्टी की उर्वरक क्षमता कम हो जाती है। किसी भी फसल से उन्नत उपज लेने के लिए ये जानना जरूरी हैं कि उसे जिस मिट्टी के लगाया जा रहा है. उसमें उसके विकास के लिए पोषक तत्व मौजूद हैं या नही। मृदा परीक्षण यानि मिट्टी की जांच करा कर किसान अपने खेत की मिट्टी की सही सही जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। मिट्टी की जांच में भूमि के अम्लीय और क्षारीय गुणों की जांच की जाती है, ताकि पीएच मान के आधार पर उचित फसल को उगाया जा सके. और भूमि सुधार किया जा सके। मिट्टी की जाँच से किसान भाई अपने खेत की मिट्टी की गुणवत्ता जानकार उसमे उसी के उपयुक्त फसल लगा कर कम खर्च में अधिक उपज प्राप्त कर सकते है। मिट्टी की जांच क्यों आवश्यक है मिट्टी की जांच कराने के बाद मिट्टी में मौजूद कमियों को सुधारकर उसे फिर से उपजाऊ बनाने के लिए। मिट्टी परिक्षण करवाकर उर्वरकों और रसायनों पर होने वाले अनावश्यक खर्च से बच सकता है। जैविक खेती करने वाले किसान भाई मिट्टी की जांच कराकर मिट्टी के जैविक गुणों का पता लगा सकते हैं. और उसी के आधार पर जैविक पोषक तत्वों का इस्तेमाल पूरी तरह से जैविक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। मिट्टी में कई पोषक तत्व होते हैं जैसे कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश , कैल्सिशयम, मैग्नीशियम और सूक्ष्म तत्वों जैसे जस्ता , मैग्नीज, तांबा, लौह, बोरोन, मोलिबडेनम और क्लोरीन इत्यादि अगर इन सबकी मौजूदगी मिट्टी में संतुलित रूप में रहती है तो इससे अच्छी पैदावार प्राप्त होती है। मिट्टी में इन तत्वों की कमी के कारण मिट्टी की उर्वरक शक्ति कम होने लगती है। मिट्टी जांच के फायदे सघन खेती के कारण खेत की मिट्टी में उत्पन्न विकारों की जानकारी समय समय पर मिलती रहती है। मिट्टी में विभिन्न पोषक तत्वों की उपलब्धता की दशा का ज्ञान हो जाता है। बोयी जाने वाली फसल के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता का अनुमान लगाया जा सकता है। संतुलित उर्वरक प्रबन्ध द्वारा अधिक लाभ कमा सकते है। मिट्टी जांच कब करानी चाहिए मिट्टी की जांच के समय ध्यान देना चाहिए की भूमि में नमी की मात्रा कम से कम हो। फसल की बुवाई या रोपाई से एक महीना पहले खेत की मिट्टी की जांच कराएं। अगर आप सघन पद्धति से खेती करते हैं तो हर वर्ष मिट्टी की जांच करवानी चाहिए। यदि खेत में वर्ष में एक फसल की खेती की जाती है तो हर 2 या 3 साल में मिट्टी की जांच करा लें। मिट्टी की जांच कैसे करे एक एकड़ क्षेत्र में लगभग 8-10 स्थानों से ‘V’ आकार के 6 इंच गहरे गहरे गढ्ढे बनायें। एक खेत के सभी स्थानों से प्राप्त मिट्टी को एक साथ मिलाकर ½ किलोग्राम का एक नमूना बनायें। नमूने की मिट्टी से कंकड़, घास इत्यादि अलग करें। सूखे हुए नमूने को कपड़े की थैली में भरकर कृषक का नाम, पता, खसरा संख्या, मोबाइल नम्बर, आधार संख्या, उगाई जाने वाली फसलों आदि का ब्यौरा दें। नमूना प्रयोगशाला को प्रेषित करें अथवा’ ‘परख’ मृदा परीक्षण किट द्वारा स्वयं परीक्षण करें।
इस यंत्र के उपयोग से बीज के अच्छे अंकुरण के लिए भूमि में सुधार, कीटों एवं इनके रहने के स्थानों को आसानी से नष्ट किया जा सकता है। यह घास-फूस तथा खरपतवपार वाली भूमि के लिए अत्यंत उपयोगी यंत्र है। गेहूं की बुवाई के लिए खेत तैयार करने में इस यंत्र का उपयोग अत्यंत ही लाभदायक है। इसकी कार्यक्षमता एक दिन में 4 से 5 हैक्टेयर है।
किसान और सरकार चाहते हैं कि देशभर में फसलों की पैदावार और उनकी गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी हो, क्योंकि इससे किसान और सरकार, दोनों को लाभ होगा !मगर यह तभी संभव हो पाएगा, जब फसल उत्पादन का काम कम लागत में संपन्न हो!इसका एक मात्र विकल्प यह है कि आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग किया जाए, ताकि समय, श्रम और लागत की बचत हो पाए ! इससे किसानों को अच्छा मुनाफा भी मिल सकेगा! ऐसे में आज हम ऐसे आधुनिक 2 कृषि यंत्रों के बारे में बताएंगे, जो कि गेहूं की कटाई को आसान बना देते हैं!
ट्रैक्टर चलित रीपर बाइंडर:
यह मशीन किसानों के लिए बहुत उपयोगी है! इसमें भी कटर बार से पौधे कटे जाते हैं फिर पुलों में बंध जाते हैं! इसके बाद संचरण प्रणाली द्वारा एक और गिरा दिया जाता है !खास बात यह है कि इस मशीन की मदद से कटाई और बंधाई का कार्य बहुत सफाई से होता है!
स्वचालित वर्टिकल कनवेयर रीपर:
छोटे और मध्यम किसानों के लिए गेहूं की कटाई करने के लिए यह बहुत उपयोगी मशीन है! इस मशीन में आगे की ओर एक कट्टर बार लगी होती है, तो वहीं पीछे संचरण प्रणाली लगी होती हैं!इसके साथ ही रीपर में लगभग 5 हॉर्स पावर का एक डीजल इंजन लगा होता है, जो कि पहियों और कटर बार के लिए शक्ति संचरण का कार्य करता है
कैसे करते हैं गेहूं की कटाई:
किसान को फसल कटाई के लिए कटर बार को आगे रखकर हैंडिल से पकडक़र पीछे चलना होता है. कटर बार गेहूं के पौधों को काटती हैं. इसके साथ ही संचरण प्रणाली द्वारा पौधे एक लाइन में बिछा दिए जाते हैं, जिनको श्रमिकों द्वारा इकट्ठा कर लिया जाता है.
कृषि में जहाँ किसान पहले वर्ष में एक या दो फसल ले पाते थे वही अब कृषि यंत्रों की मदद से कम समय में कृषि कार्यों को पूर्ण करके तीन फसलें लेने लगे हैं | कृषि यंत्र से जहाँ कम समय में कार्य पूर्ण हो जाते हैं वही इससे फसल उत्पदान की लागत भी कम होती है खासकर छोटे कृषि यंत्रों से | भारत में छोटे एवं मध्यवर्गीय किसानों के लिए छोटे कृषि यंत्रों को विकसित किया जा रहा है | सरकार द्वारा इनके उपयोग को बढ़ावा भी दिया जा रहा है जिसके लिए सरकार द्वारा इन कृषि यंत्रों पर सब्सिडी भी दी जाती है | छोटे किसानों के बीच इन छोटे कृषि उपकरणों को लोकप्रिय बनाने की आवश्यकता है, जिससे कृषि श्रमिकों और किराए की मशीनों पर उनकी निर्भरता कम की जा सके | किसान समाधान गेहूं कटाई के समय को देखते हुए कटाई के लिए उपयुक्त मोटर संचालित क्रॉप कटर की जानकारी लेकर आया है |
मोटर संचालित क्राप कटर:
क्राप कटर मशीन पके हुए गेहूं को जमीन से लगभग 15 से 20 से.मी. की ऊँचाई से काट सकती है | क्रॉप कटर से काटने की चोडाई 255 सेमी तक होती है वहीँ इसमें 48 से 50 सीसी की शक्ति से चल सकती है | इसका बजन 8 किलो से लेकर 10 किलोग्राम तक होता है | यह पेट्रोल से चलने वाला यंत्र है जिसमें एक बार में 1.2 लीटर पेट्रोल तक भरा जा सकता है | मशीन में एक गोलाकार आरा ब्लेड, विंडरोइंग सिस्टम, सेफ्टी कवर, कवर के साथ ड्राइव शाफ़्ट, हैंडल, ऑपरेटर के लिए हैगिंग बैंड पेट्रोल टैंक, स्टार्टर नांब , चोक लीवर और एयर क्लीनर होते हैं | ब्लेड, इंजन द्वारा संचालित एक लंबी ड्राइव शाफ़्ट के माध्यम से घूमता है | 25 से.मी. की ऊँचाई और 12 से.मी. के ब्लेड त्रिज्या के बराबर आधे बेलन के आकार की एक एलुमिनियम शीट को काटने वाले ब्लेड के उपरी भाग में फिट किया जाता है | फसलों को इकट्ठा करने में आसानी के लिए एक समान पंक्ति बनाने के लिए एक गार्ड लगाया जाता है |
क्राप कटर मशीन में ब्लेड का उपयोग फसल के अनुसार करें :
मोटर संचालित क्राप कटर मशीन में ब्लेड का उपयोग फसल के पौधे के अनुसार किया जा सकता है | ज्यादा दांत वाले ब्लेड का उपयोग मोटे तथा कड़क पौधे की कटाई के लिए किया जाता है तथा कम दांत वाले ब्लेड का उपयोग मुलायम तथा पतले पौधे के लिए किया जाता है |
दांतों की संख्या तथा उसका उपयोग :
120 दांत वाले ब्लेड का उपयोग – 120 दांतों वाले ब्लेड का उपयोग गेहूं, मक्का आदि फसलों की कटाई के लिए किया जाता है | 60 और 80 दंतों वाले ब्लेड का उपयोग – 60 तथा 80 दानों वाले ब्लेड का उपयोग चारा काटने के लिए किया जाता है | 40 दांतों वाले ब्लेड का उपयोग – 40 दांतों वाले ब्लेड का उपयोग 2 इंच मोती वाले पौधे को काटने के लिए किया जाता है |
आजकल पारम्परिक खेती को लेकर एक धारणा बन गयी है कि इससे मुनाफा मिलता कठिन होता है और यही कारण है कि कई किसान किसानी छोड़ कर किसी और व्यवसाय कि तरफ रुख कर रहे है I परन्तु वही कुछ किसान ऐसे भी है जो नयी नयी खेती की तकनीक को अपना कर दिन दुगनी रात चौगुनी कमाई कर रहे है, ऐसी ही एक तकनीक का नाम है इंटीग्रेटेड फार्मिंग या एकीकृत कृषि प्रणाली I आइये जानते है क्या है इंटीग्रेटेड फार्मिग सिस्टम? इंटीग्रेटेड फार्मिग सिस्टम यानी एकीकृत कृषि प्रणाली का महत्त्व छोटे और सीमांत किसानों के लिए ज्यादा है हालाँकि बड़े किसान भी इस प्रणाली की अपनाकर खेती से मुनाफा कमा सकते हैंI एकीकृत कृषि प्रणाली का मुख्य उदेश्य खेती की जमीन के हर हिस्से का पूर्ण रूप से इस्तेमाल करना हैI इसके तहत आप एक ही साथ अलग-अलग फसल, फूल, सब्जी, मवेशी पालन, फल उत्पादन, मधुमक्खी पालन, मछली पालन इत्यादि कर सकते हैं I इससे आप अपने संसाधनों का पूरा इस्तेमाल कर पाएंगे और लागत में कमी आएगी फलस्वरूप उत्पादकता बढ़ेगी I एकीकृत कृषि प्रणाली न केवल पर्यावरण के लिए अनुकूल है बल्कि यह खेत की उर्वरक शक्ति को भी बढ़ाती हैI इंटीग्रेटेड फार्मिंग का एक बहुत ही बेहतरीन उदाहरण आपके लिए प्रस्तुत है I उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से महज 90 किलोमीटर दूर सीतापुर जिला राष्ट्रीय राज्यमार्ग के किनारे जिला कृषि उपनिदेशक अरविंद मोहन मिश्र ने अपने कार्यालय में खाली पड़ी जमीन पर आधुनिक विधि से एक एकड़ में मौडल तैयार किया है I इस एक एकड़ के मौडल में मछलीपालन, बत्तखपालन, मुरगीपालन के साथसाथ फलदार पौधों की नर्सरी तैयार करवाई गयी है I श्री अरविंद मोहन मिश्र बताते हैं कि उन्होंने एक बीघा जमीन में तालाब की खुदाई करवाई है, तालाब में ग्रास कौर्प मछली डाल रखी हैं, इतनी मछली से सालभर में करीब एक से डेढ़ लाख रुपए की कमाई हो जाती है I इस के बाद तालाब के ऊपर मचान बना कर उस में पोल्ट्री फार्म बनाया है, जिस में कड़कनाथ सहित अन्य देशी मुर्गा - मुर्गी पाल रखे हैं I जो दाना मुर्गियों को दिया जाता हैं, उस का जो शेष भाग बचता है, वह मचान से नीचे गिरता रहता है और उसे नीचे तालाब की मछलिया खा लेती है जिससे मछलियों के दाने की बचत हो जाती है I 2 बीघा जमीन पर ढैंचा की बुआई कर रखी है जिससे हरी खाद बनेगी और उस के बाद इस की जुताई करा के इस में शुगर फ्री धान की रोपाई कर देंगे I मिश्र जी ने यह भी बताया कि २ बीघे में गन्ने की पैदावार की गयी है जिससे तकरीबन 200 से 250 क्विंटल गन्ने की पैदावार लेते हैं, साथ ही, गन्ने में बीचबीच में अगेती भिंडी फसल बो रखी है, जिस से 30 से 40 हजार रुपए का मुनाफा होता है I सहफसली से एक और फायदा है कि जो छिड़काव या खाद हम एक फसल में देते हैं, उस का लाभ सहफसली को भी मिल जाता है I जिला उपकृषि निदेशक अरविंद मोहन मिश्र ने कहा कि पायलट प्रोजैक्ट के तौर पर यह मॉडल सीतापुर जिले में 10 किसानों के लिए और बनवाया जाएगा I इस मॉडल की मंजूरी के लिए शासन से भी बातचीत चल रही है I आजकल कृषि में लागत वृद्धि होने का एक कारण यह भी है कि किसान अधिक उत्पादन के चक्कर में खेती में रासायनिक खादों का प्रयोग कर रहे हैं, वो भी बिना किसी मापदंड के I इस को कम करने के लिए किसान खुद देशी विधि जैसे वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल कर या गाय का गोबर और गौमूत्र से जीवामृत बना कर छिड़काव करें, इससे कृषि लागत में कमी लायी आज सकती है I किसान यदि ठान ले तो भारतीय खेती व् नवीनतम कृषि तकनीक के जरिये वो अपनी आमदनी भी बढ़ा सकता है और कृषि उत्पाद की गुणवत्ता भी कायम रख सकता है I
खेत की मिट्टी का सीधा प्रभाव फसल की पैदावार से होता है, गुणवत्तापूर्ण उपज और अधिक पैदावार के लिए मिट्टी में कौन कौन से तत्व होने चाहिए इसकी जानकारी होना जरूरी है। मिट्टी में लम्बे अरसे से रासायनिक पदार्थों और कीटनाशकों के प्रयोग होने के कारण खेत की मिट्टी की उर्वरक क्षमता कम हो जाती है। किसी भी फसल से उन्नत उपज लेने के लिए ये जानना जरूरी हैं कि उसे जिस मिट्टी के लगाया जा रहा है. उसमें उसके विकास के लिए पोषक तत्व मौजूद हैं या नही। मृदा परीक्षण यानि मिट्टी की जांच करा कर किसान अपने खेत की मिट्टी की सही सही जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। मिट्टी की जांच में भूमि के अम्लीय और क्षारीय गुणों की जांच की जाती है, ताकि पीएच मान के आधार पर उचित फसल को उगाया जा सके. और भूमि सुधार किया जा सके। मिट्टी की जाँच से किसान भाई अपने खेत की मिट्टी की गुणवत्ता जानकार उसमे उसी के उपयुक्त फसल लगा कर कम खर्च में अधिक उपज प्राप्त कर सकते है। मिट्टी की जांच क्यों आवश्यक है मिट्टी की जांच कराने के बाद मिट्टी में मौजूद कमियों को सुधारकर उसे फिर से उपजाऊ बनाने के लिए। मिट्टी परिक्षण करवाकर उर्वरकों और रसायनों पर होने वाले अनावश्यक खर्च से बच सकता है। जैविक खेती करने वाले किसान भाई मिट्टी की जांच कराकर मिट्टी के जैविक गुणों का पता लगा सकते हैं. और उसी के आधार पर जैविक पोषक तत्वों का इस्तेमाल पूरी तरह से जैविक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। मिट्टी में कई पोषक तत्व होते हैं जैसे कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश , कैल्सिशयम, मैग्नीशियम और सूक्ष्म तत्वों जैसे जस्ता , मैग्नीज, तांबा, लौह, बोरोन, मोलिबडेनम और क्लोरीन इत्यादि अगर इन सबकी मौजूदगी मिट्टी में संतुलित रूप में रहती है तो इससे अच्छी पैदावार प्राप्त होती है। मिट्टी में इन तत्वों की कमी के कारण मिट्टी की उर्वरक शक्ति कम होने लगती है। मिट्टी जांच के फायदे सघन खेती के कारण खेत की मिट्टी में उत्पन्न विकारों की जानकारी समय समय पर मिलती रहती है। मिट्टी में विभिन्न पोषक तत्वों की उपलब्धता की दशा का ज्ञान हो जाता है। बोयी जाने वाली फसल के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता का अनुमान लगाया जा सकता है। संतुलित उर्वरक प्रबन्ध द्वारा अधिक लाभ कमा सकते है। मिट्टी जांच कब करानी चाहिए मिट्टी की जांच के समय ध्यान देना चाहिए की भूमि में नमी की मात्रा कम से कम हो। फसल की बुवाई या रोपाई से एक महीना पहले खेत की मिट्टी की जांच कराएं। अगर आप सघन पद्धति से खेती करते हैं तो हर वर्ष मिट्टी की जांच करवानी चाहिए। यदि खेत में वर्ष में एक फसल की खेती की जाती है तो हर 2 या 3 साल में मिट्टी की जांच करा लें। मिट्टी की जांच कैसे करे एक एकड़ क्षेत्र में लगभग 8-10 स्थानों से ‘V’ आकार के 6 इंच गहरे गहरे गढ्ढे बनायें। एक खेत के सभी स्थानों से प्राप्त मिट्टी को एक साथ मिलाकर ½ किलोग्राम का एक नमूना बनायें। नमूने की मिट्टी से कंकड़, घास इत्यादि अलग करें। सूखे हुए नमूने को कपड़े की थैली में भरकर कृषक का नाम, पता, खसरा संख्या, मोबाइल नम्बर, आधार संख्या, उगाई जाने वाली फसलों आदि का ब्यौरा दें। नमूना प्रयोगशाला को प्रेषित करें अथवा’ ‘परख’ मृदा परीक्षण किट द्वारा स्वयं परीक्षण करें।
बीज पौधे का वह भाग होता है जिसमें पौधों के प्रजनन की क्षमता होती है और जो मृदा के सम्पर्क में आने पर अपने जैसा ही एक नये पौधे को जन्म देता है। बीज फसल के दाने का पूर्ण या आधा भाग भी हो सकता है। यह बात बताने की जरुरत नहीं है की एक सफल, गुणवत्तापूर्वक, लहराती उपज के लिए उच्च कोटि का रोग रहित, स्वस्थ और उन्नत बीज की आवश्यकता होती है | बीज को निरोग और स्वस्थ बनाने के लिए बीज उपचार किया जाता है जिसमे बीज को अनुशंसित रसायन या जैव रसायन से उपचारित करना होता है | बीज उपचार से बीज में उपस्थित आन्तरिक या वाह्य रोगजनक जैसे फफूंद, जीवाणु, विषाणु एवं सूत्रकृमि और कीट नष्ट हो जाते है और बीजों का स्वस्थ अंकूरण तथा अंकुरित बीजों का स्वस्थ विकास होता है | साथ ही पोषक तत्व स्थिरीकरण हेतु जीवाणु कलचर से भी बीज उपचार किया जाता है| बीज उपचार की सभी पहलुओं की जानकारी नीचे उपलब्ध है| बीज उपचार का महत्त्व इसलिए भी है की यह प्रारंभ में ही बीज जनित रोगों और कीटों का प्रभाव न्यून या रोकने में मददगार है| यदि पौधों की वृद्धि के बाद इनको रोकने का प्रयास किया जाये तो इससे अधिक खर्च भी होगा और क्षति भी अधिक होगी| बीजों में अंदर और बाहर रोगों के रोगाणु सुशुप्ता अवस्था में, मिट्टी में और हवा में मौजूद रहते हैं| ये अनुकूल वातावरण के मिलने पर उत्पन्न होकर पौधों पर रोग के लक्षण के रूप में प्रकट होते हैं| फसल में रोग के कारक फफूंद रहने पर फफूंदनाशी से, जीवाणु रहने पर जीवाणुनाशी से, सूत्रकृमि रहने पर सौर उपचार या कीटनाशी से उपचार किया जाता है| मिट्टी में रहने वाले कीटों से सुरक्षा के लिए भी कीटनाशी से बीजोपचार किया जाता है| इसके अतिरिक्त पोषक तत्व स्थिरीकरण के लिए जीवाणु कलचर जैसे राइजोवियम, एजोटोबैक्टर, एजोस्पाइरीलम, फास्फोटिका और पोटाशिक जीवाण से भी बीजोपचार किया जाता है| बीज उपचार बहुत ही सस्ता और सरल उपचार है| इसे कर लेने पर लागत का ग्यारह गुणा लाभ और कभी-कभी महामारी की स्थिति में 40 से 80 गुणा तक लागत में बचत सम्भावित है|
बीज उपचार करने के लिए रसायन या जैव रसायन की अनुशंसित मात्रा कैसे तय करे रोग नियंत्रण हेतु जैव रसायन द्वारा-
ट्राइकोडर्मा- 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज
स्यूडोमोनास- 4 से 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज रसायन द्वारा-
कार्बेन्डाजीम या मैंकोजेव या बेनोमील- 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज
कैप्टान या थीरम- 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज
फनगोरेन- 6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज
ट्रायसाइक्लोजोल- 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज
कीट नियन्त्रण हेतु-
क्लोरपायरीफॉस- 5 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज
इमीडाक्लोप्रीड या थायमेथोक्साम- 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज
मोनोक्रोटोफास- 5 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज (सब्जियों को छोड़कर)
पोषक तत्व स्थिरीकरण हेतु-
नेत्रजन स्थिरीकरण हेतु- राइजोबियम, एजोटोबेक्टर और एजोस्पाइरील- 250 ग्राम प्रति 10 से 12 किलोग्राम बीज
पोटाश स्थिरीकरण हेतु- पोटाशिक जीवाणु- 250 ग्राम प्रति 10 से 12 किलोग्राम बीज
बीज उपचार निम्न ४ विधियों से किया जा सकता है -
सुखा बीजोपचार
भीगे बीजोपचार
गर्म पानी बीजोपचार
स्लरी बीजोपचार बीज उपचार विधि सुखा बीज उपचार- बीज को एक बर्तन में रखें, उसमें रसायन या जैव रसायन की अनुशंसित मात्रा में मिलायें, बर्तन को बन्द करें और अच्छी तरह हिलाएँ| भीगे बीज उपचार- पालीथीन चादर या पक्की फर्श पर बीज फैला दें, अब हल्का पानी का छिड़काव करें, रसायन या जैव रसायन अनुशंसित मात्रा में बीज के ढेर पर डालकर उसे दस्ताना पहने हाथों से अच्छी तरह मिलाकर छाया में सुखा लें| गर्म पानी उपचार- किसी धातु के बर्तन में पानी को 52 डिग्री सेंटीग्रेड तक गर्म करें, बीज को 30 मिनट तक उस बर्तन में डालकर छोड़ दें, उपरोक्त तापक्रम पूरी प्रक्रिया में बना रहना चाहिए, बीज को छाया में सुखा लें उसके बाद बुआई करें| स्लरी या घोल बीज उपचार- स्लरी (घोल) बनाने हेतु रसायन या जैव रसायन की अनुशंसित मात्रा को 10 लीटर पानी की मात्र में किसी टब या बड़े बर्तन में अच्छी तरह मिला लें| अब इस घोल में बीज, कंद या पौधे की जड़ों को 10 से 15 मिनट तक डालकर रखें, फिर छाया में बीज या कंद को सुखा ले तथा बुआई या रोपाई करें|
बीज उपचार से जुडी कुछ सावधानिया -
बीजों में जीवाणु कलचर से बीज उपचार करने के लिए सर्वप्रथम 100 ग्राम गुड़ को 1 लीटर पानी में उबाल लेते हैं, जब यह एक तार के चासनी जैसा बन जाए, तब इसे ठंडा होने के लिए छोड़ दिया जाता है, जब घोल पूरी तरह ठंडा हो जाए, तब इसमें 250 ग्राम कलचर को ठीक से मिला दिया जाता है| अब इस मिश्रित घोल को बीज के ढेर पर डालकर अच्छी तरह मिलाकर बुआई कर सकते हैं|
राइजोबियम कल्चर फसलों की विशेषता के आधार पर किये जाते हैं, इसलिए विभिन्न वर्गों के राइजोबियम को दिये गये फसलों के अनुसार ही उपयुक्त मात्रा में इन्हें प्रयोग किया जाना चाहिए|
कल्चर से उपचारित बीज की बुआई शीघ्र करना चाहिए|
बीजों पर यदि जीवाणु कल्चर प्रयोग के साथ-साथ फफूंदनाशी या कीटनाशी रसायनों का प्रयोग करना हो तब सबसे पहले फफूदनाशी का प्रयोग करे फिर कीटनाशी और जीवाणु कलचर का प्रयोग करे और सबके बीच 8 से 10 घंटे का अंतर रखे और उसके उपरान्त एवं अन्त में 20 घंटे के बाद जीवाणु कलचर से बीज उपचार करना चाहिए|
यदि जीवाणु कलचर प्रयोग के साथ-साथ फफूंदनाशी और कीटनाशी रसायन का प्रयोग अनिवार्य हो तब कलचर की मात्रा दोगुनी करनी पड़ेगी| यदि कलचर पहले प्रयोग में लाया गया है, तो फफूंदनाशी और कीटनाशी रसायनों का इस्तेमाल न करें तो ज्याद अच्छा होगा|
बीज को कभी भी उपचार के बाद धूप में नही सुखायें, यानि उपचारित बीज को सुखाने के लिए खुला परन्तु छायादार जगह का प्रयोग करें|
बीज को उपचारित करते समय हाथ में दस्ताना पहनकर ही बीज उपचार करें, यदि थिरम से बीज उपचार करना हो तो आँखों पर चश्मा का प्रयोग करें, क्योंकि थीरम को पानी में मिलाने पर गैस निकलती है, जो आँखों में जलन पैदा करती हैं|
किसी कारण से यदि रसायन या जैव रसायन का फफूंदनाशी या कीटनाशक उपलब्ध न हो तो घरेलू विधि में ताजा गौ-मूत्र 10 से 15 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज के द्वारा भी बीज उपचार कर सकते हैं|