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किसान साई जुडी खबरे !

ग्राम शिक्षा
जैविक खेती

March 20, 2021

जैविक खेती एक ऐसी पद्धति है, जिसमें रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों तथा खरपतवारनाशियों के स्थान पर जीवांश खाद पोषक तत्वों (गोबर की खाद कम्पोस्ट, हरी खाद, जीवणु कल्चर, जैविक खाद आदि) जैव नाशियों (बायो-पैस्टीसाईड) व बायो एजैन्ट जैसे क्राईसोपा आदि का उपयोग किया जाता है, जिससे न केवल भूमि की उर्वरा शक्ति लम्बे समय तक बनी रहती है, बल्कि पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होता तथा कृषि लागत घटने व उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ने से कृषक को अधिक लाभ भी मिलता है ।

जैविक खेती वह सदाबहार कृषि पद्धति है, जो पर्यावरण की शुद्धता, जल व वायु की शुद्धता, भूमि का प्राकृतिक स्वरूप बनाने वाली, जल धारण क्षमता बढ़ाने वाली, धैर्यशील कृत संकल्पित होते हुए रसायनों का उपयोग आवश्यकता अनुसार कम से कम करते हुए कृषक को कम लागत से दीर्घकालीन स्थिर व अच्छी गुणवत्ता वाली पारम्परिक पद्धति है।

जैविक खेती का उद्देश्य:-

इस प्रकार की खेती करने का मुख्य उद्देश्य यह है कि रासायनों उर्वरकों का उपयोग न हो तथा इसके स्थान पर जैविक उत्पाद का उपयोग अधिक से अधिक हो लेकिन वर्तमान में बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए तुरंत उत्पादन में कमी न हो अत: इसे (रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को) वर्ष प्रति वर्ष चरणों में कम करते हुए जैविक उत्पादों को ही प्रोत्साहित करना है। जैविक खेती का प्रारूप निम्नलिखित प्रमुख क्रियाओं के क्रियान्वित करने से प्राप्त किया जा सकता है ।

1. कार्बनिक खादों का उपयोग ।
2. जीवाणु खादों का प्रयोग ।
3. फसल अवशेषों का उचित उपयोग
4. जैविक तरीकों द्वारा कीट व रोग नियंत्रण
5. फसल चक्र में दलहनी फसलों को अपनाना ।
6. मृदा संरक्षण क्रियाएं अपनाना ।

आयुर्वेद

गिलोय वायरल फीवर से राहत दिलाने में मददगार

एक अंगुल मोटी या 4-6 लम्बी गिलोय को लेकर 400 मि.ली. पानी में उबालें। 100 मि.ली. शेष रहने तक इसे उबालें और पिएँ। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है तथा बार-बार होने वाली सर्दी-जुकाम व बुखार नहीं होते।

वायरल फीवर से बचाव के उपाय :

अब तक आपने वायरल फीवर होने के लक्षण और कारणों के बारे में जाना। लेकिन कुछ सावधानियां बरतने पर यानि जीवनशैली में और खान-पान में थोड़ा बदलाव लाने पर इस रोग को होने से रोक सकते हैं।

  • खाने में उबली हुई सब्जियां, हरी सब्जियां खाना चाहिए।
  • दूषित पानी एवं भोजन से बचें।
  • पानी को पहले उबाल कर थोड़ा गुनगुना ही पिएँ।
  • वायरल बुखार से ग्रस्त रोगी के सम्पर्क में आने से बचें।
  • मौसम में बदलाव के समय उचित आहार-विहार का पालन करें।
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनायें रखने के लिए आयुर्वेदिक उपचार एवं अच्छी जीवन शैली को अपनायें।
March 26, 2021
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दालचीनी के फायदे

आपने दालचीनी का नाम जरूर सुना होगा। आमतौर पर लोग दालचीनी का प्रयोग केवल मसालों के रूप में ही करते हैं, क्योंकि लोगों को दालचीनी के फायदे के बारे में पूरी जानकारी नहीं है।आयुर्वेद में दालचीनी को एक बहुत ही फायदेमंद औषधि के रूप में बताया गया है। आयुर्वेद के अनुसार, दालचीनी के इस्तेमाल से कई रोगों का इलाज किया जा सकता है।

पतंजलि के अनुसार, दालचीनी के सेवन से पाचनतंत्र संबंधी विकार, दांत, व सिर दर्द, चर्म रोग, मासिक धर्म की परेशानियां ठीक की जा सकती हैं। इसके साथ ही दस्त,और टीबी में भी इसके प्रयोग से लाभ मिलता है।

दालचीनी से अन्य फायदे:-

  1. हिचकी की परेशानी दूर करना !
  2. भूख को बढ़ाना !
  3. भूख को बढ़ाना !
  4. दाँत के दर्द के लिए !
  5. उल्टी को रोकने के लिए !

March 19, 2021
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पाचनतंत्र और गैस की समस्या

आयुर्वेद में यह बताया गया है कि अजमोदादि चूर्ण को सबसे अच्छा पाचक माना गया है। अजमोदादि चूर्ण भूख को बढ़ाता है, पाचनतंत्र को ठीक करता है और पेट की गैस की समस्या से आराम दिलाता है। अजमोदादि चूर्ण एक आयुर्वेदिक औषधि है। दर्दों से मुक्ति के लिए यह पतंजलि द्वारा दी जाने वाली यह एक प्रमुख औषधि है। इसे विभिन्न पादपों के जड़, तने, फूल, पत्तों आदि के मिश्रण से तैयार किया जाता है। अजमोदादि चूर्ण सभी प्रकार के दर्द ख़त्म करता है तथा वायु को शान्त करता है। यह कफ दोष को भी नष्ट करता है।

अजमोदादि चूर्ण के फायदे:-

  1. जोड़ों का दर्द एक ऐसी बीमारी है जिससे हजारों लोग पीड़ित हैं। इस बीमारी के कारण लोगों को जोड़ों में बहुत तकलीफ झेलनी पड़ती है। जोड़ों के दर्द से राहत पाने के लिए आप अजमोदादि चूर्ण का उपयोग कर सकते हैं। यह आपको जोड़ों के दर्द से राहत पहुंचाता है।
  2. शरीर के किसी अंग में सूजन हो गई हो तो अजमोदादि चूर्ण से लाभ मिलता है। इसके लिए आप किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से यह सलाह जरूर लें कि सूजन के लिए अजमोदादि चूर्ण का कैसे इस्तेमाल करना है।
  3. यह पाचनतंत्र में सुधार लाता है। यह पेट की गैस की समस्या को ठीक करता है। इस परेशानी के लिए अजमोदादि चूर्ण का सेवन करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर परामर्श लें।
  4. अजमोदादि चूर्ण दर्द के लिए रामबाण औषधि है। आप सायटिका में भी अजमोदादि चूर्ण का प्रयोग कर सकते हैं। इससे फायदा होता है।
March 19, 2021
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कृषी यन्त्र

गेहूं के कटाई के लिए उपकरण

किसान और सरकार चाहते हैं कि देशभर में फसलों की पैदावार और उनकी गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी हो, क्योंकि इससे किसान और सरकार, दोनों को लाभ होगा !मगर यह तभी संभव हो पाएगा, जब फसल उत्पादन का काम कम लागत में संपन्न हो!इसका एक मात्र विकल्प यह है कि आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग किया जाए, ताकि समय, श्रम और लागत की बचत हो पाए ! इससे किसानों को अच्छा मुनाफा भी मिल सकेगा! ऐसे में आज हम ऐसे आधुनिक 2 कृषि यंत्रों के बारे में बताएंगे, जो कि गेहूं की कटाई को आसान बना देते हैं!

ट्रैक्टर चलित रीपर बाइंडर:

यह मशीन किसानों के लिए बहुत उपयोगी है! इसमें भी कटर बार से पौधे कटे जाते हैं फिर पुलों में बंध  जाते हैं! इसके बाद संचरण प्रणाली द्वारा एक और गिरा दिया जाता है !खास बात यह है कि इस मशीन की मदद से कटाई और बंधाई का कार्य बहुत सफाई से होता है!

स्वचालित वर्टिकल कनवेयर रीपर:

छोटे और मध्यम किसानों के लिए गेहूं की कटाई करने के लिए यह बहुत उपयोगी मशीन है! इस मशीन में आगे की ओर एक कट्टर बार लगी होती है, तो वहीं पीछे संचरण प्रणाली लगी होती हैं!इसके साथ ही रीपर में लगभग 5 हॉर्स पावर का एक डीजल इंजन लगा होता है, जो कि पहियों और कटर बार के लिए शक्ति संचरण का कार्य करता है

कैसे करते हैं गेहूं की कटाई:

किसान को फसल कटाई के लिए कटर बार को आगे रखकर हैंडिल से पकडक़र पीछे चलना होता है. कटर बार गेहूं के पौधों को काटती हैं. इसके साथ ही संचरण प्रणाली द्वारा पौधे एक लाइन में बिछा दिए जाते हैं, जिनको श्रमिकों द्वारा इकट्ठा कर लिया जाता है.

March 26, 2021
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मोटर संचालित क्राप कटर मशीन

कृषि में जहाँ किसान पहले वर्ष में एक या दो फसल ले पाते थे वही अब कृषि यंत्रों की मदद से कम समय में कृषि कार्यों को पूर्ण करके तीन फसलें लेने लगे हैं | कृषि यंत्र से जहाँ कम समय में कार्य पूर्ण हो जाते हैं वही इससे फसल उत्पदान की लागत भी कम होती है खासकर छोटे कृषि यंत्रों से | भारत में छोटे एवं मध्यवर्गीय किसानों के लिए छोटे कृषि यंत्रों को विकसित किया जा रहा है | सरकार द्वारा इनके उपयोग को बढ़ावा भी दिया जा रहा है जिसके लिए सरकार द्वारा इन कृषि यंत्रों पर सब्सिडी भी दी जाती है | छोटे किसानों के बीच इन छोटे कृषि उपकरणों को लोकप्रिय बनाने की आवश्यकता है, जिससे कृषि श्रमिकों और किराए की मशीनों पर उनकी निर्भरता कम की जा सके | किसान समाधान गेहूं कटाई के समय को देखते हुए कटाई के लिए उपयुक्त मोटर संचालित क्रॉप कटर की जानकारी लेकर आया है |

मोटर संचालित क्राप कटर:

क्राप कटर मशीन पके हुए गेहूं को जमीन से लगभग 15 से 20 से.मी. की ऊँचाई से काट सकती है | क्रॉप कटर से काटने की चोडाई 255 सेमी तक होती है वहीँ इसमें 48 से 50 सीसी की शक्ति से चल सकती है | इसका बजन 8 किलो से लेकर 10 किलोग्राम तक होता है | यह पेट्रोल से चलने वाला यंत्र है जिसमें एक बार में 1.2 लीटर पेट्रोल तक भरा जा सकता है | मशीन में एक गोलाकार आरा ब्लेड, विंडरोइंग सिस्टम, सेफ्टी कवर, कवर के साथ ड्राइव शाफ़्ट, हैंडल, ऑपरेटर के लिए हैगिंग बैंड पेट्रोल टैंक, स्टार्टर नांब , चोक लीवर और एयर क्लीनर होते हैं | ब्लेड, इंजन द्वारा संचालित एक लंबी ड्राइव शाफ़्ट के माध्यम से घूमता है | 25 से.मी. की ऊँचाई और 12 से.मी. के ब्लेड त्रिज्या के बराबर आधे बेलन के आकार की एक एलुमिनियम शीट को काटने वाले ब्लेड के उपरी भाग में फिट किया जाता है | फसलों को इकट्ठा करने में आसानी के लिए एक समान पंक्ति बनाने के लिए एक गार्ड लगाया जाता है |

क्राप कटर मशीन में ब्लेड का उपयोग फसल के अनुसार करें :

मोटर संचालित क्राप कटर मशीन में ब्लेड का उपयोग फसल के पौधे के अनुसार किया जा सकता है | ज्यादा दांत वाले ब्लेड का उपयोग मोटे तथा कड़क पौधे की कटाई के लिए किया जाता है तथा कम दांत वाले ब्लेड का उपयोग मुलायम तथा पतले पौधे के लिए किया जाता है |

दांतों की संख्या तथा उसका उपयोग :

120 दांत वाले ब्लेड का उपयोग – 120 दांतों वाले ब्लेड का उपयोग गेहूं, मक्का आदि फसलों की कटाई के लिए किया जाता है | 60 और 80 दंतों वाले ब्लेड का उपयोग – 60 तथा 80 दानों वाले ब्लेड का उपयोग चारा काटने के लिए किया जाता है | 40 दांतों वाले ब्लेड का उपयोग – 40 दांतों वाले ब्लेड का उपयोग 2 इंच मोती वाले पौधे को काटने के लिए किया जाता है |

March 26, 2021
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ब्लेड हैरो

इस हैरो में माइल्ड स्टील का बना बाक्स की तरह का फ्रेम होता है तथा खरपतवार निकालने के लिए एक ब्लेड होती है, जिसमें लोहे के काँटे लगे होते हैं।

यंत्र को खींचने के लिए एक हरिस तथा एक हत्था लगा होता है। इस यंत्र के सभी भाग स्टील के बने होते हैं। यह एक जोड़ा बैलों की सहायता से खींचा जा सकता हैं। इसका ब्लेड थोड़ा अवतल होता हैं। इसकी सहायता से आलू एवं मूंगफली की खुदाई भी कर सकते हैं। ब्लेड घिसने के बाद बदला जा सकता है। इस यंत्र से देशी हल की तुलना में 24 प्रतिशत मजदूर की बचत, 15 प्रतिशत संचालन खर्च में बचत तथा 3-4 प्रतिशत उपज में बढ़ोतरी होती है।

उपयोग: इस यंत्र का मुख्य कार्य कतार में लगी हुई कपास, मक्का, शलजम इत्यादि फसलों की निकाई-गुड़ाई तथा आलू एवं मूंगफली की खुदाई करना है।

March 22, 2021
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ग्राम संस्कृति

पंजाबीयों की बैसाखी

बैसाखी के त्यौहार का सिख धर्म में बहुत महत्व है| यह सिख धर्म का एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है| इस त्यौहार का महत्व इसलिए है क्योंकि जब सर्दियों की रबी की फसल पक जाती है और काट जाती है तो इसी दिन शिख धर्म के नए साल की शुरुवात होती है| वैसाखी को वैशाख भी कहा जाता है| इस दिन का महत्व इस लिए भी इतना अधिक है क्योंकि इसी दिन सन 1699 में दसवें गुरु गोविंद सिंहजी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी| यह पर्व हर साल 14 अप्रैल को आता है|

वैसाखी एक ऐसा त्योहार है जिसे विभिन्न लोगों द्वारा विभिन्न कारणों से मनाया जाता है। किसानों के लिए, यह बेसाक सीज़न का पहला दिन है, जो उस वर्ष का वह समय होता है जब सभी अपनी कड़ी मेहनत से भुगतान करती है। इसका कारण यह है कि इस समय के दौरान सभी फसलों को परिपक्व और पोषित किया जाता है। वे इस दिन भगवान का शुक्रिया अदा करते हैं और फसल का जश्न मनाने के लिए इकट्ठा होते हैं। दिन भी सिख और हिंदू समुदायों के लोगों के लिए नए साल की शुरुआत का प्रतीक है और इससे उन्हें दिन का जश्न मनाने का दूसरा कारण मिलता है। नए साल को सही नोट पर शुरू करने की प्रार्थना की जाती है। देश भर में स्कूलों और कई कार्यालयों को बेसाखी पर बंद कर दिया जाता है जो हर साल 13 वीं या 14 अप्रैल को पड़ता है। ये कुछ भारतीय त्योहारों में से एक है जो एक निश्चित तिथि पर आते हैं|

बैसाखी पर्व का इतिहास
जब मुगल शासक औरंगजेब का जुल्म और अत्याचार बढ़ गया था और इसी के तहत उसने गुरु तेग बहादुर को दिल्ली में शहीद कर दिया। ये देख गुरु गोविंदसिंह जी का मन तड़प उठा। उन्होंने अपने शिष्यों को एकत्र कर खालसा पंथ की स्थापना की जिसका मकसद था धर्म और भलाई के लिए हमेशा तैयार रहना। 13 अप्रैल 1699 को श्री केसरगढ़ साहिब आनंदपुर में 10वें गुरू ने खालसा पंथ के साथ अत्याचार को खत्म किया।

बैसाखी पर्व का महत्व
बैसाखी का त्योहार हर साल 13 अप्रैल को मनाया जाता है लेकिन 36 सालों में एक बार ऐसा संयोग बनता है जब 14 अप्रैल को ये पर्व मनाया जाता है। बैसाखी को मेष संक्राति के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है।पंजाब और हरियाणा में बैसाखी का पर्व कृषि से जोड़कर देखा जाता है। जब फसलें पककर तैयार हो चुकी होती हैं और इनकी कटाई होती है। सुबह जल्दी उठकर नहा-धोकर, नए कपड़े पहनकर मंदिरों और गुरुद्वारों में लोग भगवान के दर्शन करते हैं।
सिख समुदाय के लिए तो बैसाखी बहुत ही बड़ा पर्व है। सन् 1699 में बैसाखी के ही दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी जिसके बाद सिखों की दुनियाभर में एक अलग पहचान कायम हुई। इस दिन गुरुद्वारे में खास प्रार्थना का आयोजन होता है। इसके बाद लंगर की व्यवस्था होती है।

March 27, 2021
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कुंभ मेला

कुंभ मेला हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है। इस पर्व पर करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु कुंभ स्थलों पर स्नान करते है। कुंभ मेले की ज्योतिष गणना बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश तथा सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने के पर की जाती है। यह पर्व विभिन्न वर्षो की विभिन्न तिथियों को भारत के हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन, नासिक जैसे चार स्थानों पर आयोजित किये जाते है।देखा जाए तो कुंभ मेले का इतिहास काफी पुराना है! भारत में यह मेला बहुत अनूठा है जिसमें पूरी दुनिया से लोग आते हैं और पवित्र नदी में स्नान करते हैं! इसका अपना ही धार्मिक महत्व है और यह संस्कृति का भी एक महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता है! यह मेला लगभग 48 दिनों तक चलता है! मुख्य रूप से दुनिया भर से साधू, संत, तपस्वी, तीर्थयात्री, इत्यादि भक्त इसमें भाग लेते हैं !

कुंभ मेला - रिवाज एवं परंपरा:

कुंभ मेले के आयोजन का इतिहास काफी प्राचीन है विद्वानों का ऐसा मानना है कि भारत में कुंभ का पर्व यह पर्व लगभग 600 ई.पू. से भी पहले से मनाया जा रहा है। इतिहासकारों का मानना है कि कुंभ के वर्तमान स्वरुप का आरंभ उज्जैन के प्रतापी राजा हर्षवर्धन के शासनकाल में हुई थी। इस पर्व में जुटने वाली भीड़ को देखते हुए कुंभ आयोजन स्थान पर महिनों पहले से ही तैयारी शुरु कर दी जाती है। कुंभ मेले के दौरान आयोजन स्थल पर इन 50 दिनों में लगभग मेले जैसा माहौल रहता है और करोड़ों के तादाद में श्रद्धालु इस पवित्र स्नान में भाग लेने के लिए पहुंतते है। मकर संक्रांति के दिन आरंभ होने वाले कुंभ मेले की शुरुआत हमेशा अखाड़ों की पेशवाई के साथ होती है। आखाड़ों के इस स्नान को शाही स्नान भी कहते हैं। प्रयागराज में आयोजित होने वाले कुंभ को छोड़कर बाकी सभी तीन कुंभ 12 वर्षों के अंतराल पर आयोजित होते है। इसके साथ ही 12 पूर्ण कुंभों के बाद प्रत्येक 144 वर्ष में एक महाकुंभ का आयोजन किया जाता है।

March 26, 2021
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हज की पवित्र यात्रा

दुनिया भर के लाखों मुसलमान हज के लिए हर साल सऊदी अरब पहुंचते है. सऊदी अरब के मक्का शहर में काबा को इस्लाम में सबसे पवित्र स्थल माना जाता है. इस्लाम का यह प्राचीन धार्मिक अनुष्ठान दुनिया के मुसलमानों के लिए काफ़ी अहम है!

हज पर जाने का मक़सद:

इस्लाम के कुल पाँच स्तंभों में से हज पांचवां स्तंभ है सभी स्वस्थ और आर्थिक रूप से सक्षम मुसलमानों से अपेक्षा होती है कि वो जीवन में एक बार हज पर ज़रूर जाएं ! हज को अतीत के पापों को मिटाने के अवसर के तौर पर देखा जाता है. ऐसा माना जाता है कि हज के बाद उसके तमाम पिछले गुनाह माफ़ कर दिए गए हैं और वो अपनी ज़िंदगी को फिर से शुरू कर सकता है. ज़्यादातर मुसलमानों के मन में जीवन में एक बार हज पर जाने की इच्छा होती है!

हज का इतिहास:

लगभग चार हज़ार साल पहले मक्का का मैदान पूरी तरह से निर्जन था. मुसलमानों का ऐसा मानना है कि अल्लाह ने पैग़ंबर अब्राहम (जिसे मुसलमान इब्राहीम कहते हैं) को आदेश दिया कि वो अपनी पत्नी हाजरा और बेटे इस्माइल को फ़लस्तीन से अरब ले आएं ताकि उनकी पहली पत्नी सारा की ईर्ष्या से उन्हें (हाजरा और इस्माइल) बचाया जा सके! मुसलमानों का ये भी मानना है कि अल्लाह ने पैग़ंबर अब्राहम से उन्हें अपनी क़िस्मत पर छोड़ देने के लिए कहा. उन्हें खाने की कुछ चीज़ें और थोड़ा पानी दिया गया. कुछ दिनों में ही ये सामान ख़त्म हो गया. हाजरा और इस्माइल भूख और प्यास से बेहाल हो गए! मुसलमानों का मानना है कि मायूस हाजरा मक्का में स्थित सफ़ा और मरवा की पहाड़ियों से मदद की चाहत में नीचे उतरीं. भूख और थकान से टूट चुकी हाजरा गिर गईं और उन्होंने संकट से मुक्ति के लिए अल्लाह से गुहार लगाई! मुसलमानों का विश्वास है कि इस्माइल ने ज़मीन पर पैर पटका तो धरती के भीतर से पानी का एक सोता फूट पड़ा और दोनों की जान बच गई !हाजरा ने पानी को सुरक्षित किया और खाने के सामान के बदले पानी का व्यापार भी शुरू कर दिया. इसी पानी को आब-ए-ज़मज़म यानी ज़मज़म कुआं का पानी कहा जाता है. मुसलमान इसे सबसे पवित्र पानी मानते हैं और हज के बाद सारे हाजी कोशिश करते हैं कि वो इस पवित्र पानी को लेकर अपने घर लौटें !जब पैग़ंबर अब्राहम फ़लस्तीन से लौटे तो उन्होंने देखा कि उनका परिवार एक अच्छा जीवन जी रहा है और वो पूरी तरह से हैरान रह गए !मुसलमान मानते हैं कि इसी दौरान पैगंबर अब्राहम को अल्लाह ने एक तीर्थस्थान बनाकर समर्पित करने को कहा. अब्राहम और इस्माइल ने पत्थर का एक छोटा-सा घनाकार इमारत निर्माण किया. इसी को काबा कहा जाता है.
अल्लाह के प्रति अपने भरोसे को मज़बूत करने को हर साल यहां मुसलमान आते हैं. सदियों बाद मक्का एक फलता-फूलता शहर बन गया और इसकी एकमात्र वजह पानी के मुकम्मल स्रोत का मिलना था.

March 26, 2021
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