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    लाइलाज नहीं है अवसाद या डिप्रेशन

    सबकी ज़िन्दगी में दुःख और सुख समय समय पर आते जाते रहते है, और हम सब सुख दुःख से प्रभावित भी होते है जो कि एक साधारण बात है, मगर यदि किसी में अवसाद की स्थिति होती है ये दुःख कई गुना ज़्यादा गहरा, लंबा और दुखदायी होता है। कई लोग अवसाद की कारण जीने की इच्छा खो बैठते है और रोजाना के दैनिक कार्यो में भी उनका मन नहीं लगता, किसी से मिलना जुलना हसना बोलना उन्हें पसंद नहीं आता। विशेषज्ञ कहते हैं कि अवसाद की सबसे खराब स्थिति में पीड़ित आत्महत्या तक कर सकता है। हर साल संसार में करीब 8 लाख लोग आत्महत्या करते है, और इनमे से 17% यानी 135000 भारतीय है। हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति आत्महत्या का शिकार हो जाता है और हर 3 सेकेंड में एक व्यक्ति प्रयास करता है आत्महत्या के लिए। अवसाद के पीड़ित पूरे विश्व में पाए जाते है और माना जाता है की भारत में करीब पांच करोड़ लोग इससे पीड़ित हैं।
    किसे होता है अवसाद?
    बच्चे से लेकर बुजुर्गों तक में अवसाद देखा गया है। तनाव युक्त जीवन, अत्यधिक महत्वकांक्षी होना इन्हें और बढ़ाता है। लोग जब चुनौतीपूर्ण समय से गुज़र रहे होते हैं तो उनके अवसाद में जाने की आशंका अधिक हो जाती है। जिन लोगों के परिवार में अवसाद का इतिहास रहा हो वहाँ भी लोगों के अवसाद पीड़ित होने की आशंका ज़्यादा होती है।
    क्या होता है ये अवसाद?
    अवसाद से जुडी जयंती भी जानकारी पायी गयी है उसमे कही भी ये साफ़ साफ़ रूप से देखने में नहीं आया है की आखिर ये अवसाद किस वजह से होता है, मगर विशेषज्ञों का मानना है की इसके लिए कई पहलु जिम्मेदार हो सकते है, जैसे - मन का निराशापूर्ण रहना, हर वक़्त कुछ बुरा होने की भावना से ग्रसित रहना, किसी नज़दीकी से बिछुड़ जाने का दुःख जो असहनीय रूप से मन को दुखी कर रहा हो।
    कुछ भी काम करने से पूर्व सोच लेना कि में सफल नहीं होऊंगा, खुद को कमज़ोर या किसी लायक न समझना, कभी कभी कुछ बीमारियों के कारण भी लोगो को अवसाद हो जाता है जिनमें एक थायरॉयड की कम सक्रियता होना हैI कुछ दवाओं के साइड इफ़ेक्ट्स में भी अवसाद हो सकता है। इनमें ब्लड प्रेशर कम करने के लिए इस्तेमाल होने वाली कुछ दवाएँ शामिल हैं।
    अवसाद के लक्षण
    इस अवस्था में व्यक्ति में अपना भला बुरा सोचने की क्षमता समाप्त हो जाती है, वह स्वयं की शक्ति को पहचानने में असमर्थ हो जाता है और सदा लाचारी की स्थिति में रहता है। उसे निराशा सदा घेरे रहती है और अपने आस-पास किसी को पसंद नहीं करता है। चिंता, उदासीनता, असंतोष, खालीपन, अपराध बोध, निराशा, मिजाज बदलते रहना, घबराहट अथवा सुख प्रदान करने वाले कार्यों से भी सुख प्राप्त ना होना। अकेलापन उसे अच्छा लगता है। किसी की भी बात भले ही मजाक में कही गई हो उसे तीर की तरह चुभ जाती है हर बात को अपने से जोड़ लेता है और सब पर संदेह करता है। कुछ अवसादग्रस्त व्यक्ति ऐसे भी होते है जो जब तक दिनभर काम में व्यस्त होते हैं तब तक वे अवसाद की स्थिति से दूर रहते हैं परन्तु जैसे ही वे अकेले हो जाते हैं फिर से अवसाद में डूब जाते हैं।
    मुख्य रूप से अवसाद के निम्न तीन लक्षण दिखाई पड़ते है -
    1.ऐसे अवसाद की स्थिति में किसी भी काम या चीज़ में मन नहीं लगता है, कोई रुचि नहीं होती, किसी बात से कोई खुशी नहीं होती और तो और दुःख का भी अहसास नहीं होता है।
    2.हर समय नकारात्मक सोच रहना।
    3.नींद न आना या बहुत नींद आना, आधी रात को नींद खुल जाना और अगर ऐसा दो सप्ताह से अधिक चले तो अवसाद की निशानी है।
    अवसाद से बचाव के कुछ तरीके
    अवसाद की स्तिथि यदि शुरुआती है तो इसे अपने स्तर पर संभाला जा सकता है परन्तु समस्या गंभीर हो जाने पर डॉक्टर से सलाह करके उपचार करना जरुरी है। आहार, योग, प्राणायाम और ध्यान उपचार हेतु बहुत हद तक लाभप्रद है। अवसाद से बचाव के कुछ नियम जानते है।
    सबसे पहले अवसाद ग्रसित लोगो को या सामान्य लोगो को भी अपनी नींद के समय और जागने के समय को नियमित करना चाहिए, कम से कम ८ घंटे की पर्याप्त नींद ले।
    अपने दिन भर के भोजन को खाने का समय निश्चित करे और हर भोजन से बीच ४-५ घंटे का अंतराल रखे, भोजन पौष्टिक और सम्पूर्ण ले।
    अपनी दिनचर्या में व्यायाम, योग, ध्यान, सूर्य नमस्कार या कोई भी हलकी फुलकी आपने मन को भाने वाले व्यायाम को शामिल करे नियमित रूप से करे, ये न केवल आपके शरीर को बल्कि मन को भी मज़बूत बनाएगा।
    आज के समय में ऐसा कोई नहीं है जिसे तनाव न हो, तनाव सभी को होता है मगर कोशिश ये करनी चाहिए की इसे कम कैसे किया जाये, इसके लिए अपने आप को व्यस्त रखे, दोस्तों से मिले जुले, परिवार के बड़े बुजुर्ग, बच्चो के साथ समय बिताये, अच्छी किताब पढ़े, संगीत सुने, या अपनी रुचिपूर्ण कार्यो में मन लगाए, इधर उधर के विचार अपने दिमाग में न रखे। अपनी महत्वकांक्षा को उतना ही रखना जितना हासिल करना संभव हो, अपनी ज़िन्दगी की तुलना दुसरो से कतई न करे, दुसरो की देखादेखी में अपने जीवन की शांति भंग न करे।
    एक महत्वपूर्ण बात हमेशा याद रखें, इससे फर्क नहीं पड़ता आप कौन हैं, जीवन तब तक सही नहीं चलता जब तक आप सही चीजें नहीं करते।
    यदि आप सही परिणाम चाहते हैं तो सही कार्यों का चयन करें फिर जीवन हर दिन एक खूबसूरत चमत्कार से कम नहीं है। हमें अपने जीवन की बागडोर या जिम्मेदारी अपने हाथ लेनी होगी जिससे हमारे अन्दर की असीमित क्षमताएं निखर कर आये और तनाव रहित जीवन बने।
    श्री श्री रविशंकर जी कहते हैं - "यदि आप दुःखी है, तो इसका कारण कोई और नहीं किन्तु आप स्वयं है। आपको न कोई ख़ुशी दे सकता है न दुःख। आपकी अत्यधिक महत्वकांक्षाओ और अपेक्षाओं ने आपको दुःखी कर रखा है, अपनी इच्छाओं को गेंद की तरह उछाल फेंके। जिम्मेदारी और चिंता ईश्वर को समर्पित कर दें।"

    July 14, 2021
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    जाने धनिया पत्ती और शकरकंद के अनसुने लाभ

    यूँ तो भारत में मिलने वाली सभी सब्जिया व फल सेहत और गुणों से भरपूर है, हर एक फल और सब्जी का यदि सही जानकारी के साथ सेवन किया जाये तो हम अनेक प्रकार के रोगो से बचाव कर सकते हैI आइये जानते है हरी धनिया पट्टी और शकरकंद के वो गुण जो शायद आपने कभी सुने नहीं होंगे I यूँ तो हरी धनिया भारतीय रसोई का अभिन्न अंग है, चाहे दाल हो या सब्जी या चटनी इसके बिना हर स्वाद और रूप रंगत फीकी पड़ जाती है I धनिया पत्ती का इस्तेमाल केवल सब्जियों के ऊपर डाल कर सुन्दर दिखने का ही नहीं बल्कि ये हमारे लिए कितनी गुणकारी है इसकी जानकारी लेते हैI प्रोटीन, वसा, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट्स, खनिज लवण, आयरन आदि से भरपूर हरा धनिया पेट से जुडी अनेक समस्याओं को ठीक करने में मददगार होता है। इसकी हरी हरी ताज़ी पत्तियों को छाछ और दही के मिलाकर खाया जाए तो यह अपचन, एसिडिटी और खट्टी डकारों को दूर करता है और पाचन का कार्य करने में बेहद लाभप्रद है। धनिया में विटामिन ए प्रचुर मात्रा में होता है जिससे आंखों की सेहत बानी रहती है। कमज़ोरी या थकन या अचानक सिर घूमने लगे तो धनिया के रस का सेवन करना चाहिए। तनाव और थकान दूर करने के लिए धनिया एक कारगर नुस्खा है। धनिये में पाया जाने वाला सुगंधित तेल अवसाद को दूर करने में सहायक होता है। किडनी की सेहत को दुरुस्त बनाए रखने और किडनी की सफाई करने के लिए धनिया एक कारगार औषधि है। एक मुट्ठी धनिया की ताज़ी पत्तियो को धो कर उबाल ले और इसे छानकर रोज़ाना कम से कम एक बार पिएंगे तो असरकारक होता है। सभी स्वस्थ लोगों को भी धनिया का जूस नियमित तौर से पीते रहना चाहिए।

    शकरकंद में जितने फायदे होते है उस हिसाब से यह एक अपेक्षित फल है, लोग इसका सेवन सर्दियों में स्वाद के रूप में एक दो बार करते है। जबकि ये इतने गुणों से युक्त होता है की इसका सेवन प्रतिदिन किया जाना चाहिए। शकरकंद एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर होते हैं और इसके छिलकों में बीटा कैरोटीन पाया जाता है। महिलाओं द्वारा रोज शकरकंद का सेवन करने पर महिलाओं में स्तन कैंसर होने की संभावनांए कम हो जाती है। शकरकंद का जूस स्तन कैंसर होने पर कैंसर कोशिकाओं की वृद्दि रोकता है और नयी कैंसर कोशिकाओं के बनने के चक्र को रोकता है। शकरकंद में आयरन, फोलेट, कॉपर, मैग्नीशियम, विटामिन आदि होते हैं, जिससे हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत बनती है। सौंदर्य प्रेमी लोगो को ये जानकार ख़ुशी होगी की शकरकंद खाने से त्वचा चमकदार बनती है और जल्दी झुर्रियां भी नहीं पड़ती। शकरकंद के सेवन से आंखों की रौशनी बढती है, इसमें मौजूद बीटा कैरोटीन शरीर में फ्री रैडिकल्स से लड़ता है और जल्द बुढ़ापा नहीं आने देता। इसमें विटामिन सी पाया जाता है जो कि त्वचा में कोलाजिन का निर्माण कर के त्वचा की काया बनाए रखता है।

    July 10, 2021
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    अपनी दिनचर्या में हलके फुल्के बदलाव से बनाइये अपने फेफड़ो को मजबूत

    कोरोना वायरस की दूसरी लहर अब लगभग कम हो गयी है परन्तु यह मान लेना की यह बीमारी खत्म हो गयी है तो गलत होगा I सभी जानते हैं कि कोरोना वायरस की चपेट में आने के बाद शरीर के कई अंगों को नुकसान होता है और सबसे ज्यादा प्रभाव फेफड़ों पड़ता हैI फेफड़े हमारे शरीर का बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है यह सभी शारीरिक कार्यों के लिए ऑक्सीजन प्रदान करता है I इसको तंदुरुस्त और मजबूत बनाये रखने के लिए निम्न जानकारियों की सहायता से घर बैठे फायदा उठा सकते है और कोरोना या अन्य फेफड़ो की बीमारियों से बचाव कर सकते है I
    हल्का व्यायाम
    व्यायाम से हमारे शरीर को होने वाले फायदों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है, फेफड़ों की क्षमता तेज चलने, दौड़ने, तैरने, गुब्बारा फुलाने या साइकिल चलाने आदि से बढ़ती है. इन व्यायामों को अपने जीवन में नियमित रूप से अपनाने से फेफड़ों की सेहत में सुधार कर सकते हैं I
    गहरी सांस लेने का व्यायाम
    दिनभर में किसी भी समय 10-15 मिनट के लिए शांत, एकांत में बैठ कर धीरे धीरे सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया का अभ्यास करना चाहिए, इससे हमारे फेफड़े तो मजबूत होते ही है बल्कि शरीर में रक्त प्रवाह बेहतर होता है, ऊर्जा का स्तर बढ़ता है, पाचन तंत्र में सुधर होता है, मन और शरीर को आराम मिलने के साथ साथ शरीर से विषैले पदार्थ भी बहार निकल जाते है I
    प्रकृति के साथ कुछ पल बिताये
    अपने फेफड़ो की मजबूती और बेहतरी के लिए बहुत जरुरी है की हम कुछ समय प्रकृति के साथ बिताये, इसके लिए हम खुली हवा का आनंद ले सकते है, सुबह की धुप का सेवन कर सकते है, हरियाली या बागीचे में कुछ पल बिता कर भरपूर मात्रा में शुद्ध ऑक्सीजन ले सकते है I
    पौष्टिक भोजन
    खाने में प्रतिदिन पौष्टिक भोजन खाना चाहिए, सही मात्रा में विटामिन, खनिज और प्रोटीन लेना चाहिए I जो की हमे हरी पत्तेदार सब्जिया, दाल, दूध, फलो के सेवन से मिलता है I पौष्टिक भोजन से श्वसन की मांसपेशियों और फेफड़ों की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत बनती हैI
    खूब पानी पिएं
    हम सब अच्छी तरह से जानते है की मानव शरीर 70 % पानी से बना है, यदि हम अपने शरीर को स्वस्थ रखना चाहते है तो इसे भरपूर पानी का सेवन करना चाहिए, सामान्यतः एक स्वस्थ शरीर को ३-४ लीटर पानी की आवश्यकता होती है, इसलिए दिन भर में खूब पानी पिए और अपने गले को तर रखे I हो सके तो भोजन करने के आधे घंटे बाद गुनगुने पानी का सेवन करे I
    प्रदूषण से बचें
    फेफड़ों की क्षमता पर प्रदूषण नकारात्मक प्रभाव डालता है, इसलिए प्रदूषण से बचना चाहिए और प्रदुषण से बचाव के लिए घर से बाहर जाते समय मास्क जरूर लगाना है I
    नियंत्रित वजन
    फेफड़ों की क्षमता अधिक वजन होने से भी कम होती है, क्योंकि पेट का मोटापा फेफड़ों को सही तरीके से काम नहीं करने देता है I इसके लिए प्रतिदिन व्यायाम, संतुलित आहार और सुसंचालित दिनचर्या काफी मददगार हैI
    धूम्रपान और शराब छोड़ दें
    अगर फेफड़ों की क्षमता मजबूत रखनी है, तो सबसे पहले धूम्रपान और शराब से छुटकारा पाना होगा, इसके अलावा तंबाकू समेत अन्य उत्पादों से बचना होगा I

    July 5, 2021
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    अदरक एक लाभकारी औषधि

    अदरक मसाले के रूप में दुनिया के सबसे उपयोगी पदार्थो में से एक है। 100 से ज्यादा बीमारियों में इस मसाले के औषधीय गुणों से लाभ पाया गया हैं। ज्यादातर पारंपरिक हर्बल औषधियों में इसे शामिल किया जाता है।
    अदरक में शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो उम्र के साथ आने वाली तमाम छोटी बड़ी बीमारिया जैसे सर्दी-खांसी, पाचन और सामान्य दर्द से लेकर कैंसर, ह्रदय रोग और मधुमेह जैसी बीमारियों में लाभकारी है।
    गठिया (ऑस्टियोआर्थराइटिस) में लाभकारी - जोड़ों में दर्द और जकड़न की समस्या से छुटकारा पाने के लिए अदरक का अर्क काफी फायदेमंद है। कहा जाता है कि अदरक, मैस्टिक, दालचीनी और तिल के तेल को मिलाकर घुटनो पर लगाने से गठिया के दर्द में राहत मिलती है।
    कोलेस्ट्रॉल लेवल (रक्तवसा के स्तर) को कम करता है - कोलेस्ट्रॉल की वजह से हृदय रोग की संभावना बढ़ती है। उच्च रक्तवसा या उच्च कोलेस्ट्रॉल वाले व्यक्तियों को रोजाना 3 ग्राम अदरक के चूर्ण का सेवन करना चाहिए, इससे कोलेस्ट्रॉल लेवल को नियंत्रित करने में राहत मिलती है।
    माइग्रेन (अधकपारी) - माइग्रेन के दर्द के शुरू होते ही यदि अदरक की चाय का सेवन कर ले तो उसके असहनीय दर्द से काफी राहत मिलती है। अदरक से माइग्रेन से जुड़ी उबकाई और चक्कर आने की समस्याएं भी नहीं होती हैं |
    कई प्रकार के कैंसर रोगो के इलाज़ में सहायक है अदरक - अदरक कई प्रकार के कैंसर या कर्क रोगो जैसे स्तन कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर, गुदा कैंसर, लिवर कैंसर, फेफड़ों के कैंसर, मेलानोमा, पैंक्रियाज के कैंसर और कोलोन कैंसर के इलाज में बहुत लाभकारी पाया गया है। एक शोध से पाया गया है की अदरक में पाया जाने वाला कैंसर रोधी तत्व क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को पुन: संरक्षित करने में सक्षम रहा, वह भी कीमो से 10 हजार गुना बेहतर और मजबूत तरीके से।

    अदरक के अन्य फायदे - यदि अदरक का उपयोग हम नियमित रूप से अपने भोजन में करे तो कई प्रकार की बीमारियों से बचाव कर सकते है। मासिक धर्म के दौरान रोजाना एक ग्राम अदरक के पाउडर का सेवन काफी लाभकारी साबित होता है | जलन के उपचार के लिए त्वचा पर ताजे अदरक का रस फायदेमंद होता है | शरीर में सूजन कम करने के लिए रोजाना अदरक के तेल से मालिश करना लाभकारी रहता हैं। अदरक मधुमेह से होने वाली बीमारी के दुष्प्रभाव जैसे मोतियाबिंद का खतरा भी कम करती है। यह मधुमेह पीड़ित के लिवर, किडनी इत्यादि को सुरक्षित करती है |

    June 29, 2021
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    दालचीनी की औषधिय चाय

    दालचीनी मसाला ही नहीं बल्कि एक औषधिय जड़ी बूटी भी है। दालचीनी हमारे स्वस्थ और सेहत के लिए बहुत लाभकारी है। दालचीनी से घरेलु रूप से सर्दी खासी के इलाज के बारे में जानकारी प्राप्त करते है।सर्दी और खांसी कहने के लिए आम बीमारी है। लेकिन सर्दी खांसी जीवन में कई बीमारियों का कारण बन सकती है। दालचीनी में एंटी-माइक्रोबायल, एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लामेटरी गुण होते हैं, जिनके कारण दालचीनी सर्दी और खांसी की बीमारी से निजात दिला सकता है।
    इसके लिए दालचीनी का प्रयोग निम्न तरीके से किया जाना लाभप्रद होता है।
    एक गिलास पानी में २ लौंग करीब १० मिनट का उबाले, फिर उसमे एक छोटी चमच्च पीसी हुई दालचीनी मिलाये। अब इस पेय को आंच बंद करके ५ मिनट क लिए ढक कर रख दे और फिर छान कर इसका सेवन करे। रोज़ाना १-२ कप इस तरह बानी हुई दालचीनी की चाय पीने से आपको सर्दी और खांसी के लक्षणों से आराम मिल सकता है।

    June 26, 2021
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    शरीर के किसी भी हिस्से में गाँठ और रसौली का आयुर्वेदिक इलाज

    हमारे शरीर के किसी भी भाग में गांठे बन जाती हैं। जिन्हें सामान्य भाषा में गठान या रसौली कहा जाता हैं। किसी भी गांठ की शुरुआत एक बेहद ही छोटे से दाने से होती हैं। लेकिन जैसे ही ये बड़ी होती जाती हैं।इन गाठों की वजह से ही गंभीर बीमारियां भी हो जाती हैं। ये गांठे टी.बी से लेकर कैंसर की बीमारी की शुरुआत के चिन्ह होती हैं। 

    विभिन्न औषधियों से उपचार-
    अरंडी -अरंडी के बीज और हरड़े समान मात्रा में लेकर पीस लें। इसे नयी गाँठ पर बाँधने से वह बैठ जायेगी और अगर लम्बे समय की पुरानी गाँठ होगी तो पक जायेगी।
    निर्गुण्ड-किसी भी प्रकार की गाँठ से मुक्त होने के लिए 20 से 25 मिली काढ़ा लें और उसमें 1 से 5 मिली लीटर तक अरंडी का तेल मिला लें। इन दोनों को अच्छी तरह से मिलाने के बाद इस मिश्रण का सेवन करें। तो आपकी गांठ ठीक हो जायेगी।
    कचनार की छाल और गोरखमुंडी-किसी भी तरह की गाँठ को ठीक करने के लिए 25 से 30 ग्राम तक कचनार की ताज़ी और सुखी छाल लें और इसे मोटा - मोटा कूट लें। अब एक गिलास पानी लें और इस पानी में कचनार की कुटी हुई छाल डालकर 2 मिनट तक उबाल लें।जब यह अच्छी तरह से उबल जाएँ. तो इसमें एक चम्मच पीसी हुई गोरखमुंडी डाल दें। अब इस पानी को एक मिनट तक उबालें !इसके बाद आप इस पानी को छानने के बाद इसका दिन में दो बार सेवन कर सकते हैं! इस पानी का सेवन करने के बाद आपको गलें, जांघ, हाथ, प्रोटेस्ट, काँख, गर्भाशय, टॉन्सिल, स्तन तथा थायराइड के कारण निकली हुई गाँठ से लगातार 20 - 25 दिनों तक सेवन करने से छुटकारा मिल जाएगा।
    गेहूं का आटा-गेहूं का आटा लें और उसमें पानी डाल लें। अब इस आटे में पापड़खार मिला लें और इसका सेवन करें. आपको लाभ होगा।
    आकडे का दूध-गाँठ को ठीक करने के लिए आप आकडे के दूध में मिटटी मिला लें. अब इस दूध का लेप जिस स्थान पर गाँठ हुई हैं। वहाँ पर लगायें आपको आराम मिलेगा।

    April 15, 2021
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    करी पत्ता (कड़ी पत्ता) के फायदे

    पौष्टिक मूल्यों से भरपूर कड़ी पत्तों में औषधीय, निरोधक और सौंदर्य गुण भी हैं। यह रोगाणु को नष्ट करता है, बुखार और गर्मी से राहत प्रदान करता है, भूख में सुधार लाता है, मल को नरम करता है और पेट फूलने से राहत देता है। कच्चे और मुलायम कड़ी पत्ते पके हुए पत्तों की अपेछा अधिक मूल्यवान हैं। यह आंख और बालों के लिए लाभदायक हैं ! इसके जड़ और तना का भी आयुर्वेदिक प्रयोग और उपचार में विशेष महत्व है।

    • पाचन विकार के लिए !
    • स्वस्थ बाल !
    • अन्य स्वास्थ्य लाभ !

    पाचन विकार के लिए -

    • कब्ज:सूखी कड़ी पत्तियों का चूर्ण बना लें। एक चम्मच चूर्ण में थोड़ा शहद मिलाकर दिन में दो बार सेवन करें।
    • अपच: सूखे कड़ी पत्ते, मेथी और काली मिर्च का चूर्ण बना लें, इसमें थोड़ा घी मिलाकर प्रतिदिन सेवन करें।
    • दस्त: कड़ी पत्तों का रस बना कर दिन में दो बार दो बार चम्मच रस का सेवन करें।
    • जी मचलना और उल्टी: एक मुट्ठी कड़ी पत्ते को चार कप पानी डालकर उबालें और इसे एक कप बना लें। इसे दिन में चार से छः बार पियें।
    • अम्लता-प्रेरित उल्टी: तने और टहनियों के चूर्ण को ठंडे पानी के साथ मिला कर उपयोग करें!

    स्वस्थ बाल के लिए-

    • रूसी: नींबू के छिल्कों, कड़ी पत्ते, मेथी और रीठा के चूर्ण का मिश्रण बनायें। बालों को धोने के लिए साबुन या शैम्पू के स्थान पर इस मिश्रण का उपयोग करें।
    • स्वस्थ बाल: नारियल के तेल में कड़ी पत्तों को गहरे भूरे होने तक उबाल लें। पत्तियों को इससे बाहर निकाल लें और प्रतिदिन सर में इस तेल का प्रयोग करें।
    • बालों का पकना: कच्चे पत्तों का चबाकर सेवन करने से बालों का झड़ना कम होता है। कड़ी पत्ते डालकर उबाला हुआ तेल बालों के असमय पकने को रोकता है।
    April 15, 2021
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    गिलोय वायरल फीवर से राहत दिलाने में मददगार

    एक अंगुल मोटी या 4-6 लम्बी गिलोय को लेकर 400 मि.ली. पानी में उबालें। 100 मि.ली. शेष रहने तक इसे उबालें और पिएँ। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है तथा बार-बार होने वाली सर्दी-जुकाम व बुखार नहीं होते।

    वायरल फीवर से बचाव के उपाय :

    अब तक आपने वायरल फीवर होने के लक्षण और कारणों के बारे में जाना। लेकिन कुछ सावधानियां बरतने पर यानि जीवनशैली में और खान-पान में थोड़ा बदलाव लाने पर इस रोग को होने से रोक सकते हैं।

    • खाने में उबली हुई सब्जियां, हरी सब्जियां खाना चाहिए।
    • दूषित पानी एवं भोजन से बचें।
    • पानी को पहले उबाल कर थोड़ा गुनगुना ही पिएँ।
    • वायरल बुखार से ग्रस्त रोगी के सम्पर्क में आने से बचें।
    • मौसम में बदलाव के समय उचित आहार-विहार का पालन करें।
    • रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनायें रखने के लिए आयुर्वेदिक उपचार एवं अच्छी जीवन शैली को अपनायें।
    March 26, 2021
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    दालचीनी के फायदे

    आपने दालचीनी का नाम जरूर सुना होगा। आमतौर पर लोग दालचीनी का प्रयोग केवल मसालों के रूप में ही करते हैं, क्योंकि लोगों को दालचीनी के फायदे के बारे में पूरी जानकारी नहीं है।आयुर्वेद में दालचीनी को एक बहुत ही फायदेमंद औषधि के रूप में बताया गया है। आयुर्वेद के अनुसार, दालचीनी के इस्तेमाल से कई रोगों का इलाज किया जा सकता है।

    पतंजलि के अनुसार, दालचीनी के सेवन से पाचनतंत्र संबंधी विकार, दांत, व सिर दर्द, चर्म रोग, मासिक धर्म की परेशानियां ठीक की जा सकती हैं। इसके साथ ही दस्त,और टीबी में भी इसके प्रयोग से लाभ मिलता है।

    दालचीनी से अन्य फायदे:-

    1. हिचकी की परेशानी दूर करना !
    2. भूख को बढ़ाना !
    3. भूख को बढ़ाना !
    4. दाँत के दर्द के लिए !
    5. उल्टी को रोकने के लिए !

    March 19, 2021
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    पाचनतंत्र और गैस की समस्या

    आयुर्वेद में यह बताया गया है कि अजमोदादि चूर्ण को सबसे अच्छा पाचक माना गया है। अजमोदादि चूर्ण भूख को बढ़ाता है, पाचनतंत्र को ठीक करता है और पेट की गैस की समस्या से आराम दिलाता है। अजमोदादि चूर्ण एक आयुर्वेदिक औषधि है। दर्दों से मुक्ति के लिए यह पतंजलि द्वारा दी जाने वाली यह एक प्रमुख औषधि है। इसे विभिन्न पादपों के जड़, तने, फूल, पत्तों आदि के मिश्रण से तैयार किया जाता है। अजमोदादि चूर्ण सभी प्रकार के दर्द ख़त्म करता है तथा वायु को शान्त करता है। यह कफ दोष को भी नष्ट करता है।

    अजमोदादि चूर्ण के फायदे:-

    1. जोड़ों का दर्द एक ऐसी बीमारी है जिससे हजारों लोग पीड़ित हैं। इस बीमारी के कारण लोगों को जोड़ों में बहुत तकलीफ झेलनी पड़ती है। जोड़ों के दर्द से राहत पाने के लिए आप अजमोदादि चूर्ण का उपयोग कर सकते हैं। यह आपको जोड़ों के दर्द से राहत पहुंचाता है।
    2. शरीर के किसी अंग में सूजन हो गई हो तो अजमोदादि चूर्ण से लाभ मिलता है। इसके लिए आप किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से यह सलाह जरूर लें कि सूजन के लिए अजमोदादि चूर्ण का कैसे इस्तेमाल करना है।
    3. यह पाचनतंत्र में सुधार लाता है। यह पेट की गैस की समस्या को ठीक करता है। इस परेशानी के लिए अजमोदादि चूर्ण का सेवन करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर परामर्श लें।
    4. अजमोदादि चूर्ण दर्द के लिए रामबाण औषधि है। आप सायटिका में भी अजमोदादि चूर्ण का प्रयोग कर सकते हैं। इससे फायदा होता है।
    March 19, 2021
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    Rashtriya Kisan Manch
    Tweets by orgrkmkisan

    ग्राम

    सितम्बर माह में उगाई जाने वाली सब्जिया

    1) शिमला मिर्च
    सितम्बर माह शुरू होने से पहले ही शिमला मिर्च की नर्सरी तैयार कर ली जाती है और समय से इसको लगाना शुरू कर दें चाहिए। इसके बीज भी उत्तम कोटि के होने चाहिए और रोग रोधी हो। बीज लगाते समय ध्यान रखें कि बीज लगाने के बाद जब दोबारा उसका रोपण करे तो उस समय उसकी जड़ को शोधन ज़रूर करें। शिमला मिर्च का बीज जब भी लगाए तो कोशिश करे की २-३ दिन पहले भूमि का भी शोधन कर ले और सही तरीके से जुताई कर ले । इससे आप का उत्पादन काफी बेहतर होगा और आप को अच्छा भाव भी मिलेगा।

    2) पत्तागोभी
    पत्तागोभी भी एक ऐसी सब्जी है जिसकी सितम्बर माह में नर्सरी तैयार की जा सकती है । पत्ता गोभी में वैसे तो ज्यादा रोग लगने की संभावना नहीं होती परन्तु पत्ता गोभी में गलने की व कीट की समस्या हो सकती है और इन समस्याओं को दूर करने के लिए आप ऑर्गेनिक तरीकों का प्रयोग कर सकते है।

    3) धनिया पत्ता
    धनिया को भी सितंबर महीने में लगाया जाता है बारिश के कारण धनिया में अंकुरण की समस्या हो सकती है। धनिया उगाने के लिए खेत ऊंचाई पर होना चाहिए ताकि पानी ना लग सके तथा धनिया को क्यारियों में लगाया जाता है, ताकि निकासी व्यवस्था भी की जा सकें। धनिया में सीमित मात्रा में केमिकल का प्रयोग करें। अगर अधिक केमिकल का प्रयोग किया जाएगा तो फसल खराब या फिर फसल को नुकसान हो सकता है।

    4) फूलगोभी
    सर्दियों में खायी जाने वाली सब्जियों में से सर्व पसंदीदा सब्जी फूल गोभी है, जिसे सितम्बर माह में उगाया जाता है। फूलगोभी को उगाने से पहले उन्नत और उत्तम किस्म के बीज का चयन कर लेना चाहिए, इसके दो फायदे है एक तो फसल की उपज अच्छी रहेगी, दूसरा फसल में ज्यादा रोग नहीं लगेंगे
    फूलगोभी की फसल में न केवल पौधे को बल्कि भूमि को भी शोधित करना आवश्यक है, इसके लिए जैविक (आर्गेनिक) कीटनाशक बनाए और उसका छिड़काव करें। जिससे आप अच्छा लाभ ले सकें।

    5) बैंगन
    बैंगन की खेती करना बेहद आसान हैं। इसके लिए सही बीजों का चयन करना काफी आवश्यक होता है। कई लोगों ने नर्सरी भी लगा ली है तथा इसकी जड़ का सही तरीके से शोधन करना काफी आवश्यक है। ऑर्गेनिक कीटनाशक के प्रयोग से काफी हद तक फसल को रोग से बचाया जा सकता है।

    6) बैंगन
    पालक साग आदि सब्जियों की खेती भी सितंबर महीने में की जाती हैं। पालक की बुवाई करते समय ध्यान रखें उसमें जल निकासी की व्यवस्था हो। पालक से भी काफी आमदनी हो सकती है बशर्ते बारिश से पालक को बचाया जा सके।

    7) पपीता
    सितंबर में उगाई जाने वाली सब्जियां में एक पपीता भी हैं।पपीता में वायरस की समस्या हो सकती है लेकिन इसको नीम का तेल प्रयोग से नियंत्रित किया जा सकता है। पपीता लगाते समय एक-एक पपीते के बीच की दूरी का ध्यान जरूर रखें और यदि पपीता बेड पर लगाते हो काफी अच्छी फसल देखने को मिल सकती है।
    8) हरी मिर्च
    हरी मिर्च की फसल के लिए दो बाते आवश्यक है, पहली ये की हरी मिर्च का बीज रोग रोधी हो और बीज की बुआई करें तो पानी निकासी का इंतजाम पहले ही ज़रूर कर लें। हरी मिर्च की नर्सरी डालने के बाद जब रिप्लांट करें तो पहले भूमि शोधन अवश्य करें और खाद का बहुत ही सीमित मात्रा में प्रयोग करें नहीं तो आपको नुकसान भी सहना पड़ सकता हैं।
    9) मूली
    मूली को बोने के लिए अगर ऊंचाई वाला खेत है तो काफी बढ़िया है और यदि खेत ऊंचाई पर नहीं है तो इसे बेड पर भी लगा सकते हो। खेत की अच्छे ढंग से जुताई होनी चाहिए। जितनी अच्छी भुरभुरी मिट्टी होगी उतनी ही अच्छी आपको पैदावार मिलेगी।

    10) ब्रोकली
    ब्रोकली सब्जी ह्रदय के लिए बहुत ही फायदेमंद सब्जी है, इसकी गुणवत्ता के कारण इसका भाव १०० रूपए से लेकर २०० रूपए किलो तक रहता है। ब्रोकोली उगाने के लिए उसके बीज से नर्सरी डाल लीजिए और उसके बाद उस की रोपाई शुरू करें।

    11) मटर
    मैदानी भागों में तो मटर को अक्टूबर महीने में बोया जाता है लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में मटर की बुआई सितंबर महीने में शुरू हो जाती है। बीज लाने के बाद इसको शोधन करना काफी आवश्यक है इसमें जर्मीनेशन का ध्यान रखेंगे तो फसल भी अच्छी होगी और आपको काफी ज्यादा लाभ भी देखने को मिलेगा।
    12) गाजर/चुकंदर/शलगम
    पहाड़ी इलाकों में गाजर चुकंदर व शलगम की खेती सितंबर महीने में कर सकते है, इसके लिए खेत को अच्छे ढंग से तैयार कीजिये ताकि फसल को किसी भी तरह का नुकसान ना हो। चुकंदर शलगम गाजर इन तीनों में ही लागत काफी कम लगती है और फायदा अधिक होता है।

    August 26, 2021
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    अलसी की उन्नतशील फसल

    अलसी एक तिलहनी और रेशे वाली फसल है जिसका उत्पादन मुख्य रूप से २ कारणों से किया जाता है, पहला तेल के लिए और दूसरा रेशे के लिए I अलसी के तेल का उपयोग खाने के, औषधीय और औधोगिक उपयोग के लिए किया जाता है I इसकी खली पोषक तत्वों से पूर्ण होती है जिसे पशुओ को खिलाने और खेतो में उर्वरक के रूप में भी किया जाता है I भारत में अलसी की खेती मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र में की जाती है I
    खेत की तैयारी - खरीफ की फसल काटने के बाद मिटटी को अलट पलट करने के लिए एक जुताई करे, तत्पश्चात कल्टीवेटर या देशी हल से 2 बार जुताई करके खेत को अच्छी तरह तैयार करे I अलसी की खेती के लिए मटियार व् चिकनी दोमट भूमि में की जा सकती है I
    बुवाई का समय एवं विधि - अक्टूबर माह के किसी भी समय अलसी को बोया जा सकता है I इसका बीज २५-३० कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर कि दर से बोया जाता है I इसकी बुवाई में बीजो के बीच कम से कम २५ से.मि का अंतराल होना चाहिए I
    उर्वरक - असिंचित क्षेत्र के लिए अच्छी पैदावार के लिए नाइट्रोजन 50 कि. ग्रा., फॉस्फोरस 40 कि. ग्रा.तथा पोटाश 40 कि. ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर इस्तेमाल कीजिये और सिंचित क्षेत्र के लिए नाइट्रोजन 100 कि. ग्रा., फॉस्फोरस 60 कि. ग्रा.तथा पोटाश 40 कि. ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर इस्तेमाल करना चाहिए I
    सिंचाई - यह फसल असिंचित रूप से बोई जाती है, परन्तु जहा सिंचाई का साधन उपलब्ध है वह दो सिंचाई ही काफी है क्योंकि यह फसल कम पानी से भी अच्छी पैदावार देती है I पहली सिंचाई फूल आने पर या बुवाई से 30-40 दिन बाद तथा दूसरी दाना बनते समय करनी चाहिए I
    फसल का बचाव - असली की फसल में कई प्रकार के रोग और कीट लग जाते है, जैसे अल्टेरनेरिया झुलसा, रतुआ, उकठा रोग, बुकनी गालमीज, ग्रेसी कटवर्म प्रमुख है I गर्मी की जुताई से गालमीज की सूड़िया मर जाती है, बीज को 2.5 ग्रा. थाइरम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से शोधित करके प्रयोग में ले, अलसी के साथ चना, सरसो, कुसुम को साथ बोया जाए तो गालमीज का प्रकोप कम हो जाता है I कालिया बनने लगे तब समय समय पर फसल का परिक्षण करते रहना चाहिए I खडी फसल में मेंकोजेब 2.5 कि.ग्रा. / हेक्टेयर कि दर से 40-45 दिन पर छिड़काव करके इन रोगो से बचा जा सकता है I
    अलसी की कटाई - फसल जब 130-140 दिन कि परिपक्वा हो जाती है, पौधे और फलिया पीली होने लगती है और पत्तिया सूखने लगती है तब समझना चाहिए कि फसल की कटाई का समय आ गया है I यदि सही तकनीक से फसल कि कटाई की जाये तो लगभग 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीज प्राप्त हो जाता है I

    July 17, 2021
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    मिट्टी की जांच या मृदा परीक्षण

    खेत की मिट्टी का सीधा प्रभाव फसल की पैदावार से होता है, गुणवत्तापूर्ण उपज और अधिक पैदावार के लिए मिट्टी में कौन कौन से तत्व होने चाहिए इसकी जानकारी होना जरूरी है। मिट्टी में लम्बे अरसे से रासायनिक पदार्थों और कीटनाशकों के प्रयोग होने के कारण खेत की मिट्टी की उर्वरक क्षमता कम हो जाती है। किसी भी फसल से उन्नत उपज लेने के लिए ये जानना जरूरी हैं कि उसे जिस मिट्टी के लगाया जा रहा है. उसमें उसके विकास के लिए पोषक तत्व मौजूद हैं या नही। मृदा परीक्षण यानि मिट्टी की जांच करा कर किसान अपने खेत की मिट्टी की सही सही जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। मिट्टी की जांच में भूमि के अम्लीय और क्षारीय गुणों की जांच की जाती है, ताकि पीएच मान के आधार पर उचित फसल को उगाया जा सके. और भूमि सुधार किया जा सके। मिट्टी की जाँच से किसान भाई अपने खेत की मिट्टी की गुणवत्ता जानकार उसमे उसी के उपयुक्त फसल लगा कर कम खर्च में अधिक उपज प्राप्त कर सकते है।
    मिट्टी की जांच क्यों आवश्यक है
    मिट्टी की जांच कराने के बाद मिट्टी में मौजूद कमियों को सुधारकर उसे फिर से उपजाऊ बनाने के लिए। मिट्टी परिक्षण करवाकर उर्वरकों और रसायनों पर होने वाले अनावश्यक खर्च से बच सकता है। जैविक खेती करने वाले किसान भाई मिट्टी की जांच कराकर मिट्टी के जैविक गुणों का पता लगा सकते हैं. और उसी के आधार पर जैविक पोषक तत्वों का इस्तेमाल पूरी तरह से जैविक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। मिट्टी में कई पोषक तत्व होते हैं जैसे कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश , कैल्सिशयम, मैग्नीशियम और सूक्ष्म तत्वों जैसे जस्ता , मैग्नीज, तांबा, लौह, बोरोन, मोलिबडेनम और क्लोरीन इत्यादि अगर इन सबकी मौजूदगी मिट्टी में संतुलित रूप में रहती है तो इससे अच्छी पैदावार प्राप्त होती है। मिट्टी में इन तत्वों की कमी के कारण मिट्टी की उर्वरक शक्ति कम होने लगती है।
    मिट्टी जांच के फायदे
    सघन खेती के कारण खेत की मिट्टी में उत्पन्न विकारों की जानकारी समय समय पर मिलती रहती है। मिट्टी में विभिन्न पोषक तत्वों की उपलब्धता की दशा का ज्ञान हो जाता है। बोयी जाने वाली फसल के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता का अनुमान लगाया जा सकता है। संतुलित उर्वरक प्रबन्ध द्वारा अधिक लाभ कमा सकते है।
    मिट्टी जांच कब करानी चाहिए
    मिट्टी की जांच के समय ध्यान देना चाहिए की भूमि में नमी की मात्रा कम से कम हो। फसल की बुवाई या रोपाई से एक महीना पहले खेत की मिट्टी की जांच कराएं। अगर आप सघन पद्धति से खेती करते हैं तो हर वर्ष मिट्टी की जांच करवानी चाहिए। यदि खेत में वर्ष में एक फसल की खेती की जाती है तो हर 2 या 3 साल में मिट्टी की जांच करा लें।
    मिट्टी की जांच कैसे करे
    एक एकड़ क्षेत्र में लगभग 8-10 स्थानों से ‘V’ आकार के 6 इंच गहरे गहरे गढ्ढे बनायें। एक खेत के सभी स्थानों से प्राप्त मिट्टी को एक साथ मिलाकर ½ किलोग्राम का एक नमूना बनायें। नमूने की मिट्टी से कंकड़, घास इत्यादि अलग करें। सूखे हुए नमूने को कपड़े की थैली में भरकर कृषक का नाम, पता, खसरा संख्या, मोबाइल नम्बर, आधार संख्या, उगाई जाने वाली फसलों आदि का ब्यौरा दें। नमूना प्रयोगशाला को प्रेषित करें अथवा’ ‘परख’ मृदा परीक्षण किट द्वारा स्वयं परीक्षण करें।

    July 16, 2021
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    ग्राम तकनीक

    तवैदार हैरो

    इस यंत्र के उपयोग से बीज के अच्छे अंकुरण के लिए भूमि में सुधार, कीटों एवं इनके रहने के स्थानों को आसानी से नष्ट किया जा सकता है। यह घास-फूस तथा खरपतवपार वाली भूमि के लिए अत्यंत उपयोगी यंत्र है। गेहूं की बुवाई के लिए खेत तैयार करने में इस यंत्र का उपयोग अत्यंत ही लाभदायक है। इसकी कार्यक्षमता एक दिन में 4 से 5 हैक्टेयर है।

    April 15, 2021
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    गेहूं के कटाई के लिए उपकरण

    किसान और सरकार चाहते हैं कि देशभर में फसलों की पैदावार और उनकी गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी हो, क्योंकि इससे किसान और सरकार, दोनों को लाभ होगा !मगर यह तभी संभव हो पाएगा, जब फसल उत्पादन का काम कम लागत में संपन्न हो!इसका एक मात्र विकल्प यह है कि आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग किया जाए, ताकि समय, श्रम और लागत की बचत हो पाए ! इससे किसानों को अच्छा मुनाफा भी मिल सकेगा! ऐसे में आज हम ऐसे आधुनिक 2 कृषि यंत्रों के बारे में बताएंगे, जो कि गेहूं की कटाई को आसान बना देते हैं!

    ट्रैक्टर चलित रीपर बाइंडर:

    यह मशीन किसानों के लिए बहुत उपयोगी है! इसमें भी कटर बार से पौधे कटे जाते हैं फिर पुलों में बंध  जाते हैं! इसके बाद संचरण प्रणाली द्वारा एक और गिरा दिया जाता है !खास बात यह है कि इस मशीन की मदद से कटाई और बंधाई का कार्य बहुत सफाई से होता है!

    स्वचालित वर्टिकल कनवेयर रीपर:

    छोटे और मध्यम किसानों के लिए गेहूं की कटाई करने के लिए यह बहुत उपयोगी मशीन है! इस मशीन में आगे की ओर एक कट्टर बार लगी होती है, तो वहीं पीछे संचरण प्रणाली लगी होती हैं!इसके साथ ही रीपर में लगभग 5 हॉर्स पावर का एक डीजल इंजन लगा होता है, जो कि पहियों और कटर बार के लिए शक्ति संचरण का कार्य करता है

    कैसे करते हैं गेहूं की कटाई:

    किसान को फसल कटाई के लिए कटर बार को आगे रखकर हैंडिल से पकडक़र पीछे चलना होता है. कटर बार गेहूं के पौधों को काटती हैं. इसके साथ ही संचरण प्रणाली द्वारा पौधे एक लाइन में बिछा दिए जाते हैं, जिनको श्रमिकों द्वारा इकट्ठा कर लिया जाता है.

    March 26, 2021
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    मोटर संचालित क्राप कटर मशीन

    कृषि में जहाँ किसान पहले वर्ष में एक या दो फसल ले पाते थे वही अब कृषि यंत्रों की मदद से कम समय में कृषि कार्यों को पूर्ण करके तीन फसलें लेने लगे हैं | कृषि यंत्र से जहाँ कम समय में कार्य पूर्ण हो जाते हैं वही इससे फसल उत्पदान की लागत भी कम होती है खासकर छोटे कृषि यंत्रों से | भारत में छोटे एवं मध्यवर्गीय किसानों के लिए छोटे कृषि यंत्रों को विकसित किया जा रहा है | सरकार द्वारा इनके उपयोग को बढ़ावा भी दिया जा रहा है जिसके लिए सरकार द्वारा इन कृषि यंत्रों पर सब्सिडी भी दी जाती है | छोटे किसानों के बीच इन छोटे कृषि उपकरणों को लोकप्रिय बनाने की आवश्यकता है, जिससे कृषि श्रमिकों और किराए की मशीनों पर उनकी निर्भरता कम की जा सके | किसान समाधान गेहूं कटाई के समय को देखते हुए कटाई के लिए उपयुक्त मोटर संचालित क्रॉप कटर की जानकारी लेकर आया है |

    मोटर संचालित क्राप कटर:

    क्राप कटर मशीन पके हुए गेहूं को जमीन से लगभग 15 से 20 से.मी. की ऊँचाई से काट सकती है | क्रॉप कटर से काटने की चोडाई 255 सेमी तक होती है वहीँ इसमें 48 से 50 सीसी की शक्ति से चल सकती है | इसका बजन 8 किलो से लेकर 10 किलोग्राम तक होता है | यह पेट्रोल से चलने वाला यंत्र है जिसमें एक बार में 1.2 लीटर पेट्रोल तक भरा जा सकता है | मशीन में एक गोलाकार आरा ब्लेड, विंडरोइंग सिस्टम, सेफ्टी कवर, कवर के साथ ड्राइव शाफ़्ट, हैंडल, ऑपरेटर के लिए हैगिंग बैंड पेट्रोल टैंक, स्टार्टर नांब , चोक लीवर और एयर क्लीनर होते हैं | ब्लेड, इंजन द्वारा संचालित एक लंबी ड्राइव शाफ़्ट के माध्यम से घूमता है | 25 से.मी. की ऊँचाई और 12 से.मी. के ब्लेड त्रिज्या के बराबर आधे बेलन के आकार की एक एलुमिनियम शीट को काटने वाले ब्लेड के उपरी भाग में फिट किया जाता है | फसलों को इकट्ठा करने में आसानी के लिए एक समान पंक्ति बनाने के लिए एक गार्ड लगाया जाता है |

    क्राप कटर मशीन में ब्लेड का उपयोग फसल के अनुसार करें :

    मोटर संचालित क्राप कटर मशीन में ब्लेड का उपयोग फसल के पौधे के अनुसार किया जा सकता है | ज्यादा दांत वाले ब्लेड का उपयोग मोटे तथा कड़क पौधे की कटाई के लिए किया जाता है तथा कम दांत वाले ब्लेड का उपयोग मुलायम तथा पतले पौधे के लिए किया जाता है |

    दांतों की संख्या तथा उसका उपयोग :

    120 दांत वाले ब्लेड का उपयोग – 120 दांतों वाले ब्लेड का उपयोग गेहूं, मक्का आदि फसलों की कटाई के लिए किया जाता है | 60 और 80 दंतों वाले ब्लेड का उपयोग – 60 तथा 80 दानों वाले ब्लेड का उपयोग चारा काटने के लिए किया जाता है | 40 दांतों वाले ब्लेड का उपयोग – 40 दांतों वाले ब्लेड का उपयोग 2 इंच मोती वाले पौधे को काटने के लिए किया जाता है |

    March 26, 2021
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    ग्राम शिक्षा

    इंटीग्रेटेड फार्मिग सिस्टम (Integrated Farming System)

    आजकल पारम्परिक खेती को लेकर एक धारणा बन गयी है कि इससे मुनाफा मिलता कठिन होता है और यही कारण है कि कई किसान किसानी छोड़ कर किसी और व्यवसाय कि तरफ रुख कर रहे है I
    परन्तु वही कुछ किसान ऐसे भी है जो नयी नयी खेती की तकनीक को अपना कर दिन दुगनी रात चौगुनी कमाई कर रहे है, ऐसी ही एक तकनीक का नाम है इंटीग्रेटेड फार्मिंग या एकीकृत कृषि प्रणाली I
    आइये जानते है क्या है इंटीग्रेटेड फार्मिग सिस्टम?
    इंटीग्रेटेड फार्मिग सिस्टम यानी एकीकृत कृषि प्रणाली का महत्त्व छोटे और सीमांत किसानों के लिए ज्यादा है हालाँकि बड़े किसान भी इस प्रणाली की अपनाकर खेती से मुनाफा कमा सकते हैंI एकीकृत कृषि प्रणाली का मुख्य उदेश्य खेती की जमीन के हर हिस्से का पूर्ण रूप से इस्तेमाल करना हैI इसके तहत आप एक ही साथ अलग-अलग फसल, फूल, सब्जी, मवेशी पालन, फल उत्पादन, मधुमक्खी पालन, मछली पालन इत्यादि कर सकते हैं I इससे आप अपने संसाधनों का पूरा इस्तेमाल कर पाएंगे और लागत में कमी आएगी फलस्वरूप उत्पादकता बढ़ेगी I एकीकृत कृषि प्रणाली न केवल पर्यावरण के लिए अनुकूल है बल्कि यह खेत की उर्वरक शक्ति को भी बढ़ाती हैI
    इंटीग्रेटेड फार्मिंग का एक बहुत ही बेहतरीन उदाहरण आपके लिए प्रस्तुत है I
    उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से महज 90 किलोमीटर दूर सीतापुर जिला राष्ट्रीय राज्यमार्ग के किनारे जिला कृषि उपनिदेशक अरविंद मोहन मिश्र ने अपने कार्यालय में खाली पड़ी जमीन पर आधुनिक विधि से एक एकड़ में मौडल तैयार किया है I
    इस एक एकड़ के मौडल में मछलीपालन, बत्तखपालन, मुरगीपालन के साथसाथ फलदार पौधों की नर्सरी तैयार करवाई गयी है I श्री अरविंद मोहन मिश्र बताते हैं कि उन्होंने एक बीघा जमीन में तालाब की खुदाई करवाई है, तालाब में ग्रास कौर्प मछली डाल रखी हैं, इतनी मछली से सालभर में करीब एक से डेढ़ लाख रुपए की कमाई हो जाती है I इस के बाद तालाब के ऊपर मचान बना कर उस में पोल्ट्री फार्म बनाया है, जिस में कड़कनाथ सहित अन्य देशी मुर्गा - मुर्गी पाल रखे हैं I जो दाना मुर्गियों को दिया जाता हैं, उस का जो शेष भाग बचता है, वह मचान से नीचे गिरता रहता है और उसे नीचे तालाब की मछलिया खा लेती है जिससे मछलियों के दाने की बचत हो जाती है I
    2 बीघा जमीन पर ढैंचा की बुआई कर रखी है जिससे हरी खाद बनेगी और उस के बाद इस की जुताई करा के इस में शुगर फ्री धान की रोपाई कर देंगे I मिश्र जी ने यह भी बताया कि २ बीघे में गन्ने की पैदावार की गयी है जिससे तकरीबन 200 से 250 क्विंटल गन्ने की पैदावार लेते हैं, साथ ही, गन्ने में बीचबीच में अगेती भिंडी फसल बो रखी है, जिस से 30 से 40 हजार रुपए का मुनाफा होता है I सहफसली से एक और फायदा है कि जो छिड़काव या खाद हम एक फसल में देते हैं, उस का लाभ सहफसली को भी मिल जाता है I
    जिला उपकृषि निदेशक अरविंद मोहन मिश्र ने कहा कि पायलट प्रोजैक्ट के तौर पर यह मॉडल सीतापुर जिले में 10 किसानों के लिए और बनवाया जाएगा I इस मॉडल की मंजूरी के लिए शासन से भी बातचीत चल रही है I
    आजकल कृषि में लागत वृद्धि होने का एक कारण यह भी है कि किसान अधिक उत्पादन के चक्कर में खेती में रासायनिक खादों का प्रयोग कर रहे हैं, वो भी बिना किसी मापदंड के I इस को कम करने के लिए किसान खुद देशी विधि जैसे वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल कर या गाय का गोबर और गौमूत्र से जीवामृत बना कर छिड़काव करें, इससे कृषि लागत में कमी लायी आज सकती है I
    किसान यदि ठान ले तो भारतीय खेती व् नवीनतम कृषि तकनीक के जरिये वो अपनी आमदनी भी बढ़ा सकता है और कृषि उत्पाद की गुणवत्ता भी कायम रख सकता है I

    August 26, 2021
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    मिट्टी की जांच या मृदा परीक्षण

    खेत की मिट्टी का सीधा प्रभाव फसल की पैदावार से होता है, गुणवत्तापूर्ण उपज और अधिक पैदावार के लिए मिट्टी में कौन कौन से तत्व होने चाहिए इसकी जानकारी होना जरूरी है। मिट्टी में लम्बे अरसे से रासायनिक पदार्थों और कीटनाशकों के प्रयोग होने के कारण खेत की मिट्टी की उर्वरक क्षमता कम हो जाती है। किसी भी फसल से उन्नत उपज लेने के लिए ये जानना जरूरी हैं कि उसे जिस मिट्टी के लगाया जा रहा है. उसमें उसके विकास के लिए पोषक तत्व मौजूद हैं या नही। मृदा परीक्षण यानि मिट्टी की जांच करा कर किसान अपने खेत की मिट्टी की सही सही जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। मिट्टी की जांच में भूमि के अम्लीय और क्षारीय गुणों की जांच की जाती है, ताकि पीएच मान के आधार पर उचित फसल को उगाया जा सके. और भूमि सुधार किया जा सके। मिट्टी की जाँच से किसान भाई अपने खेत की मिट्टी की गुणवत्ता जानकार उसमे उसी के उपयुक्त फसल लगा कर कम खर्च में अधिक उपज प्राप्त कर सकते है।
    मिट्टी की जांच क्यों आवश्यक है
    मिट्टी की जांच कराने के बाद मिट्टी में मौजूद कमियों को सुधारकर उसे फिर से उपजाऊ बनाने के लिए। मिट्टी परिक्षण करवाकर उर्वरकों और रसायनों पर होने वाले अनावश्यक खर्च से बच सकता है। जैविक खेती करने वाले किसान भाई मिट्टी की जांच कराकर मिट्टी के जैविक गुणों का पता लगा सकते हैं. और उसी के आधार पर जैविक पोषक तत्वों का इस्तेमाल पूरी तरह से जैविक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। मिट्टी में कई पोषक तत्व होते हैं जैसे कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश , कैल्सिशयम, मैग्नीशियम और सूक्ष्म तत्वों जैसे जस्ता , मैग्नीज, तांबा, लौह, बोरोन, मोलिबडेनम और क्लोरीन इत्यादि अगर इन सबकी मौजूदगी मिट्टी में संतुलित रूप में रहती है तो इससे अच्छी पैदावार प्राप्त होती है। मिट्टी में इन तत्वों की कमी के कारण मिट्टी की उर्वरक शक्ति कम होने लगती है।
    मिट्टी जांच के फायदे
    सघन खेती के कारण खेत की मिट्टी में उत्पन्न विकारों की जानकारी समय समय पर मिलती रहती है। मिट्टी में विभिन्न पोषक तत्वों की उपलब्धता की दशा का ज्ञान हो जाता है। बोयी जाने वाली फसल के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता का अनुमान लगाया जा सकता है। संतुलित उर्वरक प्रबन्ध द्वारा अधिक लाभ कमा सकते है।
    मिट्टी जांच कब करानी चाहिए
    मिट्टी की जांच के समय ध्यान देना चाहिए की भूमि में नमी की मात्रा कम से कम हो। फसल की बुवाई या रोपाई से एक महीना पहले खेत की मिट्टी की जांच कराएं। अगर आप सघन पद्धति से खेती करते हैं तो हर वर्ष मिट्टी की जांच करवानी चाहिए। यदि खेत में वर्ष में एक फसल की खेती की जाती है तो हर 2 या 3 साल में मिट्टी की जांच करा लें।
    मिट्टी की जांच कैसे करे
    एक एकड़ क्षेत्र में लगभग 8-10 स्थानों से ‘V’ आकार के 6 इंच गहरे गहरे गढ्ढे बनायें। एक खेत के सभी स्थानों से प्राप्त मिट्टी को एक साथ मिलाकर ½ किलोग्राम का एक नमूना बनायें। नमूने की मिट्टी से कंकड़, घास इत्यादि अलग करें। सूखे हुए नमूने को कपड़े की थैली में भरकर कृषक का नाम, पता, खसरा संख्या, मोबाइल नम्बर, आधार संख्या, उगाई जाने वाली फसलों आदि का ब्यौरा दें। नमूना प्रयोगशाला को प्रेषित करें अथवा’ ‘परख’ मृदा परीक्षण किट द्वारा स्वयं परीक्षण करें।

    July 16, 2021
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    बीज उपचार से जुडी मुख्य जानकारी

    बीज पौधे का वह भाग होता है जिसमें पौधों के प्रजनन की क्षमता होती है और जो मृदा के सम्पर्क में आने पर अपने जैसा ही एक नये पौधे को जन्म देता है। बीज फसल के दाने का पूर्ण या आधा भाग भी हो सकता है।
    यह बात बताने की जरुरत नहीं है की एक सफल, गुणवत्तापूर्वक, लहराती उपज के लिए उच्च कोटि का रोग रहित, स्वस्थ और उन्नत बीज की आवश्यकता होती है | बीज को निरोग और स्वस्थ बनाने के लिए बीज उपचार किया जाता है जिसमे बीज को अनुशंसित रसायन या जैव रसायन से उपचारित करना होता है | बीज उपचार से बीज में उपस्थित आन्तरिक या वाह्य रोगजनक जैसे फफूंद, जीवाणु, विषाणु एवं सूत्रकृमि और कीट नष्ट हो जाते है और बीजों का स्वस्थ अंकूरण तथा अंकुरित बीजों का स्वस्थ विकास होता है | साथ ही पोषक तत्व स्थिरीकरण हेतु जीवाणु कलचर से भी बीज उपचार किया जाता है| बीज उपचार की सभी पहलुओं की जानकारी नीचे उपलब्ध है|
    बीज उपचार का महत्त्व इसलिए भी है की यह प्रारंभ में ही बीज जनित रोगों और कीटों का प्रभाव न्यून या रोकने में मददगार है| यदि पौधों की वृद्धि के बाद इनको रोकने का प्रयास किया जाये तो इससे अधिक खर्च भी होगा और क्षति भी अधिक होगी| बीजों में अंदर और बाहर रोगों के रोगाणु सुशुप्ता अवस्था में, मिट्टी में और हवा में मौजूद रहते हैं| ये अनुकूल वातावरण के मिलने पर उत्पन्न होकर पौधों पर रोग के लक्षण के रूप में प्रकट होते हैं| फसल में रोग के कारक फफूंद रहने पर फफूंदनाशी से, जीवाणु रहने पर जीवाणुनाशी से, सूत्रकृमि रहने पर सौर उपचार या कीटनाशी से उपचार किया जाता है| मिट्टी में रहने वाले कीटों से सुरक्षा के लिए भी कीटनाशी से बीजोपचार किया जाता है| इसके अतिरिक्त पोषक तत्व स्थिरीकरण के लिए जीवाणु कलचर जैसे राइजोवियम, एजोटोबैक्टर, एजोस्पाइरीलम, फास्फोटिका और पोटाशिक जीवाण से भी बीजोपचार किया जाता है|
    बीज उपचार बहुत ही सस्ता और सरल उपचार है| इसे कर लेने पर लागत का ग्यारह गुणा लाभ और कभी-कभी महामारी की स्थिति में 40 से 80 गुणा तक लागत में बचत सम्भावित है|

    बीज उपचार करने के लिए रसायन या जैव रसायन की अनुशंसित मात्रा कैसे तय करे
    रोग नियंत्रण हेतु
    जैव रसायन द्वारा-

    1. ट्राइकोडर्मा- 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज
    2. स्यूडोमोनास- 4 से 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज
      रसायन द्वारा-
    3. कार्बेन्डाजीम या मैंकोजेव या बेनोमील- 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज
    4. कैप्टान या थीरम- 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज
    5. फनगोरेन- 6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज
    6. ट्रायसाइक्लोजोल- 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज

    कीट नियन्त्रण हेतु-

    1. क्लोरपायरीफॉस- 5 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज
    2. इमीडाक्लोप्रीड या थायमेथोक्साम- 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज
    3. मोनोक्रोटोफास- 5 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज (सब्जियों को छोड़कर)

    पोषक तत्व स्थिरीकरण हेतु-

    1. नेत्रजन स्थिरीकरण हेतु- राइजोबियम, एजोटोबेक्टर और एजोस्पाइरील- 250 ग्राम प्रति 10 से 12 किलोग्राम बीज
    2. फास्फोरस विलियन हेतु- पी. एस. वी. (फास्फोवैक्टिरीया) 250 ग्राम प्रति 12 किलोग्राम बीज
    3. पोटाश स्थिरीकरण हेतु- पोटाशिक जीवाणु- 250 ग्राम प्रति 10 से 12 किलोग्राम बीज

    बीज उपचार निम्न ४ विधियों से किया जा सकता है -

    1. सुखा बीजोपचार
    2. भीगे बीजोपचार
    3. गर्म पानी बीजोपचार
    4. स्लरी बीजोपचार
      बीज उपचार विधि
      सुखा बीज उपचार-
      बीज को एक बर्तन में रखें, उसमें रसायन या जैव रसायन की अनुशंसित मात्रा में मिलायें, बर्तन को बन्द करें और अच्छी तरह हिलाएँ|
      भीगे बीज उपचार-
      पालीथीन चादर या पक्की फर्श पर बीज फैला दें, अब हल्का पानी का छिड़काव करें, रसायन या जैव रसायन अनुशंसित मात्रा में बीज के ढेर पर डालकर उसे दस्ताना पहने हाथों से अच्छी तरह मिलाकर छाया में सुखा लें|
      गर्म पानी उपचार-
      किसी धातु के बर्तन में पानी को 52 डिग्री सेंटीग्रेड तक गर्म करें, बीज को 30 मिनट तक उस बर्तन में डालकर छोड़ दें, उपरोक्त तापक्रम पूरी प्रक्रिया में बना रहना चाहिए, बीज को छाया में सुखा लें उसके बाद बुआई करें|
      स्लरी या घोल बीज उपचार-
      स्लरी (घोल) बनाने हेतु रसायन या जैव रसायन की अनुशंसित मात्रा को 10 लीटर पानी की मात्र में किसी टब या बड़े बर्तन में अच्छी तरह मिला लें| अब इस घोल में बीज, कंद या पौधे की जड़ों को 10 से 15 मिनट तक डालकर रखें, फिर छाया में बीज या कंद को सुखा ले तथा बुआई या रोपाई करें|

    बीज उपचार से जुडी कुछ सावधानिया -

    1. बीजों में जीवाणु कलचर से बीज उपचार करने के लिए सर्वप्रथम 100 ग्राम गुड़ को 1 लीटर पानी में उबाल लेते हैं, जब यह एक तार के चासनी जैसा बन जाए, तब इसे ठंडा होने के लिए छोड़ दिया जाता है, जब घोल पूरी तरह ठंडा हो जाए, तब इसमें 250 ग्राम कलचर को ठीक से मिला दिया जाता है| अब इस मिश्रित घोल को बीज के ढेर पर डालकर अच्छी तरह मिलाकर बुआई कर सकते हैं|
    2. राइजोबियम कल्चर फसलों की विशेषता के आधार पर किये जाते हैं, इसलिए विभिन्न वर्गों के राइजोबियम को दिये गये फसलों के अनुसार ही उपयुक्त मात्रा में इन्हें प्रयोग किया जाना चाहिए|
    3. कल्चर से उपचारित बीज की बुआई शीघ्र करना चाहिए|
    4. बीजों पर यदि जीवाणु कल्चर प्रयोग के साथ-साथ फफूंदनाशी या कीटनाशी रसायनों का प्रयोग करना हो तब सबसे पहले फफूदनाशी का प्रयोग करे फिर कीटनाशी और जीवाणु कलचर का प्रयोग करे और सबके बीच 8 से 10 घंटे का अंतर रखे और उसके उपरान्त एवं अन्त में 20 घंटे के बाद जीवाणु कलचर से बीज उपचार करना चाहिए|
    5. यदि जीवाणु कलचर प्रयोग के साथ-साथ फफूंदनाशी और कीटनाशी रसायन का प्रयोग अनिवार्य हो तब कलचर की मात्रा दोगुनी करनी पड़ेगी| यदि कलचर पहले प्रयोग में लाया गया है, तो फफूंदनाशी और कीटनाशी रसायनों का इस्तेमाल न करें तो ज्याद अच्छा होगा|
    6. बीज को कभी भी उपचार के बाद धूप में नही सुखायें, यानि उपचारित बीज को सुखाने के लिए खुला परन्तु छायादार जगह का प्रयोग करें|
    7. बीज को उपचारित करते समय हाथ में दस्ताना पहनकर ही बीज उपचार करें, यदि थिरम से बीज उपचार करना हो तो आँखों पर चश्मा का प्रयोग करें, क्योंकि थीरम को पानी में मिलाने पर गैस निकलती है, जो आँखों में जलन पैदा करती हैं|
    8. किसी कारण से यदि रसायन या जैव रसायन का फफूंदनाशी या कीटनाशक उपलब्ध न हो तो घरेलू विधि में ताजा गौ-मूत्र 10 से 15 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज के द्वारा भी बीज उपचार कर सकते हैं|
    July 7, 2021
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