दुनिया की ज्यादातर फसलें, फल और सब्जियां मिट्टी में होती हैं। लेकिन हर तरह की मिट्टी की एक खासियत होती है और उसमें उसके अनुरुप वाली ही फसलें उगती हैं। हमारे देश में एक कहावत है - मिट्टी का तन है मिट्टी में मिल जाएगा। इस बात से हमारी ज़िंदगी में मिट्टी की क्या उपयोगिता है ये समझ आ जाता है। कैल्शियम, सोडियम, एल्युमिनियम, मैग्नीशियम, आयरन, क्ले और मिनरल ऑक्साइड के अवयवों से मिलकर बनी मिट्टी वातावरण को संशोधित भी करती है। घर बनाने से लेकर फसल उगाने तक हमारी ज़िंदगी के लगभग हर काम में मिट्टी कहीं न कहीं ज़रूर होती है। किसी भी क्षेत्र में कौन सी फसल अच्छी तरह से हो सकती है ये बात बहुत हद तक उस क्षेत्र की मिट्टी पर निर्भर करती है। इकोसिस्टम में मिट्टी पौधे की वृद्धि के लिए एक माध्यम के रूप में काम करती है। यहां हम आपको बताएंगे कि देश के कौन से क्षेत्र में कौन सी मिट्टी होती है और उसमें कौन सी फसलें उगाई जा सकती हैं।
काली मिट्टी:
काली मिट्टी बेसाल्ट चट्टानों (ज्वालामुखीय चट्टानें) के टूटने और इसके लावा के बहने से बनती है। इस मिट्टी को रेगुर मिट्टी और कपास की मिट्टी भी कहा जाता है। इसमें लाइम, आयरन, मैग्नेशियम और पोटाश होते हैं लेकिन फॉस्फोरस, नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थ इसमें कम होते हैं। इस मिट्टी का काला रंग टिटेनीफेरस मैग्नेटाइट और जीवांश (ह्यूमस) के कारण होता है। यह मिट्टी डेक्कन लावा के रास्ते में पड़ने वाले क्षेत्रों जैसे महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध प्रदेश और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में होती है। गोदावरी, कृष्णा, नर्मदा और ताप्ती नदियों के किनारों पर यह मिट्टी पाई जाती है।
काली मिट्टी में होने वाली फसलें इस मिट्टी में होने वाली मुख्य फसल -: कपास है लेकिन इसके अलावा गन्ना, गेहूं, ज्वार, सूरजमुखी, अनाज की फसलें, चावल, खट्टे फल, सब्ज़ियां, तंबाखू, मूंगफली, अलसी, बाजरा व तिलहनी फसलें होती हैं।
लाल और पीली मिट्टी:
ये मिट्टी ये दक्षिणी पठार की पुरानी मेटामार्फिक चट्टानों के टूटने से बनती है। भारत में यह मिट्टी छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश के पूर्वी भाग, छोटानागपुर के पठारी क्षेत्र, पश्चिम बंगाल के उत्तरी पश्चिम जिलों, मेघालय की गारो खासी और जयंतिया के पहाड़ी क्षेत्रों, नागालैंड, राजस्थान में अरावली के पूर्वी क्षेत्र, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक के कुछ भागों में पाई जाती है। यह मिट्टी कुछ रेतीली होती है और इसमें अम्ल और पोटाश की मात्रा अधिक होती है जबकि इसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम और ह्यूमस की कमी होती है। लाल मिट्टी का लाल रंग आयरन ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण होता है, लेकिन जलयोजित रूप में यह पीली दिखाई देती है।
लाल और पीली मिट्टी में होने वाली फसलें -:चावल, गेहूं, गन्ना, मक्का, मूंगफली, रागी, आलू, तिलहनी व दलहनी फसलें, बाजरा, आम, संतरा जैसे खट्टे फल व कुछ सब्ज़ियों की खेती अच्छी सिंचाई व्यवस्था करके उगाई जा सकती हैं।
लैटेराइट मिट्टी:
लैटेराइट मिट्टी पहाड़ियों और ऊंची चट्टानों की चोटी पर बनती है। मानसूनी जलवायु के शुष्क और नम होने का जो परिवर्तन होता है उससे इस मिट्टी को बनने में मदद मिलती है। मिट्टी में अम्ल और आयरन ज़्यादा होता है और ह्यूमस, फॉस्फोरस, नाइट्रोजन, कैल्शियम की कमी होती है। इस मिट्टी को गहरी लाल लैटेराइट, सफेद लैटेराइट और भूमिगत जलवायी लैटेराइट में बांटा जाता है। लैटेराइट मिट्टी तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, ओडिशा और असम में पाई जाती है।
लैटेराइट मिट्टी में होने वाली फसलें -: लैटेराइट मिट्टी ज़्यादा उपजाऊ नहीं होती है लेकिन कपास, चावल, गेहूं, दलहन, चाय, कॉफी, रबड़, नारियल और काजू की खेती इस मिट्टी में होती है। इस मिट्टी में आयरन की अधिकता होती है इसलिए ईंट बनाने में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।