इंटीग्रेटेड फार्मिग सिस्टम (Integrated Farming System)
आजकल पारम्परिक खेती को लेकर एक धारणा बन गयी है कि इससे मुनाफा मिलता कठिन होता है और यही कारण है कि कई किसान किसानी छोड़ कर किसी और व्यवसाय कि तरफ रुख कर रहे है I
परन्तु वही कुछ किसान ऐसे भी है जो नयी नयी खेती की तकनीक को अपना कर दिन दुगनी रात चौगुनी कमाई कर रहे है, ऐसी ही एक तकनीक का नाम है इंटीग्रेटेड फार्मिंग या एकीकृत कृषि प्रणाली I
आइये जानते है क्या है इंटीग्रेटेड फार्मिग सिस्टम?
इंटीग्रेटेड फार्मिग सिस्टम यानी एकीकृत कृषि प्रणाली का महत्त्व छोटे और सीमांत किसानों के लिए ज्यादा है हालाँकि बड़े किसान भी इस प्रणाली की अपनाकर खेती से मुनाफा कमा सकते हैंI एकीकृत कृषि प्रणाली का मुख्य उदेश्य खेती की जमीन के हर हिस्से का पूर्ण रूप से इस्तेमाल करना हैI इसके तहत आप एक ही साथ अलग-अलग फसल, फूल, सब्जी, मवेशी पालन, फल उत्पादन, मधुमक्खी पालन, मछली पालन इत्यादि कर सकते हैं I इससे आप अपने संसाधनों का पूरा इस्तेमाल कर पाएंगे और लागत में कमी आएगी फलस्वरूप उत्पादकता बढ़ेगी I एकीकृत कृषि प्रणाली न केवल पर्यावरण के लिए अनुकूल है बल्कि यह खेत की उर्वरक शक्ति को भी बढ़ाती हैI
इंटीग्रेटेड फार्मिंग का एक बहुत ही बेहतरीन उदाहरण आपके लिए प्रस्तुत है I
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से महज 90 किलोमीटर दूर सीतापुर जिला राष्ट्रीय राज्यमार्ग के किनारे जिला कृषि उपनिदेशक अरविंद मोहन मिश्र ने अपने कार्यालय में खाली पड़ी जमीन पर आधुनिक विधि से एक एकड़ में मौडल तैयार किया है I
इस एक एकड़ के मौडल में मछलीपालन, बत्तखपालन, मुरगीपालन के साथसाथ फलदार पौधों की नर्सरी तैयार करवाई गयी है I श्री अरविंद मोहन मिश्र बताते हैं कि उन्होंने एक बीघा जमीन में तालाब की खुदाई करवाई है, तालाब में ग्रास कौर्प मछली डाल रखी हैं, इतनी मछली से सालभर में करीब एक से डेढ़ लाख रुपए की कमाई हो जाती है I इस के बाद तालाब के ऊपर मचान बना कर उस में पोल्ट्री फार्म बनाया है, जिस में कड़कनाथ सहित अन्य देशी मुर्गा - मुर्गी पाल रखे हैं I जो दाना मुर्गियों को दिया जाता हैं, उस का जो शेष भाग बचता है, वह मचान से नीचे गिरता रहता है और उसे नीचे तालाब की मछलिया खा लेती है जिससे मछलियों के दाने की बचत हो जाती है I
2 बीघा जमीन पर ढैंचा की बुआई कर रखी है जिससे हरी खाद बनेगी और उस के बाद इस की जुताई करा के इस में शुगर फ्री धान की रोपाई कर देंगे I मिश्र जी ने यह भी बताया कि २ बीघे में गन्ने की पैदावार की गयी है जिससे तकरीबन 200 से 250 क्विंटल गन्ने की पैदावार लेते हैं, साथ ही, गन्ने में बीचबीच में अगेती भिंडी फसल बो रखी है, जिस से 30 से 40 हजार रुपए का मुनाफा होता है I सहफसली से एक और फायदा है कि जो छिड़काव या खाद हम एक फसल में देते हैं, उस का लाभ सहफसली को भी मिल जाता है I
जिला उपकृषि निदेशक अरविंद मोहन मिश्र ने कहा कि पायलट प्रोजैक्ट के तौर पर यह मॉडल सीतापुर जिले में 10 किसानों के लिए और बनवाया जाएगा I इस मॉडल की मंजूरी के लिए शासन से भी बातचीत चल रही है I
आजकल कृषि में लागत वृद्धि होने का एक कारण यह भी है कि किसान अधिक उत्पादन के चक्कर में खेती में रासायनिक खादों का प्रयोग कर रहे हैं, वो भी बिना किसी मापदंड के I इस को कम करने के लिए किसान खुद देशी विधि जैसे वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल कर या गाय का गोबर और गौमूत्र से जीवामृत बना कर छिड़काव करें, इससे कृषि लागत में कमी लायी आज सकती है I
किसान यदि ठान ले तो भारतीय खेती व् नवीनतम कृषि तकनीक के जरिये वो अपनी आमदनी भी बढ़ा सकता है और कृषि उत्पाद की गुणवत्ता भी कायम रख सकता है I
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