• ग्राम
  • ग्राम संस्कृति
  • ग्राम स्वास्थ
    • आयुर्वेद
  • ग्राम शिक्षा
  • ग्राम तकनीक
    • कृषी यन्त्र
  • सुझाव दे
  • ग्राम सुधार सुझाव
  • संपर्क

किसान साई जुडी खबरे !

कृषी यन्त्र
मोटर संचालित क्राप कटर मशीन

March 26, 2021

कृषि में जहाँ किसान पहले वर्ष में एक या दो फसल ले पाते थे वही अब कृषि यंत्रों की मदद से कम समय में कृषि कार्यों को पूर्ण करके तीन फसलें लेने लगे हैं | कृषि यंत्र से जहाँ कम समय में कार्य पूर्ण हो जाते हैं वही इससे फसल उत्पदान की लागत भी कम होती है खासकर छोटे कृषि यंत्रों से | भारत में छोटे एवं मध्यवर्गीय किसानों के लिए छोटे कृषि यंत्रों को विकसित किया जा रहा है | सरकार द्वारा इनके उपयोग को बढ़ावा भी दिया जा रहा है जिसके लिए सरकार द्वारा इन कृषि यंत्रों पर सब्सिडी भी दी जाती है | छोटे किसानों के बीच इन छोटे कृषि उपकरणों को लोकप्रिय बनाने की आवश्यकता है, जिससे कृषि श्रमिकों और किराए की मशीनों पर उनकी निर्भरता कम की जा सके | किसान समाधान गेहूं कटाई के समय को देखते हुए कटाई के लिए उपयुक्त मोटर संचालित क्रॉप कटर की जानकारी लेकर आया है |

मोटर संचालित क्राप कटर:

क्राप कटर मशीन पके हुए गेहूं को जमीन से लगभग 15 से 20 से.मी. की ऊँचाई से काट सकती है | क्रॉप कटर से काटने की चोडाई 255 सेमी तक होती है वहीँ इसमें 48 से 50 सीसी की शक्ति से चल सकती है | इसका बजन 8 किलो से लेकर 10 किलोग्राम तक होता है | यह पेट्रोल से चलने वाला यंत्र है जिसमें एक बार में 1.2 लीटर पेट्रोल तक भरा जा सकता है | मशीन में एक गोलाकार आरा ब्लेड, विंडरोइंग सिस्टम, सेफ्टी कवर, कवर के साथ ड्राइव शाफ़्ट, हैंडल, ऑपरेटर के लिए हैगिंग बैंड पेट्रोल टैंक, स्टार्टर नांब , चोक लीवर और एयर क्लीनर होते हैं | ब्लेड, इंजन द्वारा संचालित एक लंबी ड्राइव शाफ़्ट के माध्यम से घूमता है | 25 से.मी. की ऊँचाई और 12 से.मी. के ब्लेड त्रिज्या के बराबर आधे बेलन के आकार की एक एलुमिनियम शीट को काटने वाले ब्लेड के उपरी भाग में फिट किया जाता है | फसलों को इकट्ठा करने में आसानी के लिए एक समान पंक्ति बनाने के लिए एक गार्ड लगाया जाता है |

क्राप कटर मशीन में ब्लेड का उपयोग फसल के अनुसार करें :

मोटर संचालित क्राप कटर मशीन में ब्लेड का उपयोग फसल के पौधे के अनुसार किया जा सकता है | ज्यादा दांत वाले ब्लेड का उपयोग मोटे तथा कड़क पौधे की कटाई के लिए किया जाता है तथा कम दांत वाले ब्लेड का उपयोग मुलायम तथा पतले पौधे के लिए किया जाता है |

दांतों की संख्या तथा उसका उपयोग :

120 दांत वाले ब्लेड का उपयोग – 120 दांतों वाले ब्लेड का उपयोग गेहूं, मक्का आदि फसलों की कटाई के लिए किया जाता है | 60 और 80 दंतों वाले ब्लेड का उपयोग – 60 तथा 80 दानों वाले ब्लेड का उपयोग चारा काटने के लिए किया जाता है | 40 दांतों वाले ब्लेड का उपयोग – 40 दांतों वाले ब्लेड का उपयोग 2 इंच मोती वाले पौधे को काटने के लिए किया जाता है |

आयुर्वेद

गिलोय वायरल फीवर से राहत दिलाने में मददगार

एक अंगुल मोटी या 4-6 लम्बी गिलोय को लेकर 400 मि.ली. पानी में उबालें। 100 मि.ली. शेष रहने तक इसे उबालें और पिएँ। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है तथा बार-बार होने वाली सर्दी-जुकाम व बुखार नहीं होते।

वायरल फीवर से बचाव के उपाय :

अब तक आपने वायरल फीवर होने के लक्षण और कारणों के बारे में जाना। लेकिन कुछ सावधानियां बरतने पर यानि जीवनशैली में और खान-पान में थोड़ा बदलाव लाने पर इस रोग को होने से रोक सकते हैं।

  • खाने में उबली हुई सब्जियां, हरी सब्जियां खाना चाहिए।
  • दूषित पानी एवं भोजन से बचें।
  • पानी को पहले उबाल कर थोड़ा गुनगुना ही पिएँ।
  • वायरल बुखार से ग्रस्त रोगी के सम्पर्क में आने से बचें।
  • मौसम में बदलाव के समय उचित आहार-विहार का पालन करें।
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनायें रखने के लिए आयुर्वेदिक उपचार एवं अच्छी जीवन शैली को अपनायें।
March 26, 2021
अधिक पढ़ें
दालचीनी के फायदे

आपने दालचीनी का नाम जरूर सुना होगा। आमतौर पर लोग दालचीनी का प्रयोग केवल मसालों के रूप में ही करते हैं, क्योंकि लोगों को दालचीनी के फायदे के बारे में पूरी जानकारी नहीं है।आयुर्वेद में दालचीनी को एक बहुत ही फायदेमंद औषधि के रूप में बताया गया है। आयुर्वेद के अनुसार, दालचीनी के इस्तेमाल से कई रोगों का इलाज किया जा सकता है।

पतंजलि के अनुसार, दालचीनी के सेवन से पाचनतंत्र संबंधी विकार, दांत, व सिर दर्द, चर्म रोग, मासिक धर्म की परेशानियां ठीक की जा सकती हैं। इसके साथ ही दस्त,और टीबी में भी इसके प्रयोग से लाभ मिलता है।

दालचीनी से अन्य फायदे:-

  1. हिचकी की परेशानी दूर करना !
  2. भूख को बढ़ाना !
  3. भूख को बढ़ाना !
  4. दाँत के दर्द के लिए !
  5. उल्टी को रोकने के लिए !

March 19, 2021
अधिक पढ़ें
पाचनतंत्र और गैस की समस्या

आयुर्वेद में यह बताया गया है कि अजमोदादि चूर्ण को सबसे अच्छा पाचक माना गया है। अजमोदादि चूर्ण भूख को बढ़ाता है, पाचनतंत्र को ठीक करता है और पेट की गैस की समस्या से आराम दिलाता है। अजमोदादि चूर्ण एक आयुर्वेदिक औषधि है। दर्दों से मुक्ति के लिए यह पतंजलि द्वारा दी जाने वाली यह एक प्रमुख औषधि है। इसे विभिन्न पादपों के जड़, तने, फूल, पत्तों आदि के मिश्रण से तैयार किया जाता है। अजमोदादि चूर्ण सभी प्रकार के दर्द ख़त्म करता है तथा वायु को शान्त करता है। यह कफ दोष को भी नष्ट करता है।

अजमोदादि चूर्ण के फायदे:-

  1. जोड़ों का दर्द एक ऐसी बीमारी है जिससे हजारों लोग पीड़ित हैं। इस बीमारी के कारण लोगों को जोड़ों में बहुत तकलीफ झेलनी पड़ती है। जोड़ों के दर्द से राहत पाने के लिए आप अजमोदादि चूर्ण का उपयोग कर सकते हैं। यह आपको जोड़ों के दर्द से राहत पहुंचाता है।
  2. शरीर के किसी अंग में सूजन हो गई हो तो अजमोदादि चूर्ण से लाभ मिलता है। इसके लिए आप किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से यह सलाह जरूर लें कि सूजन के लिए अजमोदादि चूर्ण का कैसे इस्तेमाल करना है।
  3. यह पाचनतंत्र में सुधार लाता है। यह पेट की गैस की समस्या को ठीक करता है। इस परेशानी के लिए अजमोदादि चूर्ण का सेवन करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर परामर्श लें।
  4. अजमोदादि चूर्ण दर्द के लिए रामबाण औषधि है। आप सायटिका में भी अजमोदादि चूर्ण का प्रयोग कर सकते हैं। इससे फायदा होता है।
March 19, 2021
अधिक पढ़ें

ग्राम शिक्षा

किसानों के लिए कृषि के कुछ व्यवसाय
  • कृषि उपकरण किराया :- यदि आपके पास बेहतर कृषि के उपकरण मौजूद हैं या आपके पास उसे खरीदने के लिए पर्याप्त पूंजी हैं, तो आप इसे खरीद कर किराये पर चला सकते हैं. आप अपने इन उपकरणों को किसानों को किराये पर या पट्टे पर दे सकते हैं. और इस तरह से यह व्यवसाय आप कर सकते हैं!
  • पेड़ों के बीज की सप्लाई :- विभिन्न तरह के पेड़ों के बीज काट कर आप इसे लोगों को बेच कर भी व्यवसाय कर सकते हैं. क्योंकि आज बहुत से लोग नये पौधे लगाना चाहते हैं. तो ऐसे में यह व्यवसाय बहुत अच्छा हो सकता है!
  • फलों और सब्जियों का निर्यात :– फलों और सब्जियों के व्यापार को स्थानीय किसानों से एकत्र करके निर्यात शुरू कर सकते हैं. यह आसान कम्युनिकेशन के माध्यम से किया जा सकता है, जैसे एक टेलीफोनिक, वार्तालाप, इन्टरनेट कनेक्शन के साथ वाला कंप्यूटर आदि!
  • कृषि फार्म :- आप उचित पैसे लगाकर कृषि फार्म शुरू कर सकते हैं. आप स्थानीय मांग के अनुसार वस्तुओं का उत्पादन कर सकते हैं, और उन्हें स्थानीय स्तर पर बेच सकते हैं. इसके अलावा यदि आप इसे दूर के क्षेत्रों के लिए करना चाहते हैं, तो आप डिस्ट्रीब्यूशन चैनलों के माध्यम से भी उत्पाद की सप्लाई कर सकते हैं!
  • फ़र्टिलाइज़र वितरण व्यवसाय :- इस व्यवसाय को मध्यम पूंजी का निवेश कर शुरू कर सकते हैं. यह ज्यादातर सरकार के नियंत्रण में होता है. इसलिए यह आपके लिए अच्छा साबित हो सकता है!
  • आर्गेनिक फार्म ग्रीन हाउस :– आर्गेनिक रूप से विकसित कृषि उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण इस कृषि व्यवसाय में वृद्धि हुई है. चूंकि देखा जाता है कि रसायनों और फ़र्टिलाइज़र्स के साथ उगायें जाने वाले खाद्य पदार्थों में कई हेल्थ रिस्क हो सकते हैं, इसलिए लोग आर्गेनिक खाद्य पदार्थ उगा कर आर्गेनिक फार्म ग्रीन हाउस शुरू कर सकते हैं!
  • खाद्य पदार्थों की थोक बिक्री :– आप ऐसे खाद्य पदार्थों की भी कटाई कर सकते हैं, जिन्हें चावल या मकई उत्पाद की तरह थोक में बेचा जा सकता है, इन उत्पादों को आप थोक में खाद्य उत्पादन कंपनियों को बेच सकते हैं!
  • हाइड्रोपोनिक रिटेल स्टोर :- यह एक नई वृक्षारोपण तकनीक है, जिसमें कमर्शियल और घरेलू उपयोग दोनों के लिए वृक्षारोपण के लिए मिट्टी की आवश्यकता होती है!
  • भोजन पहुँचाना :- यदि आप खाद्य पदार्थों को उगाते या बनाते हैं, तो आप स्थानीय उपभोक्ताओं को जो स्थानीय उत्पादों को खरीदना चाहते हैं, उन्हें आप ताज़ा खाद्य पदार्थ वितरित करने के लिए एक व्यवसाय का निर्माण भी कर सकते हैं!
  • फूलवाला :– इस व्यवसाय के लिए फूलों के उत्पादकों के साथ एक खुदरा स्थान और कनेक्शन की आवश्यकता होती है. यह सबसे अधिक लाभदायक खुदरा कृषि व्यवसाय के विकल्पों में से एक है, जो ग्राहकों को फूलों की डोरस्टेप डिलीवरी प्रदान करके ऑनलाइन भी किया जा सकता है!
  • आटा मिलिंग :– आप आटा मिल का व्यवसाय भी कर सकते हैं, इसमें अपने खुद के ब्रांड के नाम से उत्पाद स्थापित करना इस व्यवसाय में अत्यधिक लाभदायक है!
  • जड़ी बूटी का व्यवसाय :– कृषि के लिए तुलसी, पार्सले और इसी तरह की जड़ी बूटियाँ महान कृषि उत्पादों में से हैं. इसलिए आप इसे अपने घर या खेत में उगा सकते हैं. और बेच कर व्यवसाय शुरू कर सकते हैं!
  • खेत की फसल :– सोयाबीन, लौंग और अन्य प्रकार की फसलों को उगाने के लिए उचित मात्रा में क्षेत्र की आवश्यकता होती है. अगर आपके पास जमीन है, तो आप इस तरह के खाद्य उत्पादकों को बेचने के लिए विशिष्ट फसलों की कटाई कर सकते हैं!
  • तितली की खेती :- अक्सर देखा जाता है कि तितलियों का उपयोग माली अपने पौधों की प्रोसेसेज एवं सौन्दर्य को बढ़ाने के लिए करते हैं. ऐसे में यदि आप खुद की तितली कॉलोनी शुरू करते हैं और ऐसे ग्राहकों को टारगेट करते हैं जिन्हें इसकी आवश्यकता होती है तो इससे काफी अच्छा व्यवसाय शुरू हो सकता है!
  • प्लाटिंग सेवा :- यदि आपके पास अपना खुद का खेत नहीं है, लेकिन फिर भी आप फसल बुवाई करना जानते हैं, तो आप इस तरह के व्यवसाय पर ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं, जहाँ आप अपनी खुद की प्लाटिंग सेवा शुरू कर सकते हैं. इसके लिए आप अपने क्षेत्र के अन्य किसानों या उत्पादकों के साथ भी काम कर व्यवसाय शुरू कर सकते हैं!
  • सूखे फूल का व्यवसाय :- फूलों का उत्पादन आज के कृषि में सबसे तेजी से बढने वाली फसल प्रवृत्तियों में से एक हैं. इस व्यवसाय में सभी प्रकार के फूलों की आवश्यकता होती हैं, जोकि विशेष रूप से यूनिक और हार्ड किस्मों के बढने के लिए जरुरी है!
March 27, 2021
अधिक पढ़ें
किस तरह की मिट्टी में कौन सी फसल उगानी चाहिए

दुनिया की ज्यादातर फसलें, फल और सब्जियां मिट्टी में होती हैं। लेकिन हर तरह की मिट्टी की एक खासियत होती है और उसमें उसके अनुरुप वाली ही फसलें उगती हैं। हमारे देश में एक कहावत है - मिट्टी का तन है मिट्टी में मिल जाएगा। इस बात से हमारी ज़िंदगी में मिट्टी की क्या उपयोगिता है ये समझ आ जाता है। कैल्शियम, सोडियम, एल्युमिनियम, मैग्नीशियम, आयरन, क्ले और मिनरल ऑक्साइड के अवयवों से मिलकर बनी मिट्टी वातावरण को संशोधित भी करती है। घर बनाने से लेकर फसल उगाने तक हमारी ज़िंदगी के लगभग हर काम में मिट्टी कहीं न कहीं ज़रूर होती है। किसी भी क्षेत्र में कौन सी फसल अच्छी तरह से हो सकती है ये बात बहुत हद तक उस क्षेत्र की मिट्टी पर निर्भर करती है। इकोसिस्टम में मिट्टी पौधे की वृद्धि के लिए एक माध्यम के रूप में काम करती है। यहां हम आपको बताएंगे कि देश के कौन से क्षेत्र में कौन सी मिट्टी होती है और उसमें कौन सी फसलें उगाई जा सकती हैं।

काली मिट्टी:

काली मिट्टी बेसाल्ट चट्टानों (ज्वालामुखीय चट्टानें) के टूटने और इसके लावा के बहने से बनती है। इस मिट्टी को रेगुर मिट्टी और कपास की मिट्टी भी कहा जाता है। इसमें लाइम, आयरन, मैग्नेशियम और पोटाश होते हैं लेकिन फॉस्फोरस, नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थ इसमें कम होते हैं। इस मिट्टी का काला रंग टिटेनीफेरस मैग्नेटाइट और जीवांश (ह्यूमस) के कारण होता है। यह मिट्टी डेक्कन लावा के रास्ते में पड़ने वाले क्षेत्रों जैसे महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध प्रदेश और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में होती है। गोदावरी, कृष्णा, नर्मदा और ताप्ती नदियों के किनारों पर यह मिट्टी पाई जाती है।


काली मिट्टी में होने वाली फसलें इस मिट्टी में होने वाली मुख्य फसल -: कपास है लेकिन इसके अलावा गन्ना, गेहूं, ज्वार, सूरजमुखी, अनाज की फसलें, चावल, खट्टे फल, सब्ज़ियां, तंबाखू, मूंगफली, अलसी, बाजरा व तिलहनी फसलें होती हैं।

लाल और पीली मिट्टी:
ये मिट्टी ये दक्षिणी पठार की पुरानी मेटामार्फिक चट्टानों के टूटने से बनती है। भारत में यह मिट्टी छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश के पूर्वी भाग, छोटानागपुर के पठारी क्षेत्र, पश्चिम बंगाल के उत्तरी पश्चिम जिलों, मेघालय की गारो खासी और जयंतिया के पहाड़ी क्षेत्रों, नागालैंड, राजस्थान में अरावली के पूर्वी क्षेत्र, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक के कुछ भागों में पाई जाती है। यह मिट्टी कुछ रेतीली होती है और इसमें अम्ल और पोटाश की मात्रा अधिक होती है जबकि इसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम और ह्यूमस की कमी होती है। लाल मिट्टी का लाल रंग आयरन ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण होता है, लेकिन जलयोजित रूप में यह पीली दिखाई देती है।

लाल और पीली मिट्टी में होने वाली फसलें -:चावल, गेहूं, गन्ना, मक्का, मूंगफली, रागी, आलू, तिलहनी व दलहनी फसलें, बाजरा, आम, संतरा जैसे खट्टे फल व कुछ सब्ज़ियों की खेती अच्छी सिंचाई व्यवस्था करके उगाई जा सकती हैं।

लैटेराइट मिट्टी:
लैटेराइट मिट्टी पहाड़ियों और ऊंची चट्टानों की चोटी पर बनती है। मानसूनी जलवायु के शुष्क और नम होने का जो परिवर्तन होता है उससे इस मिट्टी को बनने में मदद मिलती है। मिट्टी में अम्ल और आयरन ज़्यादा होता है और ह्यूमस, फॉस्फोरस, नाइट्रोजन, कैल्शियम की कमी होती है। इस मिट्टी को गहरी लाल लैटेराइट, सफेद लैटेराइट और भूमिगत जलवायी लैटेराइट में बांटा जाता है। लैटेराइट मिट्टी तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, ओडिशा और असम में पाई जाती है।

लैटेराइट मिट्टी में होने वाली फसलें -: लैटेराइट मिट्टी ज़्यादा उपजाऊ नहीं होती है लेकिन कपास, चावल, गेहूं, दलहन, चाय, कॉफी, रबड़, नारियल और काजू की खेती इस मिट्टी में होती है। इस मिट्टी में आयरन की अधिकता होती है इसलिए ईंट बनाने में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।

March 26, 2021
अधिक पढ़ें
अदल-बदल कर लगाएं फसल तो कीड़े नहीं कर पाएंगे नुकसान

मौसम दर मौसम फसलों में बदलाव करके कीटों से निपटा जा सकता है| साथ ही यह मिट्टी की गुणवत्ता में भी सुधार कर सकता है!
दुनियाभर में फसलों पर तेजी से कीड़ों का हमला बढ़ता जा रहा है। अभी हाल ही में राजस्थान और गुजरात में टिड्डी दल के हमले ने भारी मात्रा में फसलों को नुकसान पहुंचाया था। वहीं, अफ्रीका के कई देशों में आर्मीवॉर्म ने खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल दिया था। पर वैज्ञानिकों ने उससे निपटने का एक रास्ता ढूंढ लिया है। उन्होंने एक नए शोध में कम्प्यूटेशनल मॉडल प्रस्तुत किया है। जिससे पता चला है कि क्रॉप रोटेशन के पैटर्न में बदलाव करके कीटों के खतरे से निपटा जा सकता है। साथ ही लम्बी अवधि के दौरान कीड़ों के हमले के समय भी एक अच्छी फसल प्राप्त की जा सकती है।
क्रॉप रोटेशन के लाभ:
यह तकनीक हजारों सालों से इस्तेमाल की जा रही है। इससे पहले के अध्ययन भी बताते है कि क्रॉप रोटेशन करके कीड़ों को नियंत्रित किया जा सकता है। साथ ही, यह मिट्टी की गुणवत्ता में भी सुधार कर सकता है और पोषक तत्वों की कमी को पूरा कर सकता है। यह कीटनाशकों और उर्वरकों की आवश्यकता को कम कर देता है। अन्य शोध बताते हैं कि कीटों के विकास में मदद करने वाले पर्यावरण में बदलाव करके इनके विकास और वृद्धि को सीमित किया जा सकता है, क्योंकि एक ही तरह की फसलें इनके विकास में मददगार होती हैं।

March 26, 2021
अधिक पढ़ें

ग्राम संस्कृति

पंजाबीयों की बैसाखी

बैसाखी के त्यौहार का सिख धर्म में बहुत महत्व है| यह सिख धर्म का एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है| इस त्यौहार का महत्व इसलिए है क्योंकि जब सर्दियों की रबी की फसल पक जाती है और काट जाती है तो इसी दिन शिख धर्म के नए साल की शुरुवात होती है| वैसाखी को वैशाख भी कहा जाता है| इस दिन का महत्व इस लिए भी इतना अधिक है क्योंकि इसी दिन सन 1699 में दसवें गुरु गोविंद सिंहजी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी| यह पर्व हर साल 14 अप्रैल को आता है|

वैसाखी एक ऐसा त्योहार है जिसे विभिन्न लोगों द्वारा विभिन्न कारणों से मनाया जाता है। किसानों के लिए, यह बेसाक सीज़न का पहला दिन है, जो उस वर्ष का वह समय होता है जब सभी अपनी कड़ी मेहनत से भुगतान करती है। इसका कारण यह है कि इस समय के दौरान सभी फसलों को परिपक्व और पोषित किया जाता है। वे इस दिन भगवान का शुक्रिया अदा करते हैं और फसल का जश्न मनाने के लिए इकट्ठा होते हैं। दिन भी सिख और हिंदू समुदायों के लोगों के लिए नए साल की शुरुआत का प्रतीक है और इससे उन्हें दिन का जश्न मनाने का दूसरा कारण मिलता है। नए साल को सही नोट पर शुरू करने की प्रार्थना की जाती है। देश भर में स्कूलों और कई कार्यालयों को बेसाखी पर बंद कर दिया जाता है जो हर साल 13 वीं या 14 अप्रैल को पड़ता है। ये कुछ भारतीय त्योहारों में से एक है जो एक निश्चित तिथि पर आते हैं|

बैसाखी पर्व का इतिहास
जब मुगल शासक औरंगजेब का जुल्म और अत्याचार बढ़ गया था और इसी के तहत उसने गुरु तेग बहादुर को दिल्ली में शहीद कर दिया। ये देख गुरु गोविंदसिंह जी का मन तड़प उठा। उन्होंने अपने शिष्यों को एकत्र कर खालसा पंथ की स्थापना की जिसका मकसद था धर्म और भलाई के लिए हमेशा तैयार रहना। 13 अप्रैल 1699 को श्री केसरगढ़ साहिब आनंदपुर में 10वें गुरू ने खालसा पंथ के साथ अत्याचार को खत्म किया।

बैसाखी पर्व का महत्व
बैसाखी का त्योहार हर साल 13 अप्रैल को मनाया जाता है लेकिन 36 सालों में एक बार ऐसा संयोग बनता है जब 14 अप्रैल को ये पर्व मनाया जाता है। बैसाखी को मेष संक्राति के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है।पंजाब और हरियाणा में बैसाखी का पर्व कृषि से जोड़कर देखा जाता है। जब फसलें पककर तैयार हो चुकी होती हैं और इनकी कटाई होती है। सुबह जल्दी उठकर नहा-धोकर, नए कपड़े पहनकर मंदिरों और गुरुद्वारों में लोग भगवान के दर्शन करते हैं।
सिख समुदाय के लिए तो बैसाखी बहुत ही बड़ा पर्व है। सन् 1699 में बैसाखी के ही दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी जिसके बाद सिखों की दुनियाभर में एक अलग पहचान कायम हुई। इस दिन गुरुद्वारे में खास प्रार्थना का आयोजन होता है। इसके बाद लंगर की व्यवस्था होती है।

March 27, 2021
अधिक पढ़ें
कुंभ मेला

कुंभ मेला हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है। इस पर्व पर करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु कुंभ स्थलों पर स्नान करते है। कुंभ मेले की ज्योतिष गणना बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश तथा सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने के पर की जाती है। यह पर्व विभिन्न वर्षो की विभिन्न तिथियों को भारत के हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन, नासिक जैसे चार स्थानों पर आयोजित किये जाते है।देखा जाए तो कुंभ मेले का इतिहास काफी पुराना है! भारत में यह मेला बहुत अनूठा है जिसमें पूरी दुनिया से लोग आते हैं और पवित्र नदी में स्नान करते हैं! इसका अपना ही धार्मिक महत्व है और यह संस्कृति का भी एक महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता है! यह मेला लगभग 48 दिनों तक चलता है! मुख्य रूप से दुनिया भर से साधू, संत, तपस्वी, तीर्थयात्री, इत्यादि भक्त इसमें भाग लेते हैं !

कुंभ मेला - रिवाज एवं परंपरा:

कुंभ मेले के आयोजन का इतिहास काफी प्राचीन है विद्वानों का ऐसा मानना है कि भारत में कुंभ का पर्व यह पर्व लगभग 600 ई.पू. से भी पहले से मनाया जा रहा है। इतिहासकारों का मानना है कि कुंभ के वर्तमान स्वरुप का आरंभ उज्जैन के प्रतापी राजा हर्षवर्धन के शासनकाल में हुई थी। इस पर्व में जुटने वाली भीड़ को देखते हुए कुंभ आयोजन स्थान पर महिनों पहले से ही तैयारी शुरु कर दी जाती है। कुंभ मेले के दौरान आयोजन स्थल पर इन 50 दिनों में लगभग मेले जैसा माहौल रहता है और करोड़ों के तादाद में श्रद्धालु इस पवित्र स्नान में भाग लेने के लिए पहुंतते है। मकर संक्रांति के दिन आरंभ होने वाले कुंभ मेले की शुरुआत हमेशा अखाड़ों की पेशवाई के साथ होती है। आखाड़ों के इस स्नान को शाही स्नान भी कहते हैं। प्रयागराज में आयोजित होने वाले कुंभ को छोड़कर बाकी सभी तीन कुंभ 12 वर्षों के अंतराल पर आयोजित होते है। इसके साथ ही 12 पूर्ण कुंभों के बाद प्रत्येक 144 वर्ष में एक महाकुंभ का आयोजन किया जाता है।

March 26, 2021
अधिक पढ़ें
हज की पवित्र यात्रा

दुनिया भर के लाखों मुसलमान हज के लिए हर साल सऊदी अरब पहुंचते है. सऊदी अरब के मक्का शहर में काबा को इस्लाम में सबसे पवित्र स्थल माना जाता है. इस्लाम का यह प्राचीन धार्मिक अनुष्ठान दुनिया के मुसलमानों के लिए काफ़ी अहम है!

हज पर जाने का मक़सद:

इस्लाम के कुल पाँच स्तंभों में से हज पांचवां स्तंभ है सभी स्वस्थ और आर्थिक रूप से सक्षम मुसलमानों से अपेक्षा होती है कि वो जीवन में एक बार हज पर ज़रूर जाएं ! हज को अतीत के पापों को मिटाने के अवसर के तौर पर देखा जाता है. ऐसा माना जाता है कि हज के बाद उसके तमाम पिछले गुनाह माफ़ कर दिए गए हैं और वो अपनी ज़िंदगी को फिर से शुरू कर सकता है. ज़्यादातर मुसलमानों के मन में जीवन में एक बार हज पर जाने की इच्छा होती है!

हज का इतिहास:

लगभग चार हज़ार साल पहले मक्का का मैदान पूरी तरह से निर्जन था. मुसलमानों का ऐसा मानना है कि अल्लाह ने पैग़ंबर अब्राहम (जिसे मुसलमान इब्राहीम कहते हैं) को आदेश दिया कि वो अपनी पत्नी हाजरा और बेटे इस्माइल को फ़लस्तीन से अरब ले आएं ताकि उनकी पहली पत्नी सारा की ईर्ष्या से उन्हें (हाजरा और इस्माइल) बचाया जा सके! मुसलमानों का ये भी मानना है कि अल्लाह ने पैग़ंबर अब्राहम से उन्हें अपनी क़िस्मत पर छोड़ देने के लिए कहा. उन्हें खाने की कुछ चीज़ें और थोड़ा पानी दिया गया. कुछ दिनों में ही ये सामान ख़त्म हो गया. हाजरा और इस्माइल भूख और प्यास से बेहाल हो गए! मुसलमानों का मानना है कि मायूस हाजरा मक्का में स्थित सफ़ा और मरवा की पहाड़ियों से मदद की चाहत में नीचे उतरीं. भूख और थकान से टूट चुकी हाजरा गिर गईं और उन्होंने संकट से मुक्ति के लिए अल्लाह से गुहार लगाई! मुसलमानों का विश्वास है कि इस्माइल ने ज़मीन पर पैर पटका तो धरती के भीतर से पानी का एक सोता फूट पड़ा और दोनों की जान बच गई !हाजरा ने पानी को सुरक्षित किया और खाने के सामान के बदले पानी का व्यापार भी शुरू कर दिया. इसी पानी को आब-ए-ज़मज़म यानी ज़मज़म कुआं का पानी कहा जाता है. मुसलमान इसे सबसे पवित्र पानी मानते हैं और हज के बाद सारे हाजी कोशिश करते हैं कि वो इस पवित्र पानी को लेकर अपने घर लौटें !जब पैग़ंबर अब्राहम फ़लस्तीन से लौटे तो उन्होंने देखा कि उनका परिवार एक अच्छा जीवन जी रहा है और वो पूरी तरह से हैरान रह गए !मुसलमान मानते हैं कि इसी दौरान पैगंबर अब्राहम को अल्लाह ने एक तीर्थस्थान बनाकर समर्पित करने को कहा. अब्राहम और इस्माइल ने पत्थर का एक छोटा-सा घनाकार इमारत निर्माण किया. इसी को काबा कहा जाता है.
अल्लाह के प्रति अपने भरोसे को मज़बूत करने को हर साल यहां मुसलमान आते हैं. सदियों बाद मक्का एक फलता-फूलता शहर बन गया और इसकी एकमात्र वजह पानी के मुकम्मल स्रोत का मिलना था.

March 26, 2021
अधिक पढ़ें